ऑफ द रिकॉर्डः चुनावी बांड योजना बुरी तरह विफल

Edited By Seema Sharma,Updated: 05 Aug, 2018 11:51 AM

the election bond scheme failed miserably

सरकार की राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले फंडों में पारदर्शिता लाने के लिए महत्वपूर्ण चुनावी बांड योजना बुरी तरह विफल रही। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा अभी तक केवल 438 करोड़ रुपए के चुनावी बांड ही बेचे गए हैं। इस वर्ष जनवरी से ऐसे बांड बेचने का...

नेशनल डेस्कः सरकार की राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले फंडों में पारदर्शिता लाने के लिए महत्वपूर्ण चुनावी बांड योजना बुरी तरह विफल रही। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा अभी तक केवल 438 करोड़ रुपए के चुनावी बांड ही बेचे गए हैं। इस वर्ष जनवरी से ऐसे बांड बेचने का स्टेट बैंक ही एकमात्र अधिकृत बैंक है। वित्त मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार तीन चरणों में 438.30 करोड़ रुपए मूल्य के 980 चुनावी बांड अभी तक दिए गए हैं। इनमें से 959 बांड जिनकी कीमत 437.30 करोड़ रुपए है, अभी तक जारी किए गए हैं। सरकार ने चुनावी बांड योजना इस मकसद से लागू की थी कि राजनीतिक व्यवस्था में इस्तेमाल किए जाने वाले काले धन की संस्कृति को साफ किया जाए। योजना का एक अन्य फीचर यह था कि इसमें खरीदार का नाम नहीं होगा और यह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पास ही रहेगा।

बांड खरीदने वाला अपनी मनपसंद किसी भी राजनीतिक पार्टी को यह बांड दे सकता है और वह इसे किसी भी समय जारी करवा सकता है। इस वर्ष मार्च में पहले चरण में 222 करोड़ रुपए मूल्य के कुल 520 बांड जारी किए गए। दूसरे चरण में इनकी संख्या गिर गई। 114.90 करोड़ रुपए के 256 बांड ही बिक पाए। तीसरे चरण में इनमें और गिरावट हुई जब 101.40 करोड़ रुपए मूल्य के 204 बांड ही बिक पाए। वित्त मंत्रालय ने बताया कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा 437.30 करोड़ रुपए के बांड पहले ही जारी करवाए जा चुके हैं। सबसे रोचक बात यह है कि 11 करोड़ रुपए के 21 बांड पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों द्वारा जारी नहीं करवाए गए।

ये बांड अब निष्फल हो गए हैं और उनका मूल्य शून्य है क्योंकि इन बांडों के जारी होने के 15 दिन के भीतर ही इन्हें जारी करवाना होता है। सरकार ने किसी व्यक्ति की तरफ से 2000 रुपए नकदी से अधिक फंड लेने पर पहले ही पाबंदी लगा रखी है। राजनीतिक पार्टियों ने इसका कड़ा विरोध किया था और कहा कि इससे राजनीतिक फंड में पेचीदगियां पैदा होंगी मगर वित्त मंत्री अरुण जेतली ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया था और जनवरी में इस योजना की अधिसूचना जारी की थी।

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