क्या मोदी पार्टी व सरकार पर ‘अपनी पकड़’ बनाए रख सकेंगे

Edited By ,Updated: 02 Jan, 2015 03:46 AM

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए एक घटनाक्रमपूर्ण 2014 के बाद वर्ष 2015 के बारे में ‘क्रिस्टल बाल’ क्या कहता है? नि:संदेह मोदी वर्ष के व्यक्ति के रूप में उभरे हैं जबकि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ...

(कल्याणी शंकर) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए एक घटनाक्रमपूर्ण 2014 के बाद वर्ष 2015 के बारे में ‘क्रिस्टल बाल’ क्या कहता है? नि:संदेह मोदी वर्ष के व्यक्ति के रूप में उभरे हैं जबकि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तथा आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल वर्ष के ‘लूजर’ थे। नया वर्ष आवश्यक रूप से परिणाम देने वाला  होगा। अभी तक प्रधानमंत्री अपनी शानदार विजय के गौरव का मजा उठा रहे हैं मगर यह हनीमून कब तक जारी रहेगा, इसका कुछ पता नहीं। उन्होंने अत्यधिक आशाएं जगा दी हैं और विश्व देख रहा है कि क्या उनकी जादू की छड़ी काम करेगी? राष्ट्रीय स्तर पर मानसिकता में बदलाव लाना एक बड़ी चुनौती होगी जिसका शीघ्र ही उन्हें एहसास हो जाएगा।

अभी तक सब कुछ मोदी के अनुसार हो रहा है। गत कुछ महीनों में उन्होंने भाजपा के साथ-साथ सरकार में भी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अत्यधिक अच्छा कार्य किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय की प्रमुखता को फिर से बहाल और मंत्रिमंडल में अपना अधिकार स्थापित किया है। उन्होंने लाल कृष्ण अडवानी तथा डा. मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ पार्टी नेताओं को दरकिनार करके पार्टी में अपनी सर्वोच्चता स्थापित की है। उन्होंने सहयोगियों को भी उनका स्थान दिखाया है। अब प्रश्न यह है कि क्या वह पार्टी तथा सरकार पर अपनी पकड़ बनाए रख सकेंगे? उनके विरोधी उनके फिसलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

राजनीतिक तौर पर भाजपा ने 2014 में महाराष्ट्र, हरियाणा तथा झारखंड में सरकारें बनाई हैं। यह जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने की प्रतीक्षा कर रही है। मोदी ने इन राज्यों में अपने चुनिंदा व्यक्तियों को मुख्यमंत्री बनाया है। नए वर्ष की शुरूआत फरवरी में दिल्ली के चुनावों से हो रही है जिसके बाद बिहार में चुनाव होंगे। दिल्ली बेशक छोटा राज्य है मगर यह भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहले पार्टी का गढ़ था। आम आदमी पार्टी एक चुनौती बनी हुई है और दिल्ली के चुनाव 2015 के लिए रुझान बनाएंगे।

बिहार एक बहुत महत्वपूर्ण राज्य है क्योंकि इसने 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की झोली में अच्छी संख्या में सीटें डाली थीं। उपचुनावों में जद(यू)-राजद गठबंधन ने भाजपा को अच्छी चुनौती दी थी। मोदी तथा इनके पार्टी प्रमुख अमित शाह बिहार को जद(यू) से छीनने के लिए पूरे प्रयास कर रहे हैं। वहीं जनता परिवार गठन की प्रक्रिया में है और बिहार के चुनाव पहला परीक्षण होंगे कि यह सफल होगा कि नहीं। 2016 में बड़ी चुनौतियों के रूप में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में चुनाव होंगे।

मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं और कुछ हद तक कांग्रेस को कमजोर करने में सफल हुए हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस लगभग सभी विधानसभा चुनावों में बुरी तरह से पराजित हुई है। दुर्भाग्य से कांग्रेस दिल्ली अथवा बिहार में अच्छी स्थिति में नहीं है और परिणामस्वरूप पार्टी के मनोबल में और गिरावट आएगी। वर्ष 2015 दिखाएगा कि क्या कांग्रेस दोबारा उभरेगी अथवा नहीं। नया वर्ष राहुल गांधी के नेतृत्व के लिए भी एक चुनौती होगा।

अरविन्द केजरीवाल, जो गत वर्ष जनादेश मिलने के बाद सरकार चलाने में असफलता के बावजूद दिल्ली के चुनावों में अच्छा करने की आशा कर रहे हैं, के लिए 2015 एक चुनौती है। यदि उनकी पार्टी कुछ अच्छा परिणाम नहीं दिखा पाई तो उसे कभी न कभी अपना बोरिया-बिस्तर समेटना होगा। उनकी तानाशाहीपूर्ण कार्यप्रणाली को लेकर पार्टी में पहले ही काफी सुगबुगाहट चल रही है। उनके लिए यह ‘करो या मरो’ की जंग होगी।

वामदल, जिनका पश्चिमी बंगाल से भी लगभग सफाया हो गया है, से बिहार के सिवाय आने वाले विधानसभा चुनावों में कुछ कर दिखाने की आशा नहीं है, जहां कुछ क्षेत्रों में भाकपा का प्रभाव है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु तथा ओडिशा जैसे राज्यों में क्षेत्रीय क्षत्रप राजनीतिक रूप से अच्छी कारगुजारी दिखाना जारी रखे हुए हैं। मोदी एक संघीय ढांचे तथा टीम के तौर पर मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकर काम करने की बात करते हैं। इस संबंध में अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है क्योंकि गैर-राजग राज्यों के मुख्यमंत्री बैठकों में अपनी पार्टी की नीतियों के अनुसार बात रखते हैं। ममता बनर्जी जैसे मुख्यमंत्री युद्ध पथ पर अग्रसर हैं।

यद्यपि अधिकतम प्रशासन तथा न्यूनतम सरकार बारे बहुत कुछ कहा गया है, वर्ष 2015 मोदी की नीतियों को लागू करने के लिए महत्वपूर्ण होगा। वह स्वच्छ भारत तथा जन-धन योजना जैसे विचारों के साथ आगे आने में सक्षम रहे हैं मगर उनका कौशल नीतियों को लागू करना सुनिश्चित करने में निहित है। उन्हें बाबुओं तथा मंत्रियों की जवाबदेही निश्चित करनी चाहिए। आर्थिक तथा वित्तीय सहित कई क्षेत्रों में सुधारों की जरूरत है। राज्य सभा में भाजपा की अल्पसंख्यक स्थिति महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करवाने में समस्या पैदा कर सकती है हालांकि मोदी सरकार ने अध्यादेश का रास्ता अपनाया है। आगामी बजट अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन के लिए महत्वपूर्ण है मगर बजट राशि बिलों से अधिक विधेयक सुनिश्चित नहीं कर सकते।

मोदी को सबसे महत्वपूर्ण चुनौती संभवत: संघ परिवार के महत्वहीन तत्वों से मिल सकती है। ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जिन पर यह तत्व अलग विचार रखते हैं जिनमें राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और यहां तक कि ड्रैस कोड शामिल है। जहां मोदी व उनकी सरकार केवल विकास को अपना एजैंडा बनाए हुए है, क्या वह ऐसे तत्वों को नियंत्रित कर पाएंगे अथवा करना चाहते हैं? यह अगले वर्ष मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगी जब उन्हें यह निर्णय लेना होगा कि क्या अर्थव्यवस्था के पुनर्उत्थान के लिए वह अपना राजनीतिक भविष्य जोखिम में डाल सकते हैं और ऐसे महत्वहीन तत्वों को दरकिनार करने से उनके विकास के एजैंडे का पटरी से उतरना निश्चित है।

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