Edited By Anil dev,Updated: 16 Aug, 2022 06:50 PM
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि मुस्लिमों में ‘तलाक-ए-हसन' के जरिए तलाक देने की प्रथा तीन तलाक की तरह नहीं है और महिलाओं के पास भी ‘खुला' का विकल्प है। तीन तलाक की तरह ‘तलाक-ए-हसन' भी तलाक देने का एक तरीका है लेकिन इसमें तीन महीने में तीन बार...
नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि मुस्लिमों में ‘तलाक-ए-हसन' के जरिए तलाक देने की प्रथा तीन तलाक की तरह नहीं है और महिलाओं के पास भी ‘खुला' का विकल्प है। तीन तलाक की तरह ‘तलाक-ए-हसन' भी तलाक देने का एक तरीका है लेकिन इसमें तीन महीने में तीन बार एक निश्चित अंतराल के बाद तलाक बोलकर रिश्ता खत्म किया जाता है। इस्लाम में पुरुष ‘तलाक' ले सकता है जबकि कोई महिला ‘खुला' के जरिए अपने पति से अलग हो सकती है।
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि अगर पति और पत्नी एक साथ नहीं रह सकते तो रिश्ता तोड़ने के इरादे में बदलाव न होने के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत तलाक दिया जा सकता है। पीठ ‘तलाक-ए-हसन' और ‘‘एकतरफा न्यायेत्तर तलाक के सभी अन्य रूपों को अवैध तथा असंवैधानिक'' घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में दावा किया गया है कि तलाक के ये तरीके ‘‘मनमाने, असंगत और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।'' पीठ ने कहा, ‘‘यह उस तरीके से तीन तलाक नहीं है।
विवाह एक तरह का करार होने के कारण आपके पास खुला का विकल्प भी है। अगर दो लोग एक साथ नहीं रह सकते, तो हम भी शादी तोड़ने का इरादा न बदलने के आधार पर तलाक की अनुमति देते हैं। अगर ‘मेहर' (दूल्हे द्वारा दुल्हन को नकद या अन्य रूप में दिया जाने वाला उपहार) दिया जाता है तो क्या आप आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हैं?'' इसने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया, हम याचिकाकर्ताओं से सहमत नहीं है। हम इसे किसी भी वजह से कोई एजेंडा नहीं बनाना चाहते।'' याचिकाकर्ता बेनजीर हीना की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया था लेकिन उसने तलाक-ए-हसन के मुद्दे पर फैसला नहीं दिया था।
शीर्ष न्यायालय ने आनंद से यह भी निर्देश लेने को कहा कि यदि याचिकाकर्ता को ‘मेहर' से अधिक राशि का भुगतान किया जाता है तो क्या वह तलाक की प्रक्रिया पर समझौता करने के लिए तैयार होगी। उसने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि ‘मुबारत' के जरिए इस अदालत के हस्तक्षेप के बिना भी शादी तोड़ना संभव है। उच्चतम न्यायालय अब इस मामले पर 29 अगस्त को सुनवाई करेगा। गाजियाबाद निवासी हीना ने सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार और प्रक्रिया बनाने के वास्ते केंद्र को निर्देश दिए जाने का भी अनुरोध किया है। हीना ने दावा किया कि वह ‘तलाक-ए-हसन' की पीड़िता है।