पाक FM बिलावल के SCO Summit में भारत आने को लेकर खुला राज, जानें क्यों घुटने टेके ?

Edited By Tanuja,Updated: 04 May, 2023 12:03 PM

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पाकिस्‍तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो आखिर शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO Summit) के लिए भारत आने को राजी हो गए हैं...

इस्‍लामाबाद: पाकिस्‍तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो आखिर शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO Summit) के लिए भारत आने को राजी हो गए हैं। लेकिन उनके अचानक  SCO Summit 2023 में आने के लिए हामी भरने के पीछे भी राज छुपा हुआ है। कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कश्‍मीर पर विवादित बयान देने वाले बिलावल 4-5 मई को गोवा में विदेश मंत्रियों की एक मीटिंग में शिरकत करेंगे। 

 

साल 2001 में शुरू हुए SCO Summit का मकसद एशिया में विकास और सुरक्षा सहयोग को आगे बढ़ाना था। इस सम्‍मेलन से कुछ खास निकलेगा, इस बात की गुंजाइश तो बहुत कम है। ले‍किन इसके बाद भी इस सम्‍मेलन पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं और बिलावल उसकी इकलौती वजह हैं। जुलाई में भारत की राजधानी नई दिल्‍ली में SCO Summit  होना है जिसमें सभी सदस्‍य देशों के मुखिया शामिल होंगे।बिलावल साल 2011 के बाद से भारत आने वाले पाकिस्‍तान के पहले विदेश मंत्री हैं। विल्‍सन सेंटर में दक्षिण एशिया इंस्‍टीट्यूट के डायरेक्‍टर माइकल कुगलमैन ने फॉरेन पॉलिसी मैगजीन में लिखा है कि पाकिस्‍तान की सरकार बिलावल की भारत यात्रा को SCO  के साथ संपर्क मजबूत करने और विदेश नीति को आग बढ़ाने वाले अवसर के तौर पर ही देख रही है न कि भारत के साथ संबंधों को सुधारने की कोशिश के तहत। कुगलमैन मानते हैं कि भारत, पाकिस्‍तान में एक कमजोर और अलोकप्रिय प्रशासन के साथ बातचीत करने के लिए अपनी राजनीतिक पूंजी नहीं खर्च करना चाहेगा, खासकर तब जब भारत में बस एक साल बाद ही आम चुनाव होने हैं।
 

 

पाकिस्‍तान के लिए SCO के काफी फायदे हैं या यूं कहें मजबूरियां हैं। चीन जहां हमेशा से पाकिस्‍तान का करीबी सहयोगी और परममित्र रहा है तो वहीं रूस के साथ भी उसके रिश्‍ते अब आगे बढ़ रहे हैं। SCO की आधी सदस्यता मध्य एशिया के देशों के पास है। यह वह क्षेत्र है जहां पाकिस्तान हमेशा से व्यापार और संपर्क बढ़ाने के लिए आपसी जुड़ाव को गहरा करने की उम्मीद करता आया है। बिलावल की यात्रा पाकिस्तान के लिए एक मजबूरी है और द्विपक्षीय नहीं है। अगर वह गोवा नहीं आते तो पाकिस्‍तान संगठन में अपनी स्थिति कमजोर कर सकता था। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ दबदबा खोने का जोखिम नहीं उठाएंगे वह भी तब जब इसमें एक सहयोगी यानी चीन का प्रभाव काफी ज्‍यादा है। साथ ही इसमें वो सदस्य शामिल हैं जो पाकिस्‍तान के साथ गहरे संबंध बनाने के इच्छुक हैं। पाकिस्‍तान को लगता है कि ये देश भारत के प्रभाव को सीमित कर सकते हैं।

 

कुछ बहुपक्षीय संगठनों में जिनमें भारत और पाकिस्तान दोनों शामिल हैं, वहां वह नुकसान में है क्योंकि भारत इसमें सबसे शक्तिशाली सदस्य है जैसे कि सार्क। लेकिन SCO में भारत का दबदबा उसके रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी चीन की उपस्थिति के आगे कमजोर पड़ जाता है। यूक्रेन की जंग ने रूस को चीन के करीब ला दिया है। इसका मतलब यही है कि SCO के अंदर रूस का प्रभाव कम हो सकता है और चीन इसमें मजबूत सदस्‍य बन सकता है। पाकिस्तान की तरह, भारत भी संसाधनों से अमीर मध्य एशियाई देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने और सहयोग को बढ़ाने की उम्‍मीद करता है। मध्‍य एशिया अब भारत पाकिस्‍तान के बीच जंग का नया अखाड़ा बन चुका है।

 

भारत के पास मध्य एशिया के प्रमुख देश अफगानिस्तान में दाखिल होने के लिए डायरेक्‍ट एंट्री नहीं है। लेकिन इसने क्षेत्र में सरकारों के साथ बातचीत करके नया सिस्‍टम बनाकर इस कमी को पूरा किया गया। गोवा में पाकिस्तान की मौजूदगी का मकसद यह इशारा हो सकता है कि वह मध्य एशिया भारत को और हावी होने नहीं देगा। पाकिस्तान भी बिलावल की यात्रा को द्विपक्षीय दृष्टिकोण से नहीं देख रहा है।ऐसी खबरें आई थीं कि पाकिस्तान ने ब‍िलावल और उनके भारतीय समकक्ष एस जयशंकर के बीच एक मीटिंग की गुजारिश की थी मगर पाकिस्तानी अधिकारियों ने इसे खारिज कर दिया। किसी भी तरह से  पाकिस्तानी विदेश मंत्री की यात्रा को सुलह प्रक्रिया शुरू करने के प्रयास के रूप में देखना गलत होगा।

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