हिन्दू-सिख एकता के प्रकाशस्तंभ थे अमर शहीद रामप्रकाश प्रभाकर

Edited By Updated: 06 Dec, 2025 03:42 PM

the immortal martyr ramprakash prabhakar was a beacon of hindu sikh unity

1991 की शाम और इन दिनों पंजाब में आतंकवाद अपने शिखर पर था। शाम 4 बजे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रौढ़ अधिकारी स्कूटर पर सवार हो कर गुरदासपुर जिले में बटाला से कादियां आ रहे थे। इतने में रास्ते में स्टेनगनों व एके-47 राइफलों से लैस तीन आतंकियों...

नेशनल डेस्क: 1991 की शाम और इन दिनों पंजाब में आतंकवाद अपने शिखर पर था। शाम 4 बजे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रौढ़ अधिकारी स्कूटर पर सवार हो कर गुरदासपुर जिले में बटाला से कादियां आ रहे थे। इतने में रास्ते में स्टेनगनों व एके-47 राइफलों से लैस तीन आतंकियों ने उन्हें घेर लिया, लेकिन संघ के यह स्वयंसेवक घबराए नहीं, शाखा में खेली जाने वाली कबड्डी के खिलाडिय़ों की तरह अकेले ही तीनों से भिड़ गए। वे केवल भिड़े ही नहीं बल्कि उनपर भी भारी पडऩे लगे, परन्तु बेतहाश हो कर आतंकियों ने राइफल के बटों से उन पर प्रहार करने शुरू कर दिए और बेहोश होने पर अपने साथ ले गए।

तीन दिन उन्हें घोर यात्नाएं दी गईं, भूखा-प्यासा रखा और 8 दिसम्बर को रात के करीब दस बजे गोलियां मार कर उन्हें शहीद कर दिया। रुद्रावतार हनुमानजी जैसी जीवन प्रवृति के यह स्वयंसेवक कोई और नहीं बल्कि कादियां के रहने वाले श्री रामप्रकाश प्रभाकर थे, जिन्होंने देश विभाजन के समय मुस्लिम लीगियों, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान, गांधी हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध और एमरजेंसी के दौरान लोकतंत्र बचाने तक के संघर्षों में तत्कालीन  सत्ताधारियों से लोहा लिया। संघर्षों में तप कर वो सोने से कुन्दन बन चुके थे और पंजाब में आतंकवाद के दौरान हिन्दू-सिख एकता के प्रकाशस्तंभ बने हुए थे।

15 सितम्बर, 1924 को गुरदासपुर जिले के हरचोवाल में जन्मे रामप्रकाश जी का बचपन से ही घर से अधिक देश और समाज की तरफ ध्यान रहता। आपकी शादी श्रीमती कैलाशवंती से हुई जो अमृतसर के गाँव रुपोंवाली की थीं। 1944 में वे संघ के सम्पर्क में आए। द्वितीय वर्ष शिक्षित होने उपरान्त उनका सपना था कि वे संघ के प्रचारक बनें। अपने यह इच्छा उस समय के प्रांत प्रचारक श्री माधव राव मुले के समक्ष रखी, पर आपकी पारिवारिक परिस्थितियों के कारण अनुमति नहीं मिली। पर मन ही मन मे प्रण कर लिया कि एक बेटा पूर्णकालिक आजीवन संघ कार्य के लिए दूँगा। उनका यह सपना बाद में उनके पुत्र श्री अशोक प्रभाकर ने प्रचारक बन कर पूरा किया जो इस समय हिन्दू जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक हैं। 

देश ने 1947 में विभाजन की विभिषिका झेली, इस दौरान लाखों लोग मारे गए और करोड़ों को विस्थापित होना पड़ा। कादियाँ इलाके में इन विस्थापितों को सहारा देने और बसाने में यहाँ के युवकों का नेतृत्व रामप्रकाश प्रभाकर ने किया। स्थानीस हिन्दू-सिखों को दंगाइयों से बचाया। उजड़ के आये लोगों के दु:ख-दर्द में उनके साथ दिन-रात शामिल हुए। उनके लिए लंगर लगवाए, रहने की व्यवस्था करवायी। 

30 जनवरी, 1948 में महात्मा गांधी जी की हत्या के उपरांत संघ पर प्रतिबंध लगा। गांधी जी के हत्यारे का संघ से दूर-दूर तक कोई संबंध न था। तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी को गिरफ्तार कर लिया गया जबकि गुरुजी ने स्वयंसेवको को तेरह दिनों का गांधी जी की हत्या का शोक मनाने का निर्देश दिया था। सरकार के दमन को बन्द करने को फरवरी में सत्याग्रह शुरू किया गया। लाखों कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिये गए। गुरदासपुर जिले में सत्याग्रह के दौरान रामप्रकाश प्रभाकर, पं. उमाशंकर, ऋषिदत्त गुलाटी, सरदारी लाल गांधी, पन्नालाल धारीवाल, चमनलाल बटाला और अन्यों के नेतृत्व मे जेलें भर दीं। प्रभाकर जी यौल कैंप जेल (धर्मशाला) में लोगों से हाथ उठवा कर गाते हुए जोश दिलवाते थे -
आजमाया जायेगा, 
कौन आगे बढ़ कर पहले
पहली गोली खायेगा ?

