20 साल से शहीदों के परिवारों को चिट्ठी लिख रहा है यह सिक्योरिटी गार्ड, जानिए क्यों

Edited By Seema Sharma,Updated: 02 Nov, 2018 12:59 PM

the security guard is writing a letter to the martyrs families for 20 years

बॉर्डर पर जब हमारे जवान शहीद होते हैं तो पूरा देश कराह उठता है। शहीदों के परिजनों के लिए हमारा सिर नमन से झुक जाता है। हर कोई अपने ढंग से शहीदों को श्रद्धांजलि देता है। कुछ समय बाद हम अपने-अपने कामों में मशगूल हो जाते हैं

सूरत: बॉर्डर पर जब हमारे जवान शहीद होते हैं तो पूरा देश कराह उठता है। शहीदों के परिजनों के लिए हमारा सिर नमन से झुक जाता है। हर कोई अपने ढंग से शहीदों को श्रद्धांजलि देता है। कुछ समय बाद हम अपने-अपने कामों में मशगूल हो जाते हैं लेकिन जितेंद्र सिंह गुर्जर की देशभक्ति को सलाम, वे मानवीयता की ऐसी मिसाल हैं कि आप भी कह उठेंगे कि आज की दुनिया में क्या ऐसे भी लोग होते हैं। जितेंद्र पिछले 20 साल से सीमा पर शहीद हुए जवानों के परिजनों को खत लिख रहे हैं और परिवार के शहीद हो चुके बेटे, पति और पिता की देश के लिए सेवाओं का आभार व्यक्त करते हैं। गुजरात के रहने वाले जितेंद्र सूरत में एक सोसायटी में बतौर सिक्योरिटी गार्ड काम करते हैं। भले ही वो पैसों से अमीर न हों लेकिन अपने शब्दों से शहीद के परिवार वालों को अपनापन जताते हैं। जितेंद्र के अंदर देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है, वो फौज में जाना चहते थे लेकिन घर की आर्थिक स्थिति के चलते ऐसा न हो सके। फिर भी जितेंद्र फौज के जवानों के साथ भावनात्मक ढंग से जुड़े हुए हैं।
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1999 के कारगिल युद्ध के बाद से ही जितेंद्र शहीद जवानों के परिवारों को चिट्ठी लिखकर उनका दर्द साझा करने की कोशश करते हैं। तब से शुरू हुआ उनका ये सिलसिला आज तक जारी है। जितेंद्र अब तक 40 हजार से ज्यादा चिट्ठियां शहीदों के घरवालों को लिख चुके हैं। उनमें से 125 परिवारों की तरफ से उन्हें जवाब भी मिला है। जितेंद्र का कहना है कि वह भले ही पैसे से उनकी मदद नहीं कर सकते, लेकिन अपने शब्दों से शहीदों के परिवारों का जख्म भरने की कोशिश करते हैं।
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जवान जब बार्डर पर या कहीं भी तैनात होते हैं तो चिट्ठी के जरिए ही अपने परिवार से जुड़े होते हैं, बस मेरी भी ये छोटी कोशिश है कि मेरी चिट्ठी शहीद के घरवालों को आराम के कुछ पल दे सके। इसलिए मैंने लिखना शुरू किया। इससे मुझे भी शांति मिलती है। जतिंद्र सिक्योरिटी गार्ड भी इसलिए बने क्योंकि वे यूनिफार्म पहनना चाहते थे। वहीं जतिंद्र ने बताया कि जब वे शहीदों के परिवारों को खत लिखते हैं तो उधर से जवाब आता है कि हमें खुशी है कि कोई आज भी हमें याद करता है। वहीं जतिंद्र ने बताया कि एक बार एक शहीद बेटे के पिता ने उनके खत के जवाब में कहा कि मुझे ऐसा लगा कि मेरा बेटा वापिस आ गया हो। आज के समय में हम इतने बिजी हो गए हैं कि कई बार तो हमें अपनों से बात करने का समय नहीं मिलता। वहीं जतिंद्र गुज्जर का यह प्रयास अपने आप में सराहनीय है।

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