चिदम्बरम के ‘लैटर बम’ के निशाने पर सोनिया

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Sep, 2017 01:57 AM

chidambarams letter bomb targets sonia

ऐन वक्त जबकि पी.चिदम्बरम के पुत्र कार्ति चिदम्बरम के ऊपर कानून का शिकंजा निरंतर कसता जा रहा....

ऐन वक्त जबकि पी.चिदम्बरम के पुत्र कार्ति चिदम्बरम के ऊपर कानून का शिकंजा निरंतर कसता जा रहा है, वैसे भी मोदी सरकार के निशाने पर हैं अपने बड़बोलेपन के लिए मशहूर चिदम्बरम। सत्ता में रहते हुए चिदम्बरम ने हर मुद्दे पर भाजपा पर सदैव तीखा हमला बोला था। सो, जब इस बार चिदम्बरम चारों ओर से घिर गए और उनके पुत्र के जेल जाने के आसार बढऩे लगे तो उन्होंने सोनिया व राहुल से मिलने का समय मांगा। चिदम्बरम इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित थे कि उनके पुत्र के बचाव में कांग्रेस पार्टी या उसका कोई भी नेता सामने नहीं आ रहा है। 

सूत्र बताते हैं कि इसके बाद पी.सी. ने सोनिया गांधी से फोन पर बात करनी चाही पर सोनिया लाइन पर नहीं आईं। राहुल गांधी के अमरीका रवाना होने से 3 दिन पहले से पी.सी. उनसे मिलने का समय मांग रहे थे, पर उनके अनुग्रह और फरियाद को जब गांधी परिवार ने अनसुना कर दिया तो आपे से बाहर हो गए चिदम्बरम ने (सूत्रों के मुताबिक) कांग्रेस अध्यक्षा को एक तीखा पत्र लिखा, जिसका मजमून था कि ‘अगर उनका बेटा जेल चला गया तो यह किसी के लिए ठीक नहीं होगा, न उनके लिए, न पार्टी के लिए और न गांधी परिवार के लिए।’ चिदम्बरम का इस पत्र में कहना था कि मंत्री रहते हुए उन्होंने जो कुछ किया, उसमें उन्होंने गांधी परिवार की हर आज्ञा को शिरोधार्य किया है, और उन्होंने सरकार, पार्टी व गांधी परिवार के लिए ही सब कुछ किया है। वे राजनीति छोड़ सकते हैं पर अपने पुत्र का त्याग नहीं कर सकते।’ 

जाहिर है चिदम्बरम के पत्र की भाषा में विद्रोह की गंूज साफ  सुनाई दे रही थी, इससे पहले कि उनका विद्रोह कोई आकार ले पाता, उन्हें 10 जनपथ से मिलने का बुलावा आ गया। उन्हें समझाया गया कि वे पार्टी के इतने वरिष्ठ नेता हैं, सो उन्हें ऐसी भाषा शोभा नहीं देती। इसके बाद दोनों ओर से भावनात्मक विचारों के आदान-प्रदान हुए और अगले ही रोज कांग्रेस पार्टी चिदम्बरम और कार्ति चिदम्बरम के बचाव में सामने आ गई, बाकायदा प्रैस कांफ्रैंस कर कांग्रेस को पी.सी. और उनके पुत्र का बचाव करना पड़ा। 

उद्धव का राज बेपर्दा हुआ
मोदी व शाह जोड़ी द्वारा सियासत के हाशिए पर धकेल दिए गए उद्धव ठाकरे को अपने बागी भाई राज ठाकरे की याद आने लगी है। वैसे राज के अच्छे दिन भी रूठकर उनसे वापस चले गए हैं और वे महाराष्ट्र की राजनीति में बदलते वक्त के साथ और भी गैर प्रासंगिक होते चले जा रहे हैं। त्रासद है कि राज के पुत्र एक असाध्य बीमारी से ग्रस्त बताए जाते हैं, सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों राज के पुत्र को देखने के लिए उद्धव अस्पताल पहुंचे। फिर दोनों भाइयों ने आपसी गिले-शिकवे भुलाकर देर तक बातचीत की। उद्धव ने अपने चचेरे भाई से आग्रह किया कि अब बहुत हुआ, वे फिर से शिवसेना का हिस्सा बनें, तो पार्टी में उन्हें नंबर दो की जगह मिल जाएगी। 