जब सरकार को कुछ नहीं मिला तो कई महीनों में सबको रिहा कर दिया। सरकार ने आश्वासन के बाद भी संघ से प्रतिबंध नहीं उठाया तो फिर से सत्याग्रह शुरू कर दिया गया। बताते हैं कि इस दौरान पुलिस आपको गिरफ्तार करने को पीछे पड़ी हुई थी। एक बार एक सब-इंस्पेक्टर दो सिपाहियों के साथ आये और प्रभाकर जी से ही उनके घर का पता पूछने लगे और इन्होंने दूर से ही इशारा करते हुए कहा कि उनका घर उधर है। पुलिस पार्टी कुछ दूर जा कर किसी और से पूछने लगी तो जवाब मिला वह प्रभाकर जी ही थे जिन्होंने आपको अपने घर का पता बताया। पर जनवरी 1949 को आप गिरफ्तार कर लिये गए। आखिर सरकार को झुकना पड़ा और संघ से प्रतिबन्ध हटा लिया गया। 

1951 में जनसंघ की स्थापना हुई और आप गुरदासपुर जिला के संगठन मंत्री बनाये गये। ऋषिदत्त गुलाटी आपके सहायक बने। नगर कमेटियों में जनसंघ की जीत हुई। पर सरकार कमेटी पर जनसंघ की जीत को नकारती रही और जीते हुए दल को सत्ता सौंपने को तैयार नहीं हुई। इसके लिए जनान्दोलन हुआ। सरकार ने पंडित उमा शंकर बटाला, प्रभाकर जी, रामदयाल, ऋषिदत्त गुलाटी बटाला और पन्ना लाल धारीवाल की सदस्यता खारिज कर दी। न्याय के लिए अदालत गये और मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। न्यायाधीश श्री हिदायतुल्लाह खां ने फैसला इनके हक में दिया। बटाला कमेटी में जनसंघ बार-बार चुनाव जीतती रही और सत्रह साल तक कमेटी पर इनका राज रहा। 

1953 में काश्मीर सत्याग्रह आंदोलन दौरान डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जब काश्मीर जा रहे थे तो प्रभाकर जी सैंकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ बटाला से माधोपुर तक उनके साथ रहे। उनके कश्मीर में बलिदान पर आपने एक हृदयस्पर्शी मार्मिक कविता लिखी -
जालिम को जुल्म की बरछी से
तुम सीना-ए-दिल भरमाने दो
यह दर्द रहेगा बन के दवा
तुम सब्र करो वक़्त आने दो।

प्रभाकर जी अपने जीवन काल में हर जन-आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। गौ-रक्षा आंदोलन, हिन्दी आंदोलन, प्रौढ़ शिक्षा आंदोलन का नेतृत्व इन्होंने किया। 1975 में जून महीने देश में आपातकाल की घोषणा की गई। संगठन की ओर से आपातकाल का जोरदार विरोध करने का निर्णय लिया गया। प्रभाकर जी लम्बे समय तक पुलिस को चकमा देते रहे। बाहर रह कर संगठन का काम करते रहे। आखिर पकड़ लिए गए और एक साल जेल में रहे। 1977 में आपातकाल को हटा लिया गया। रामप्रकाश प्रभाकर दो साल कादियाँ नगर पालिका के अध्यक्ष रहे। वह समाज के हर वर्ग को स्वीकार्य थे।
 
30 अक्तूबर, 1990 को कादियाँ से चार साथियों को साथ लेकर अयोध्या में राम-मन्दिर निर्माण आंदोलन के लिए 165 किलोमीटर पैदल चल कर पुलिस से बचते-बचते, खेतों-पानी से गुजरते हुए अयोध्या पहुँचे और कारसेवा की। पंजाब में आतंकवाद के दौर में लोग छ: बजे के बाद घरों से बाहर नहीं निकलते थे। हर एक की सहायता करना उनके स्वभाव में था, निडर प्रभाकर जी आधी रात को भी कोई आ जाता तो उनके साथ चल देते थे। पत्नी हमेशा आगाह करती रहती थी कि अंधेरा होने पर इस तरह से घर से न जाया करो। पर प्रभाकर जी कहाँ मानने वाले थे। पास के गाँवों में आतंकवाद में लिप्त युवकों को उनके घरों में आप निडरता से समझाने चले जाते। जब आतंकी किसी का अपहरण कर ले जाते और फिरौती मांगते, तब प्रभाकर जी स्वयं खोज कर सीधे उनके पास जाते और अपहृत व्यक्ति को छुड़ा कर लाते थे। प्रभाकर जी का कादियाँ और आसपास के इलाकों में इतना सम्मान था कि कादियाँ आतंकवाद के दौरान सुरक्षित रहा। 

प्रभाकर जी का निर्भीक रह कर समाज को जोड़े रखना और कादियाँ को आतंकवाद से अप्रभावित रखना आतंकवादियां के आकाओं के गले नहीं उतर रहा था। आपके विरुद्ध उनके द्वारा षड्यंत्र रचे जाने लगे। इसी दौरान भारतीय जनता पार्टी के नगर प्रधान का उग्रवादियों ने अपहरण कर लिया। आप उनके गढ़ में जाकर उनकों छुड़ाने के प्रयास में जुट गए। 5 दिसम्बर, 1991 के दिन इसी सिलसिले में आप शाम पाँच बजे बटाला से अकेले अपने दोपहिया वाहन से कादियाँ आ रहे थे। रास्ते में गन्नों के खेत में छिपे उग्रवादियों ने आपको घेर लिया। आप निहत्थे होते हुए भी उन सबसे अकेले जूझ पड़े। बहुत हिम्मत से उनका मुकाबला किया। संख्या में अधिक होने से वे आप पर हावी हो गए और आपका अपहरण कर लिया। 8 दिसम्बर को आपकी हत्या कर दी गई। प्रभाकर जी को श्रद्धांजलि देने के लिए रविवार 7 दिसम्बर, 2025 को कादियां में समारोह आयोजित किया जा रहा है।

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