Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 15 Dec, 2025 11:35 PM

जब लोग किसी फर्टिलिटी क्लिनिक में आते हैं, तो ज़्यादातर को लगता है कि बात सिर्फ़ हार्मोन, अंडाणु भंडार या वीर्य की गुणवत्ता पर ही होगी। उन्हें यह जानकर अक्सर हैरानी होती है कि बातचीत कई बार एक बहुत बुनियादी चीज़ पर आकर टिक जाती है – शरीर इंसुलिन को...
(वेब डेस्क) जब लोग किसी फर्टिलिटी क्लिनिक में आते हैं, तो ज़्यादातर को लगता है कि बात सिर्फ़ हार्मोन, अंडाणु भंडार या वीर्य की गुणवत्ता पर ही होगी। उन्हें यह जानकर अक्सर हैरानी होती है कि बातचीत कई बार एक बहुत बुनियादी चीज़ पर आकर टिक जाती है – शरीर इंसुलिन को कैसे संभाल रहा है। डॉ. वाणी मेहता, फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ, चंडीगढ़ बताती हैं कि पहली नज़र में यह प्रजनन स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं लगता, लेकिन जब इंसुलिन ठीक से काम करना कम कर देता है, तो इसका असर अंडोत्सर्जन से लेकर शुरुआती भ्रूण विकास तक लगभग हर चीज़ पर पड़ सकता है।
जब इंसुलिन सिग्नलिंग बाधित होती है
इंसुलिन प्रतिरोध अंडाशय को अधिक ऐण्ड्रोजन बनाने के लिए प्रेरित कर सकती है, फॉलिकल्स के परिपक्व होने की प्रक्रिया को बिगाड़ सकता है और ओव्यूलेशन को अनियमित या देर से होने वाला बना देता है। 2025 में रिप्रोडक्टिव बायोलॉजी एंड एंडोक्राइनोलॉजी में छपे एक हालिया क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन ने इंसुलिन रज़िस्टेंस के कई संकेतकों की जाँच की और एक साफ़ प्रतिमान पाया: जिन महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटिविटी कम थी, उन्हें, वज़न से अलग हटकर भी, गर्भधारण में ज़्यादा दिक्कतें आईं। क्लिनिकल प्रैक्टिस में भी डॉक्टर यही देखते हैं – पीरियड्स के चक्र अनियमित हो जाते हैं, अंडों की क्वालिटी में उतार-चढ़ाव आ सकता है और इलाज के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया भी बदलती रहती है।
खाने में बदलाव जो मदद करते हैं
उद्देश्य किसी कड़ी डाइट पर जाना नहीं, बल्कि शरीर की मेटाबॉलिक लय को ज़्यादा स्थिर बनाना है। सब्ज़ियों, दालों, साबुत अनाज और ख़ास तौर पर पादप-आधारित प्रोटीन पर आधारित भोजन इंसुलिन में अचानक आने वाली तेज़ बढ़ोतरी को नरम कर देता है। नर्सेज़ हेल्थ स्टडी II के नतीजों ने भी संकेत दिया कि जिन महिलाओं ने अपने खाने में कुछ कार्बोहाइड्रेट की जगह प्लांट-बेस्ड प्रोटीन शामिल किया, उनमें ओव्यूलेशन से जुड़ी समस्याओं का जोखिम काफ़ी कम देखा गया। यह एक छोटा-सा बदलाव है, लेकिन अक्सर मासिक चक्र को फिर से ज़्यादा नियमित और संतुलित बना देता है।
भोजन जिसमें अच्छी मात्रा में फाइबर, अच्छे फैट्स और बहुत कम रिफाइंड शुगर होती है, वे भी इंसुलिन सेंसिटिविटी के लिए बेहतर सहारा देते हैं। पेशेंट अक्सर बताते हैं कि जब ये बदलाव उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन जाते हैं, तो प्रीमेंस्ट्रुअल लक्षण और पीरियड्स का समय दोनों कम अनियमित महसूस होते हैं।
शरीर में गतिशीलता: आपका प्राकृतिक मेटाबॉलिक रेगुलेटर
नियमित शारीरिक गतिविधि इंसुलिन सेंसिटिविटी सुधारने के सबसे कारगर तरीक़ों में से एक है। इसका बहुत ज़्यादा जोरदार होना ज़रूरी नहीं, बल्कि हद से ज़्यादा व्यायाम उल्टा नुकसान कर सकता है; लेकिन रोज़ाना टहलना, हल्की स्ट्रेंथ ट्रेनिंग या हफ्ते में कुछ बार साइकिल चलाना भी मांसपेशियों के ग्लूकोज़ इस्तेमाल करने के तरीक़े को बदल सकता है। पीसीओएस वाले प्रोग्रामों में यह देखा गया है कि थोड़े से वज़न में कमी और मेटाबॉलिक मार्कर के बेहतर होने के साथ ही ओव्यूलेशन ज़्यादा नियमित होने लगता है और इलाज शुरू करने के लिए शरीर बेहतर तैयार दिखाई देता है।
छिपे हुए कारण
नींद का नियमित प्रतिमान, कम तनाव और ज़रूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की पर्याप्त मात्रा — ये सब भी अपनी-अपनी जगह अहम भूमिका निभाते हैं। पुरुषों पर हो रहे नए शोध यह दिखा रहे हैं कि इंसुलिन रज़िस्टेंस, ख़राब डाइट क्वालिटी और कम शुक्राणु गतिशीलता के बीच मजबूत संबंध हैं, जो यह याद दिलाते हैं कि मेटाबॉलिक स्वास्थ्य केवल किसी एक व्यक्ति का विषय नहीं, बल्कि दंपत्ति-केन्द्रित पहलू है।
उपचार से पूर्व यह क्यों महत्त्वपूर्ण है
जब इंसुलिन सेंसिटिविटी बेहतर होती है, तो पूरा प्रजनन तंत्र ज़्यादा अनुमानित और संतुलित ढंग से काम करने लगता है। जो लोग आईवीएफ या ओव्यूलेशन-इंडक्शन जैसी दवाओं की तैयारी कर रहे हों, उनके लिए यह स्थिरता इस बात में बड़ा फर्क ला सकती है कि शरीर इलाज पर कैसे प्रतिक्रिया देता है।