जयललिता के जाने के बाद आसान नहीं रहा पनीरसेल्वम का सफर

Edited By PTI News Agency,Updated: 11 Jul, 2022 07:27 PM

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चेन्नई, 11 जुलाई (भाषा) एक दौर में तमिलनाडु की भूतपूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के सबसे वफादार सहयोगियों में शुमार ओ पनीरसेल्वम (ओपीएस) आज अन्नाद्रमुक के नेतृत्व की लड़ाई में अपने महत्वाकांक्षी प्रतिद्वंद्वी के पलानीस्वामी से पिछड़ते नजर आ रहे...

चेन्नई, 11 जुलाई (भाषा) एक दौर में तमिलनाडु की भूतपूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के सबसे वफादार सहयोगियों में शुमार ओ पनीरसेल्वम (ओपीएस) आज अन्नाद्रमुक के नेतृत्व की लड़ाई में अपने महत्वाकांक्षी प्रतिद्वंद्वी के पलानीस्वामी से पिछड़ते नजर आ रहे हैं। वैसे, वह पलानीस्वामी से बेहतर की उम्मीद भी नहीं कर सकते थे।

जयललिता के निधन के बाद 2021 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने और खुद उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करने जैसे समझौतों तथा पलानीस्वामी के अप्रत्याशित हमलों के चलते पनीरसेल्वम के सियासी सफर में ठहराव आ गया था। और अब पिछले कुछ महीनों से पार्टी में उठती एकल नेतृत्व की मांग के चलते उनका राजनीतिक करियर गर्त में जाता दिख रहा है।
मुश्किलों से घिरे पन्नीरसेल्वम न सिर्फ पार्टी के वफादार के रूप में अपनी छवि को बरकरार रखने की जद्दोजहद में जुटे हैं, बल्कि अपने साथ खड़े कुछ कार्यकर्ताओं के बलबूते अन्नाद्रमुक पर खोई पकड़ वापस पाने की कोशिश भी कर रहे हैं।

पिछले साल थेनी जिले की बोदिनायकनूर सीट से लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले 71 वर्षीय पनीरसेल्वम कह रहे हैं कि वह ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) के समन्वयक बने रहेंगे।

18 साल की उम्र में राजनीति में कदम रखने वाले पनीरसेल्वम ने धीरे-धीरे जयललिता का भरोसा जीता और पार्टी में उनका कद बढ़ता चला गया। जयललिता ने अपनी गैर-मौजूदगी में उन्हें सरकार चलाने का जिम्मा सौंपा।

पनीरसेल्वम ने पहली बार साल 2001 और फिर 2014 में दो मर्तबा तब मुख्यमंत्री पद संभाला, जब आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद जयललिता को इस्तीफा देना पड़ा था। 2016 में जयललिता के निधन के बाद वह तीसरी बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए।

हालांकि, दो महीने बाद अन्नाद्रमुक में फूट पड़ने और तत्कालीन राज्यपाल द्वारा पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री नियुक्त करने के बाद पनीरसेल्वम को इस्तीफा देना पड़ा। पलानीस्वामी बाद में राज्य विधानसभा में बहुमत साबित करने में सफल रहे थे।

फरवरी 2017 में पनीरसेल्वम ने वी के शशिकला के खिलाफ बगावत करते हुए मरीना बीच पर ‘धर्म युद्धम’ की शुरुआत की। उसी साल अगस्त में उन्होंने अपने गुट का पलानीस्वामी के समूह के साथ विलय कर दिया। वह पलानीस्वामी सरकार में उप-मुख्यमंत्री बने और वित्त विभाग का प्रभार भी संभाला। बाद में पन्नीरसेल्वम को अन्नाद्रमुक का समन्वयक, जबकि पलानीस्वामी को संयुक्त समन्वयक नियुक्त किया गया।

समन्वयक के रूप में पन्नीरसेल्वम ने छह अप्रैल 2021 के विधानसभा चुनाव से कुछ दिनों पहले अन्नाद्रमुक में विभाजन की आशंकाओं को टाल दिया था, जब राज्य के कई मंत्रियों ने पार्टी के नेतृत्व और मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार को लेकर अलग-अलग राय जाहिर की थी। पनीरसेल्वम ने तब पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर पार्टी को टूटने से बचाया था।

जयललिता की गैर-मौजूदगी में दोनों नेताओं ने द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के खिलाफ चुनावी लड़ाई में अन्नाद्रमुक का नेतृत्व किया। हालांकि, वे सत्ता बरकरार रखने में नाकाम रहे।

पांच दशक से अधिक समय से राजनीति में सक्रिय पनीरसेल्वम ने 1996 से 2001 के बीच पेरियाकुलम नगरपालिका के अध्यक्ष और 2006 में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में कार्य किया।

अपने शांत स्वभाव और ट्रेडमार्क मुस्कान के लिए जाने जाने वाले पनीरसेल्वम 21 अगस्त 2017 को उपमुख्यमंत्री बने थे, जब उनके गुट का पलानीस्वामी के समूह में विलय हो गया था। 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने विधानसभा में विपक्ष का उपनेता बनना स्वीकार कर लिया, जिससे नेता प्रतिपक्ष का पद पलानीस्वामी को मिल गया।

पनीरसेल्वम की मुश्किलें इस साल 14 जून से शुरू हुईं, जब अन्नाद्रमुक के कई नेताओं और जिला सचिवों ने चुनाव में शर्मनाक प्रदर्शन का हवाला देते हुए एकल नेतृत्व के पक्ष में आवाज उठानी शुरू कर दी। उन्होंने पनीरसेल्वम और पलानीस्वामी की अगुवाई वाली मौजूदा दोहरी नेतृत्व व्यवस्था का जबरदस्त विरोध किया।

पार्टी के महज दो विधायकों द्वारा समर्थित पनीरसेल्वम ने अन्नाद्रमुक की बागडोर अपने हाथों में लेने की पलानीस्वामी की कोशिशों को नाकाम करने की उम्मीद में 23 जून को आम परिषद की बैठक से बहिर्गमन किया। हालांकि, उनके ‘मौन’ विरोध ने पार्टी के कई नेताओं का गुस्सा भड़का दिया।

पलानीस्वामी, जिन्हें अन्नाद्रमुक के 75 जिला सचिवों और 66 विधायकों में से अधिकांश का समर्थन हासिल है, उन्होंने सोमवार को आम परिषद की बैठक की, जिसमें उन्हें अंतरिम महासचिव नियुक्त करते हुए पन्नीरसेल्वम और उनके समर्थकों को पार्टी से निकालने का फैसला लिया गया।



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