कमोबेश राज इस बात के लिए तैयार दिखे, फिर उद्धव ने अपनी पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं को राज से निर्णायक बातचीत के लिए उनके पास भेजा, पर उद्धव की नुमाइंदगी कर रहे इन दोनों नेताओं ने राज के समक्ष कुछ ऐसी शर्तें रखीं जिसे सुनकर राज अपना आपा खो बैठे। इनमें से पहली शर्त थी कि शिवसेना में वापसी के अगले 3 वर्ष तक राज को पार्टी या सरकार में कोई पद नहीं मिलेगा। और न ही वे अपने लोगों के लिए संगठन में पैरवी कर सकते हैं और न ही उन्हें आगामी किसी चुनाव में 3 वर्ष तक टिकट दिलवा सकते हैं, राज ने हुंकार भरी और उन दोनों सेना नेताओं को घुड़कते हुए कहा कि ‘यानी आप मेरा इस्तेमाल सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए करना चाहते हो, पर बदले में कुछ देना नहीं चाहते।’ उद्धव तक राज का संदेशा चला गया है, अगर उद्धव को बात आगे बढ़ानी है तो उन्हें दो कदम आगे बढऩा ही होगा। 

भाजपा देख तेरा मुंडा बिगड़ा जाए
झारखंड में जहां एक ओर वहां के मुख्यमंत्री रघुबर दास अपनी सरकार के 1000 दिन पूरा होने का जश्न मनाने में जुटे हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा पार्टी द्वारा अपनी उपेक्षाओं के गम से उबर नहीं पा रहे हैं। अपनी निरंतर उपेक्षा से आहत मुंडा ने पिछले दिनों रांची में अपने समर्थक विधायकों को रात के भोजन पर आमंत्रित किया, सूत्र बताते हैं कि इस डिनर में भाजपा के आठ से ज्यादा विधायक शामिल हुए। सूत्रों की मानें तो इस डिनर में मुंडा ने व्यथित भाव से अपने समर्थक विधायकों से कहा कि ‘आज प्रतिकूल हालात हैं, उनके धैर्य की परीक्षा ली जा रही है, यहां तक कि उनका राजनीतिक अस्तित्व भी संकट में पड़ता जा रहा है, ऐसे में उनके पास विकल्प भी कम होते जा रहे हैं। 

कहते हैं मुंडा ने अपने विधायकों को पूछा कि अगर वे कोई बड़ा फैसला लेते हैं तो यहां मौजूद कितने लोग उनका साथ देंगे। सभी 8 विधायकों ने अपने हाथ खड़े कर दिए, भावुक हो आए मुंडा ने उन विधायकों से कहा कि वे जल्द बताएंगे कि उनका अगला बड़ा कदम क्या होगा। डिनर समाप्त हुआ, पर इसकी आग जलती रही। खबर रघुबर दास को भी लग गई। कहते हैं उन्होंने फौरन अमित शाह को फोन कर उन्हें पूरे हालात की जानकारी दी। जो मुंडा पिछले 3 साल से मोदी व शाह से मिलने को तरस गए थे, उन्हें दिल्ली तलब किया गया। कम से कम फिलवक्त तो अर्जुन मुंडा पार्टी तोडऩे की नहीं सोच रहे। 

धरा पर वसुंधरा
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा में अपने आगे की राजनीति को लेकर किंचित ऊहापोह में हैं। वह दिल्ली के निजाम की भंगिमाओं को पढऩे व समझने की लगातार मशक्कत कर रही हैं। सूत्र बताते हैं कि इस बार केंद्रीय मंत्रिमंडल के फेरबदल से ठीक एक रोज पहले वह प्रधानमंत्री से मिली थीं और कहते हैं कई नामों को लेकर मोदी ने उनसे विचार-विमर्श भी किया था। इनमें से एक नाम राज्यवद्र्धन सिंह राठौर का भी था। राज्यवद्र्धन को लेकर राजस्थान की महारानी की अपनी कुछ सोच थी, कुछ आशंकाएं थीं और उन्हें लगता था कि राठौर अवसरवादी राजनीति की उपज हैं, चुनांचे वसुंधरा ने राठौर को लेकर अपनी तमाम आपत्तियां मोदी दरबार में दर्ज करा दी थीं। वह वापस जयपुर लौट गईं। जब अगले रोज मंत्रिमंडल फेरबदल हुआ तो मोदी सरकार में राठौर को दंड के बजाय पारितोषिक दिया गया। हैरान-परेशान वसुंधरा, बस यही सोच रही थीं कि काश! उन्होंने अपने मन की बात मन में ही रखी होती। 

