बसपा में ‘धमाके पर धमाका’ मायावती सेे नाराज नेताओं में पार्टी छोडऩे की ‘होड़’

Edited By ,Updated: 24 Aug, 2016 12:18 AM

angry leaders left the bsp

चुनावों का मौसम आते ही विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं में पाला बदलने का खेल शुरू हो जाता है और इन दिनों यही हो रहा है।

चुनावों का मौसम आते ही विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं में पाला बदलने का खेल शुरू हो जाता है और इन दिनों यही हो रहा है। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बीच भारी उथल-पुथल जारी है। सपा जहां ‘यादव परिवार’ में व्याप्त अंतर्कलह को लेकर चर्चा में है वहीं बसपा के नेताओं में पार्टी नेतृत्व के विरुद्ध असंतोष स्वरूप इसे छोड़ कर जाने की होड़-सी लगी हुई है।

22 जून को प्रदेश बसपा अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी में ‘घुटन’ महसूस करते हुए त्यागपत्र दे दिया और मायावती को ‘दलित’ की नहीं ‘दौलत की बेटी’ बताते हुए उन पर पार्टी टिकटों की ‘नीलामी’ करने, वर्करों को ‘गुमराह’ करने तथा ‘गुलाम’ बनाने का आरोप लगाया।

इसके बाद 30 जून को प्रदेश बसपा के एक अन्य प्रमुख नेता आर.के. चौधरी ने पार्टी छोड़ दी व मायावती पर धन उगाही का आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘वह पार्टी में टिकट बंटवारे को लेकर जमकर रुपयों की लूट-खसूट करती हैं और बसपा एक ‘रियल एस्टेट कम्पनी’ बन कर रह गई है।’’

बसपा में तीसरा धमाका 3 जुलाई को हुआ जब बसपा के प्रदेश नेतृत्व से दुखी होकर पंजाब बसपा के महासचिव एवं पूर्व जिला परिषद सदस्य बलदेव सिंह खैहरा ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। इसके एक सप्ताह बाद ही 12 जुलाई को पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और बंगाल एवं झारखंड के प्रभारी रहे परमदेव यादव और सीतापुर के बसपा नेता इंद्रपाल राजवंशी ने अपने समर्थकों सहित पार्टी छोड़ दी।

परमदेव यादव ने आरोप लगाया कि ‘‘32 वर्ष तक मैं पार्टी का वफादार सिपाही रहा लेकिन आज मुझे मायावती से मिलने के लिए को-आर्डीनेटर से समय लेने को कहा जाता है और वह मुझसे पूछता है कि मैं पार्टी में कितना धन जमा करवा रहा हूं?’’ ‘‘बसपा ठेकेदारों, माफिया व गुंडों की पार्टी और परचून की दुकान बन गई है जहां पंचायत के सदस्य से विधानसभा के सदस्य तक के लिए टिकट की कीमत चुकानी पड़ती है। पार्टी में लोगों की आवाज दबाई जा रही है।’’

बसपा में विद्रोह का सिलसिला यहीं पर नहीं रुका तथा दो बार सांसद रह चुके, मायावती के करीबी और ‘बसपा का ब्राह्मïण चेहरा’ ब्रजेश पाठक बसपा में भारी भ्रष्टïाचार और अफरा-तफरी का आरोप लगाते हुए बड़ी संख्या में अपने साथियों सहित 22 अगस्त को भाजपा में शामिल हो गए। इससे एक दिन पूर्व ही उन्हें मायावती की एक रैली का प्रबंध करते हुए देखा गया था जिससे समझा जा सकता है कि आज राजनीति किस कदर अनिश्चित और आदर्श तथा सिद्धांतों से कोरी हो चुकी है।

कल तक जो मायावती का गुणगान करते रहे थे अब वही उनकी धुर विरोधी विचारधारा वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गुणगान करते हुए कह रहे हैं कि ‘‘केवल उनका विकास मॉडल ही उत्तर प्रदेश को अब बचा सकता है।’’
मायावती द्वारा राज्यसभा में न भेजने, ‘सर्वसमाज’ की उपेक्षा, ब्राह्मïण समाज के प्रति कटुता की भावना पालने व पिछले चुनावों में आपराधिक तत्वों को टिकट देने पर श्री पाठक नाराज थे। वह बसपा के अत्यंत प्रभावशाली ब्राह्मïण नेताओं में गिने जाते थे और इनका अलगाव बसपा के लिए बड़ा आघात है।

अभी तक बसपा विद्रोह और असंतोष से बची हुई थी परन्तु  अब इसमें भी कमजोरियां घर करती जा रही हैं और पार्टी में व्याप्त मतभेदों तथा असंतोष के कारण पिछले मात्र डेढ़ महीने में स्वामी प्रसाद मौर्य, आर.के. चौधरी, बलदेव सिंह खैहरा, परमदेव यादव, इंद्रपाल राजवंशी, ब्रजेश पाठक तथा उनके साथियों के अलावा इसके 2 विधायक भी पार्टी छोड़ चुके हैं।

जैसा कि हम पहले भी लिख चुके हैं, उत्तर प्रदेश के अगले चुनावों में अभी तक तो मुकाबला बसपा और सपा में दिखाई देता था परन्तु मात्र डेढ़ महीने में ही हुए नाटकीय घटनाक्रम में जहां भाजपा और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपने पैर मजबूत किए हैं, वहीं सपा और बसपा कमजोर हुई हैं।

यह घटनाक्रम सपा और बसपा दोनों के ही नेताओं के लिए एक सबक है कि यदि सदस्य किसी मुद्दे पर नाराजगी जताते हैं तो उन्हें उनकी बात अनसुनी करने की बजाय उस पर ध्यान देकर उनकी शिकायत दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा न करने के कारण ही सपा और बसपा को आज इस स्थिति से दो-चार होना पड़ रहा है।          
      —विजय कुमार

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