बुरहान वानी की बरसी पर नहीं मना मातम, कश्मीर में तीन साल बाद दिखी शांति

Edited By Monika Jamwal,Updated: 10 Jul, 2019 02:27 PM

no voilence in kashmir on burhan wani death anniversary

8 जुलाई का दिन कश्मीर के लिए कुछ अलग मायने रखता है। इसी दिन 2016 में आतंकी बुरहान वानी को सुरक्षाबलों ने मार गिराया था, और उसके बाद से तीन साल तक घाटी में कई शरारती तत्व बुरहान वानी की सहानभूति के नाम पर युवाओं को भडक़ाने और उन्हे आतंकी बनाने का काम...

श्रीनगर : 8 जुलाई का दिन कश्मीर के लिए कुछ अलग मायने रखता है। इसी दिन 2016 में आतंकी बुरहान वानी को सुरक्षाबलों ने मार गिराया था, और उसके बाद से तीन साल तक घाटी में कई शरारती तत्व बुरहान वानी की सहानभूति के नाम पर युवाओं को भडक़ाने और उन्हे आतंकी बनाने का काम कर रहा था। खासकर 8 जुलाई के दिन बड़ी तादाद में कश्मीर के अलग-अलग इलाकों में युवा इक_ा हो जाते, जिसके बाद वो पत्थरबाजी करते और सुरक्षाबलों पर हमला करते।


8 जुलाई 2016 को बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद घाटी में जगह-जगह हिंसा फैलने लगी और पत्थरबाजी होने लगी। उसके अगले ही दिन से एक दिन में पत्थरबाजी और हिंसा की घटनाएं 15 तक पहुंच गई जो कि इससे पहले इक्का दुक्का होती थी। महज एक साल के भीतर आतंकी संगठनों, सोशल मीडिया और फिल्मों के जरिए बुरहान वानी को कश्मीर में शहादत का चेहरा पेश करने की कोशिश कर रहा था। इसके पीछे मकसद यही था कि घाटी में आतंकवाद की आग हमेशा जलती ही रहे। 


8.10 जुलाई तक दक्षिण कश्मीर में हिंसा का ऐसा दौर चला जो कि नब्बे दशक के बाद पहली बार देखा गया। महज 3 दिन में दक्षिण कश्मीर के सिर्फ  त्राल में ही पत्थरबाजी की 35 घटनाएं हुई और कई जगह सुरक्षाबलों की चौकियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी की गई। इसके एक साल बाद 8 जुलाई 2018 को एक बार फिर दक्षिण कश्मीर के इलाकों में हिंसा का दौर देखा गया, लेकिन इस बार पूरे दक्षिण कश्मीर में करीब 20 पत्थरबाजी की घटना हुई। लेकिन 8 जुलाई 2019 को कश्मीर में ऐसा हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ।

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 बुरहान का इलाका त्राल
सबसे पहले बात करते हैं त्राल इलाके की। ये वो इलाका है जो आतंकी बुरहान वानी का गढ़ था क्योंकि इसी इलाके में उसका परिवार रहता है, और इसी इलाके में इसकी मौत के बाद कब्र बनाई गई है। इस साल पिछले तीन सालों में पहली बार ऐसा हुआ कि त्राल इलाके में हिंसा और पत्थरबाजी की एक भी घटना नहीं घटी। यही हाल पुलवामा, अवंतीपुरा, शोफिया, पांपोर और अनंतनाग का भी था। हिंसा, पत्थरबाजी तो दूर की बात है सुरक्षाबलों के खिलाफ नारेबाजी तक इस साल 8 जुलाई को नहीं हुई। इन जगहों के मुख्य बाजार तो इस दिन बंद रहे, लेकिन गांवों में जो दुकाने हैं वह खुली रहीं।
सुरक्षाबलों और खुफिया सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ सालों के दौरान जो प्रमुख आतंकी मारे गए हैं उनके घर 8 जुलाई को स्थानीय लोगों की आवाजाही न के बराबर थी, जबकि इससे पहले के सालों में इन मारे गए आतंकियों के घर भारी भीड़ देखी जाती थी। इस दिन को जो खास बनाने की कोशिश सीमापार और आतंकी संगठनों की ओर से की जाती थी, इस साल ये लोग कश्मीर की जनता पर इस दिन अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए।


रोकी गई थी अमरनाथ यात्रा
हालांकि एहतियात के तौर पर 8 जुलाई को अमरनाथ यात्रा भी रोक दी गई थी और पूरी घाटी में सुरक्षा के जबरदस्त इंतजाम थे, लेकिन काफी समय बाद कश्मीर की आम जनता का सडक़ों पर इस दिन न उतरना इस बात की ओर इशारा करता है कि कम से कम इस बार तो आतंकियों और पाकिस्तान का कश्मीर में शांति भंग करने का कोई पैंतरा यहां की जनता पर नहीं चल सका। अब सुरक्षाबलों और स्थानीय प्रशासन के सामने चुनौती है कि इस प्रभाव को वो कम से कम करने की कोशिश करें और कश्मीर के लोगों को विकास के साथ जोड़ें।

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