कॉलेजियम प्रणाली देश का कानून है, उसका पालन होना चाहिए :न्यायालय

Edited By PTI News Agency,Updated: 08 Dec, 2022 07:08 PM

pti state story

नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है।

नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए ‘बाध्यकारी’ है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए।

न्यायालय अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों को मंजूर करने में केंद्र द्वारा कथित देरी से जुड़े मामले में सुनवाई कर रहा था।

न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम पर सरकार के लोगों की ओर से की जाने वाली टिप्पणियों को उचित नहीं माना जाता।

उन्होंने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को इस बारे में सरकार को राय देने को कहा।

कॉलेजियम प्रणाली उच्चतम न्यायालय और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध का विषय रही है और न्यायाधीशों द्वारा ही न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रणाली की विभिन्न वर्ग आलोचना करते रहे हैं।

केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रीजीजू ने 25 नवंबर को कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली संविधान के प्रति ‘सर्वथा अपरिचित’ शब्दावली है।

पीठ में न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ भी शामिल थे। उसने कहा कि वह अटॉर्नी जनरल से अपेक्षा रखती है कि सरकार को राय देंगे, ताकि शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानूनी सिद्धांतों का अनुपालन हो।

उसने कहा कि कॉलेजियम ने जिन 19 नामों की सिफारिश की थी, उन्हें सरकार ने हाल में वापस भेज दिया।

पीठ ने कहा, ‘‘यह ‘पिंग-पांग’ का खेल कैसे खत्म होगा?’’
उसने कहा, ‘‘जब तक कॉलेजियम प्रणाली है, जब तक यह कायम है, हमें इसे लागू करना होगा। आप दूसरा कानून लाना चाहते हैं, कोई आपको दूसरा कानून लाने से नहीं रोक रहा।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर समाज का एक वर्ग तय करना शुरू कर देगा कि किस कानून का पालन होगा और किस का नहीं तो अवरोध की स्थिति बन जाएगी।

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘अंत में हम केवल इतना कह सकते हैं कि संविधान की योजना अदालत से कानून की स्थिति पर अंतिम मध्यस्थ होने के अपेक्षा रखती है। कानून बनाने का काम संसद का है। हालांकि यह अदालतों की पड़ताल पर निर्भर करता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस अदालत द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए बाध्यकारी है। मैं केवल यह संकेत करना चाहता हूं।’’
पीठ ने कहा कि अदालत को इस बात से परेशानी है कि कई नाम महीनों और सालों से लंबित हैं जिनमें कुछ ऐसे हैं जिन्हें कॉलेजियम ने दोहराया है।

उसने कहा कि जब उच्च न्यायालय का कॉलेजियम नाम भेजता है और शीर्ष अदालत का कॉलेजियम नामों को मंजूरी देता है तो वरिष्ठता समेत कई चीजों को दिमाग में रखता है।

पीठ ने मामले में आगे सुनवाई के लिए छह जनवरी की तारीख तय की।

शीर्ष अदालत ने 28 नवंबर को उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिश वाले नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी पर अप्रसन्नता जताई थी।

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की थी। पीठ ने कहा कि उस समय-सीमा का पालन करना होगा।

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार इस तथ्य से नाखुश है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को मंजूरी नहीं मिली, लेकिन यह देश के कानून के शासन को नहीं मानने की वजह नहीं हो सकती है।

शीर्ष अदालत ने 2015 के अपने फैसले में एनजेएसी अधिनियम और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को रद्द कर दिया था, जिससे शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली न्यायाधीशों की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली बहाल हो गई थी।

शीर्ष अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया है कि समय पर नियुक्ति के लिए पिछले साल 20 अप्रैल के आदेश में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित समय-सीमा की ‘‘जानबूझकर अवज्ञा’’ की जा रही है।

शीर्ष अदालत ने 11 नवंबर को न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी पर नाखुशी जताई थी और कहा था कि उन्हें लंबित रखना ‘‘स्वीकार्य नहीं है।’’
पीठ ने केंद्रीय कानून मंत्रालय के सचिव (न्याय) और अतिरिक्त सचिव (प्रशासन और नियुक्ति) को नोटिस जारी कर याचिका पर उनका जवाब मांगा था।

‘एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु’ द्वारा वकील पई अमित के माध्यम से दायर याचिका में उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के साथ-साथ नामों के चुने जाने में ‘‘असाधारण देरी’’ का मुद्दा उठाया गया।

याचिका में 11 नामों का उल्लेख किया गया जिनकी सिफारिश की गई थी और बाद में उन्हें दोहराया गया।


यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!