रूडी का दर्द
निर्मला सीतारमण को उनकी चुप्पी और वफादारी का ईनाम मिला है। दरअसल केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस हालिया फेरबदल से पहले जिन मंत्रियों को इस्तीफा देने को कहा गया था उनमें से एक नाम निर्मला का भी था। इसके बाद शाह की कोर टीम ने इस बात का जायजा लिया कि मंत्रिपद से हटाए जाने के बाद किस नेता की क्या प्रतिक्रिया रही। सूत्र बताते हैं कि सबसे असहज प्रतिक्रियाएं राजीव प्रताप रूडी और फग्गन सिंह कुलस्ते की थीं। टीम शाह ने पाया कि रूडी न केवल बेहद आक्रोशित थे, बल्कि उन्होंने कई अनर्गल प्रलाप भी किए। सूत्रों की मानें तो वे पिछले 8 महीनों से लगातार पी.एम. से अलग से मिलने का समय मांग रहे थे, पर उन्हें पी.एम.ओ. की ओर से यह समय ही नहीं दिया गया। 

यूं टली निर्मला पर बला
अब बात करते हैं चुप-सधे कदमों से सियासी फासले तय करने में सिद्धहस्त निर्मला सीतारमण की। सूत्र बताते हैं कि जैसे ही निर्मला से इस्तीफा मांगा गया, बगैर वक्त गंवाए वह शीर्ष नेतृत्व के पास पहुंचीं, दोनों हाथ जोड़ उनका आभार व्यक्त किया और विनम्र शब्दों में कहा-‘अपने साथ काम करने का मौका देकर आपने वाकई मुझे अनुग्रहित कर दिया है, मेरे लिए आपके मंत्रिमंडल में काम करना सबसे गौरव के क्षण रहे, मैं जीवन भर आपका यह अहसान नहीं भूलूंगी।’ 

सूत्र बताते हैं कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से भी मिलकर कमोबेश उन्होंने यही बातें दोहराईं। उन्होंने शाह से यहां तक कह डाला कि अगर पार्टी उन्हें संगठन में लेना चाहती है तो इसके लिए उन्हें किसी पद की भी आवश्यकता नहीं, वह नि:स्वार्थ भाव से पार्टी संगठन में काम करने की इच्छुक हैं। और अगर फिलवक्त पार्टी में भी उनके लायक कोई काम नहीं है तो वह अपने गांव जाकर अपने पति के साथ सुकून के दो पल गुजारना चाहती हैं।  

...और अंत में
इस दफे जब से राहुल गांधी अमरीका गए हैं, वे नए रंग-रोगन में सराबोर हैं, उनका खोया हुआ आत्मविश्वास भी लौट आया है और उनके अंदर एक नई अंत:दृष्टि भी विकसित हो गई है। आने वाले दिनों में सत्तारूढ़ दल को इस बात का अंदाजा हो जाएगा। इसकी पहली मिसाल राज्यसभा में स्थायी समितियों के अध्यक्ष की नियुक्तियों में दिख सकती है। जैसे न्याय व कानून पैनल की अध्यक्षता भाजपा कांग्रेस के बजाय अपने नए सहयोगी अन्नाद्रमुक को देना चाहती है। संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने इस बाबत राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद से बात की, पर यह बातचीत बेनतीजा रही। अनंत कुमार इस मसले पर सोनिया व राहुल से भी बात करना चाहते हैं, पर वहां से इस बाबत कोई सकारात्मक संदेश प्राप्त नहीं हुए हैं। राहुल अब कांग्रेस को एक जुझारू चेहरा देना चाहते हैं, पर इसके लिए उन्हें पहले राजनीति को पूर्णकालिक तौर पर अपनाना होगा।    

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