ब्रिटेन के चुनावों में कंजर्वेटिव पार्टी बहुमत पाने में विफल गठबंधन सरकार बनाने की कोशिशें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Jun, 2017 01:15 AM

conservative party attempts to form a coalition government to get majority

डेविड कैमरून द्वारा जनमत संग्रह के जरिए यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने के बाद प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने के परिणामस्वरूप कंजर्वेटिव पार्टी की ...

डेविड कैमरून द्वारा जनमत संग्रह के जरिए यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने के बाद प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने के परिणामस्वरूप कंजर्वेटिव पार्टी की ‘टैरेसा मैरी मे’ 1& जुलाई, 2016 को ब्रिटेन की दूसरी महिला प्रधानमंत्री बनीं। उनसे पहले ‘आयरन लेडी’ के नाम से प्रसिद्ध मारग्रेट थैचर 4 मई 1979 से 28 नवम्बर 1990 तक इंगलैंड की प्रधानमंत्री रहीं।

यूरोपीय संघ (ई.यू.) से बाहर आने के ब्रिटेन के फैसले को प्रभावशाली तरीके से अमल में लाने के लिए ‘टैरेसा मे’ ने चुनाव से तीन साल पहले ही जनमत जानने के लिए देश में चुनाव करवाने का फैसला किया जिसके अंतर्गत 8 जून को ब्रिटेन में मतदान हुआ। उल्लेखनीय है कि इंगलैंड में प्रधानमंत्री का कार्यकाल 4 वर्ष होता है परंतु ‘टैरेसा मे’ ने अपने कार्यकाल के एक वर्ष बाद ही चुनाव करवाने का फैसला कर लिया।

इसमें सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी का मुकाबला मुख्य प्रतिद्वंद्वी लेबर पार्टी के उम्मीदवार ‘जेरेमी कोरबिन’ के अलावा लिबरल डैमोक्रेट ‘टिम फैरेन’ तथा ‘यू.के.आई.पी.’ के प्रत्याशी पाल नटाल के बीच था।

इन चुनावों में नागरिकों को प्रभावित करने वाले 2 मुख्य मुद्दे ‘ब्रेग्जिट’ (अर्थात यूरोपीय संघ से अलगाव) और आतंकवाद थे। इन मुद्दों को दोनों ही प्रमुख उम्मीदवारों ने अपने-अपने ढंग से उठाया। ‘टैरेसा मे’ का इस संबंध में कहना था कि ‘‘ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के आगे झुकना न पड़े इस लिए देश को मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है।’’

इसी प्रकार उन्होंने अपने चुनाव प्रचार अभियान में आतंकवादी हमलों से निपटने के लिए भी कड़े पग उठाने का वादा किया और साथ ही शरणाॢथयों के प्रति नीति को बदलने का संकेत भी दिया।

गत 23 मई को मैनचैस्टर में एक कंसर्ट (गीत-संगीत का कार्यक्रम) में आई.एस. के बम हमले में अनेक ब"ाों सहित 22 लोगों की मौत और लगभग 5 दर्जन लोगों के घायल होने की घटना के परिणामस्वरूप ‘टैरेसा मे’ की प्रतिष्ठïा को लगे आघात के बावजूद मतदान से ठीक पहले के सर्वेक्षणों में 44 प्रतिशत मतदाताओं को कंजर्वेटिव पार्टी के पक्ष में तथा &6 प्रतिशत मतदाताओं को लेबर पार्टी के पक्ष में बताया जा रहा था।

परंतु समय से पहले चुनाव कराने का दांव खेलना ‘टैरेसा मे’ को उल्टा पड़ा तथा पूर्व अनुमानों को झुठलाते हुए कंजर्वेटिव पार्टी को इन चुनावों में करारा झटका लगा जब 650 सीटों वाली संसद में बहुमत के लिए वांछित &26 सीटें प्राप्त करने में यह विफल रही तथा 318 सीटों पर ही सिमट गई।

इन चुनावों में बहुमत न मिल पाने के कारण ‘जेरेमी कोरबिन’ (लेबर पार्टी) ने ‘टैरेसा मे’ से यह कहते हुए इस्तीफा मांगा कि उन्होंने जनादेश प्राप्त करने की इ‘छा से चुनाव करवाए थे परंतु वह इसमें विफल रही हैं और उनका जनाधार छिन गया है परंतु ‘टैरेसा मे’ ने यह कहते हुए अपने पद से त्यागपत्र देने से इंकार कर दिया कि देश को इस समय स्थिरता की जरूरत है।

राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि त्रिशंकु संसद अस्तित्व में आने से देश में नई अनिश्चितताएं पैदा हो जाएंगी क्योंकि देश इस समय यूरोपीय संघ छोडऩे संबंधी वार्ता की तैयारी कर रहा है।

‘टैरेसा मे’ की यह चुनावी विफलता कुछ वैसी ही है जैसे भारत में 19 मार्च 1998 से 19 मई 2004 तक श्री वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा नीत राजग सरकार के दौर में कुछ नई योजनाएं शुरू करके विकास दर में वृद्धि एवं महंगाई दर को स्थिर रखने में मिली सफलता और 2003 में 3 राज्यों में जीत से उत्साहित होकर राजग सरकार ने एकदम लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी थी।

तब अपने प्रचार अभियान में सभी नेता ‘इंडिया शाइनिंग’ का राग अलापते रहे लेकिन 2004 के चुनावों में भाजपा का ‘इंडिया शाइङ्क्षनग’ नारा नहीं चल पाया और राजग को पराजित करके मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस नीत यू.पी.ए. सरकार सत्ता में आ गई।

बहरहाल अब जबकि ‘टैरेसा मे’ पूर्ण बहुमत प्राप्त करने में विफल रही हैं, उनके लिए स्वयं को पहले वाली स्थिति में रख पाना संभव नहीं होगा। लिहाजा अब वह सरकार बनाने के लिए रानी एलिजाबेथ से अनुमति प्राप्त करने के बाद 10 सीटें जीतने वाली डैमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी का सहयोग लेगी। यदि कंजर्वेटिव पार्टी कोई स्पष्ट विकल्प न पेश कर सकी तो देश में दोबारा चुनाव करवाने होंगे।     —विजय कुमार  

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