Edited By Harman Kaur,Updated: 24 Jun, 2025 12:38 PM
ईरान और इजरायल के बीच बीते 12 दिनों से चला आ रहा तनाव अब थमता नजर आ रहा है। ईरान ने भी संघर्षविराम (सीजफायर) की घोषणा कर दी है, जिससे पश्चिम एशिया में अस्थायी शांति की उम्मीद जगी है। इस बीच, अमेरिका की इस संघर्ष में एंट्री और ईरान द्वारा अमेरिकी...
नेशनल डेस्क: ईरान और इजरायल के बीच बीते 12 दिनों से चला आ रहा तनाव अब थमता नजर आ रहा है। ईरान ने भी संघर्षविराम (सीजफायर) की घोषणा कर दी है, जिससे पश्चिम एशिया में अस्थायी शांति की उम्मीद जगी है। इस बीच, अमेरिका की इस संघर्ष में एंट्री और ईरान द्वारा अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमले से आशंका थी कि यह युद्ध और भड़क सकता है। अगर यह युद्ध और लंबा खिंचता, तो न सिर्फ पश्चिम एशिया बल्कि भारत समेत पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लग सकता था। आइए समझते हैं कि इस जंग का भारत पर क्या असर हो सकता था:-
व्यापार पर गहरा असर
भारत ईरान को बासमती चावल, केला, चाय और चना जैसे कई कृषि उत्पाद निर्यात करता है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत का 15% बासमती चावल और असम से लगभग 25 हजार टन चाय ईरान को जाता है। अगर युद्ध लंबा चलता, तो इस व्यापार पर बुरा असर पड़ता। इसी तरह, इजरायल के साथ भी भारत के टेक्नोलॉजी और डिफेंस के क्षेत्र में मजबूत व्यापारिक रिश्ते हैं। लगातार युद्ध की स्थिति इन संबंधों को प्रभावित कर सकती थी।
ऊर्जा आपूर्ति पर खतरा
भारत अपनी एलपीजी जरूरत का बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों- सऊदी, यूएई और कतर से पूरा करता है। भारत के पास मात्र 16 दिनों की एलपीजी का भंडारण है। युद्ध के चलते आपूर्ति बाधित होती, तो सीधा असर एलपीजी सिलेंडर, सीएनजी और बिजली की कीमतों पर होता। भारत का 66% एलपीजी आयात मिडिल ईस्ट से होता है, जबकि कुल आयात का आंकड़ा 33.1 अरब डॉलर और निर्यात 8.6 अरब डॉलर है। इन देशों से व्यापार प्रभावित होने पर भारत की ऊर्जा और अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त दबाव आता।
होर्मुज स्ट्रेट पर युद्ध का असर
ईरान, जो दुनिया का 9वां सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, रोज़ करीब 33 लाख बैरल तेल निकालता है। कच्चे तेल के वैश्विक व्यापार का 24% और प्राकृतिक गैस का 20% होर्मुज स्ट्रेट से होकर गुजरता है। यदि यह रास्ता बंद होता, तो भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश ऊर्जा संकट में फंस सकते थे।
भारत की रणनीतिक तैयारियां
भारत ने हाल के वर्षों में तेल आयात को विविध स्रोतों से सुनिश्चित किया है। 2023-24 में भारत ने रूस से 39% तक कच्चा तेल आयात किया, जो 2020 में महज 2% था। इराक और सऊदी अरब से भी तेल आयात अब पहले से कम निर्भरता के साथ किया जा रहा है। यह रणनीति भारत को तेल संकट के समय एक हद तक राहत दे सकती है, लेकिन होर्मुज जैसे अहम जलमार्ग के बंद होने पर संकट से पूरी तरह बच पाना मुश्किल होता।