महबूबा की पाक के साथ वार्ता करने की निरर्थक सलाह

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Feb, 2018 01:45 AM

redundant advice for mehboobas talks with pak

भारत से वर्षों की शत्रुता व 3-3 युद्धों के बाद भी जब पाकिस्तान कुछ न पा सका तो नवाज शरीफ ने 21 फरवरी 1999 को श्री वाजपेयी को लाहौर आमंत्रित करके आपसी मैत्री व शांति के लिए लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए परंतु सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने न तो श्री...

भारत से वर्षों की शत्रुता व 3-3 युद्धों के बाद भी जब पाकिस्तान कुछ न पा सका तो नवाज शरीफ ने 21 फरवरी 1999 को श्री वाजपेयी को लाहौर आमंत्रित करके आपसी मैत्री व शांति के लिए लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए परंतु सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने न तो श्री वाजपेयी को सलामी दी और न ही शरीफ द्वारा श्री वाजपेयी के सम्मान में दिए भोज में शामिल हुआ। 

यही नहीं मई 1999 में कारगिल पर हमला करके 527 भारतीय सैनिकों को शहीद करवाने व पाकिस्तान के 700 सैनिकों को मरवाने के पीछे भी परवेज मुशर्रफ का ही हाथ था। पाकिस्तानी शासकों और वहां की सेना की भारत विरोधी नीतियों के बावजूद भारत सदैव पाकिस्तान से संबंध सुधारने की कोशिश करता रहा है। जहां 2004 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान जाने वाले अंतिम प्रधानमंत्री थे, वहीं 25 दिसम्बर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-पाकिस्तान रिश्तों को नया आयाम देने के लिए काबुल (अफगानिस्तान) से नई दिल्ली लौटते समय बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के नवाज की दोहती की शादी में लाहौर पहुंच कर नवाज शरीफ से सद्भावना भेंट की। 

इसे पाकिस्तान से संबंध सुधारने की दिशा में बहुत बड़ा कदम माना गया था परंतु पाकिस्तानी शासन प्रणाली पर सेना के हावी होने के कारण इसका कोई लाभ नहीं हुआ तथा दोनों देशों में युद्ध की स्थिति बनी हुई है। जम्मू-कश्मीर में पुलिस व सेना को निशाना बनाकर किए जाने वाले आतंकवादी हमलों तथा सीमा पार से युद्ध विराम के उल्लंघन के मामलों में तेजी आई है तथा तीन वर्ष में पाकिस्तान ने 834 युद्ध विराम उल्लंघन किए हैं। पूर्व वित्त एवं गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के अनुसार कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में 2014 में 28 आम नागरिक और 47 जवान मारे गए थे जबकि 2015 में 17 आम नागरिक और 39 जवान, 2016 में 15 आम नागरिक और 82 जवान तथा 2017 में 57 आम नागरिक और 83 सुरक्षाबलों के सदस्यों की मृत्यु हुई और यह सिलसिला अब भी जारी है। 

इस समय सीमा पर युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है, जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने हालात का हवाला देते हुए कश्मीर में सशस्त्र सेनाओं को विशेष अधिकार देने वाला ‘सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून’ (अफस्पा) हटाने से इंकार किया है। महबूबा के अनुसार ‘‘कश्मीर की बिगड़ती सुरक्षा स्थिति की वजह से ही घाटी में सेना की तैनाती में बढ़ौतरी हुई है...भारतीय सेना दुनिया में सबसे ज्यादा अनुशासित है और वे सुरक्षा व्यवस्था बेहतर करने में जुटे हुए हैं...उन्हीं की वजह से हम आज यहां पर हैं...उन्होंने काफी बलिदान दिए हैं। यदि स्थिति बिगड़ती है तो सुरक्षा बलों की संख्या में और वृद्धि होगी।’’ 

इसी प्रकार महबूबा मुफ्ती ने एक अन्य बयान में पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में सैनिकों के शहीद और घायल होने की घटनाओं पर दुख जताते हुए भारत और पाकिस्तान में शांति एवं सुलह की प्रक्रिया को फिर से शुरू करने पर जोर दिया है। महबूबा अपने भाषणों में अक्सर इस बात पर जोर देती रही हैं कि, ‘‘जो कुछ भी हमें मिलेगा वह भारत सरकार से ही मिलेगा तथा पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंधों का होना जरूरी है।’’ जहां महबूबा ने उचित रूप से अफस्पा का समर्थन किया है वहीं उनकी सरकार ने शोपियां जिले में सेना के जवानों पर पथराव व एक जे.सी.ओ. को पीट-पीट कर मारने का प्रयास करने वाले पत्थरबाजों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय अपने बचाव में गोली चलाने वाले सेना के जवानों के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज करवा के अपने दोहरे मापदंडों का परिचय भी दे दिया है। 

इसी प्रकार भारत को पाकिस्तानी शासकों से वार्ता एवं सुलह की नसीहत दे रही महबूबा भूली नहीं होंगी कि अतीत में पाकिस्तान से शांति प्रक्रिया शुरू करने की भारत कितनी ही बार पहल कर चुका है पर हर बार पाक ही इससे पीछे हटा और भारत पर पलट कर वार किया, जो अभी भी जारी है। लिहाजा इन हालात में तो यही कहा जा सकता है कि जब तक पाकिस्तान के शासन पर सेना का वर्चस्व बना रहेगा तब तक उसके साथ शांति प्रक्रिया की बहाली की आशा करना निरर्थक ही होगा, इसलिए महबूबा की सलाह कोई मायने नहीं रखती।—विजय कुमार 

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