Edited By PTI News Agency,Updated: 09 Nov, 2021 07:16 PM

नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से कहा कि वह दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 के तहत शराब के उन ब्रांड की संख्या के बारे में जानकारी दे जिनका अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) तय किया गया है और जिनका अभी तय किए जाने...
नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार से कहा कि वह दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 के तहत शराब के उन ब्रांड की संख्या के बारे में जानकारी दे जिनका अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) तय किया गया है और जिनका अभी तय किए जाने हैं। अदालत ने सरकार से यह भी बताने के लिए कहा कि क्या किसी शराब ब्रांड का पंजीकरण पहले ही किया जा चुका है?
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की एकल पीठ ने कहा, ''इस मुद्दे से निपटने से पहले, मेरा विचार है कि प्रतिवादी (दिल्ली सरकार) के लिए यह आवश्यक है कि वह अदालत को उन शराब ब्रांड की संख्या के बारे में सूचित करे जिनके एमआरपी तय हैं और तारीख के साथ उनके बारे में बताएं जोकि बाकी बचे हैं। यह भी बताएं कि क्या किसी ब्रांड का पंजीकरण पहले ही किया जा चुका है या नहीं।''
अदालत ने कहा, ''इसका मतलब है कि दिल्ली के लोगों को शराब नहीं मिलेगी। आप ब्रांड की एमआरपी क्यों नहीं तय कर रहे हैं?''
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और राहुल मेहरा ने निर्देश लेने के लिए समय मांगा, जिसके बाद अदालत ने याचिका 11 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दी।
उच्च न्यायालय उन 16 याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जोकि खुदरा शराब दुकानों के संचालन के वास्ते लाइसेंस के लिए सफल बोलीदाता हैं। याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली सरकार के एक नवंबर, 2021 से लाइसेंस शुल्क वसूलने के फैसले को अवैध घोषित करने का अनुरोध किया है।
खुदरा विक्रेताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह और वकील तन्मय मेहता ने दलील दी कि सरकार याचिकाकर्ताओं को एक नवंबर से लाइसेंस शुल्क का भुगतान करने का निर्देश नहीं दे सकती क्योंकि लाइसेंस शुल्क का भुगतान व्यवसाय शुरू होने पर निर्भर करता है। उन्होंने अदालत से कहा कि प्राधिकारियों ने अधिकांश ब्रांड के एमआरपी तय नहीं किये हैं और उन्हें शुल्क का भुगतान करने के निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है।
सिंघवी और मेहरा ने इसका विरोध किया और कहा कि अधिकांश ब्रांड की एमआरपी पहले से ही तय है और एमआरपी का निर्धारण एक सतत प्रक्रिया है तथा सरकार देरी के लिए जिम्मेदार नहीं है।
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