भारत की ‘मजबूत सैन्य क्षमता’ ही विरोधियों के दिल में डर पैदा कर सकती है

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Jan, 2018 03:09 AM

indias strong military capability can create fear in the hearts of opponents

हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में चीनी सड़क निर्माणकत्र्ताओं की घुसपैठ और मैकमोहन लाइन पर चीनी सैनिकों का जमावड़ा एक बड़े गतिरोध का संकेत दे रहा है, जोकि डोकलाम गतिरोध से भी गंभीर हो सकता है। ऐसे में हाल ही में चीन की ओर से जो मित्रता भरी चिकनी-चुपड़ी...

हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में चीनी सड़क निर्माणकत्र्ताओं की घुसपैठ और मैकमोहन लाइन पर चीनी सैनिकों का जमावड़ा एक बड़े गतिरोध का संकेत दे रहा है, जोकि डोकलाम गतिरोध से भी गंभीर हो सकता है। ऐसे में हाल ही में चीन की ओर से जो मित्रता भरी चिकनी-चुपड़ी बातें सामने आई हैं, हमें उनके प्रति बहुत सतर्क रहना होगा क्योंकि चीनी विदेश मंत्री ने दिल्ली में आयोजित आर.आई.सी. शिखर वार्ता के बाद बिल्कुल दो टूक शब्दों में इसके विपरीत भावना वाला बयान दिया था कि डोकलाम प्रकरण ‘‘भारतीय सैनिकों द्वारा भारत-चीन सीमा को अवैध ढंग से पार करने’’ का परिणाम था। 

धूर्त चीन: ये घटनाएं चीन के धूर्ततापूर्ण रूप का प्रतिनिधित्व करती हैं, जोकि अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति के बूते अन्य देशों पर धौंस जमाने की नीति पर चलता है। यह नीति बिल्कुल किसी चालाक लोमड़ी जैसी है। इसलिए जहां चीन अपनी बढ़ रही आर्थिक शक्ति के बूते ‘‘एक शताब्दी तक जारी रहे अपमान’’ के बहाने अपने विस्तारवाद के पक्ष में दलीलें गढ़ता है, वहीं तीन दशक पूर्व ऐसी अकडफ़ूं कहीं दिखाई नहीं देती थी, जब इसने जापानियों द्वारा चीन में निवेश का स्वागत किया था और भारी उद्योग के लिए टैक्नोलॉजी हासिल करने की दृष्टि से दक्षिण कोरियाइयों पर डोरे डाले थे। ऐसे में डोकलाम पर अधिक बांछें खिलाने की बजाय हमें ठंडे मन से यह सोच-विचार करनी होगी कि चूंबी घाटी में चीनी सैनिकों और सैन्य साजो-सामान का भारी जमावड़ा तथा अर्धस्थायी ढांचे खड़े करना क्या हमेशा के लिए सॢदयों के मौसम में भी सैन्य तैनाती का संकेत नहीं? 

क्या डोकलाम में भारत का पलड़ा भारी रहा था? रणनीतिक दृष्टि से निश्चय ही भारत हावी रहा था, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टि से हमारी ओर से सैनिक और साजो-सामान की बारह मासी तैनाती संभव हो सकती है? इसका तात्पर्य यह नहीं कि विवादित सड़क का निर्माण करने के चीनी मंसूबों को समय रहते विफल न किया जाए। इस मुद्दे पर भारत को प्रथम सक्रियता का लाभ मिला था, इसलिए भारतीय सैनिकों को वहां से पीछे धकेलने के लिए हिंसा प्रयुक्त करने और टकराव शुरू करने की जिम्मेदारी चीन पर ही आई थी। 

टकराव में भारत का पलड़ा भारी था और अन्य देशों की नजरों में खुद का पक्ष सही सिद्ध करने में भी वह सफल रहा था, जबकि पेइचिंग कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं दे पाया था। लेकिन चीन ऐसा देश है, जो अपनी किरकिरी को आसानी से भूलता नहीं है। ऐसे में डोकलाम जैसे अगले टकराव  में बिल्कुल ही अलग स्थिति सामने आ सकती है। हो सकता है डोकलाम में दोबारा पहले जैसा पंगा न खड़ा हो, लेकिन चुमार या देपसांग में इस घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है क्योंकि चीन वाले वहां उनसे पहले पहुंच कर शिविर स्थापित कर चुके हैं। अब उन्हें वहां से खदेडऩे तथा वार्तालाप चलाने की जिम्मेदारी भारत की होगी। 

चार कदम: इस उलझन भरी स्थिति में से निकलने के लिए भारत को चार कदम उठाने होंगे, जिनमें से दो अल्पकालिक और दो दीर्घकालिक होंगे। सबसे पहले तो यह कि हमें चीन की ‘उदारता’ को निष्प्रभावी करने के लिए पड़ोसी देशों के साथ बढिय़ा संबंध स्थापित करने होंगे।

दूसरा: किसी भी आपात स्थिति के समक्ष भारत अल्पकालिक रूप में अपना हाथ ऊपर होते ही जश्न की मुद्रा में आ जाता है। लेकिन इस तरह की मुद्रा का दीर्घकालिक दृष्टि से लाभ नहीं होता। इसलिए जरूरी है कि पेइचिंग को यह चेतावनी दे दी जाए कि इसकी घुसपैठ की कोशिशें भारत के साथ इसके संबंधों के लिए शुभ नहीं होंगी। मीडिया के माध्यम से यह संकेत जाना चाहिए कि भारत कितना तैयार-बर-तैयार है। तीसरा और दीर्घकालिक महत्व वाला कदम यह होगा कि किसी भी प्रकार की सीमापारीय कोताही के मामले में जब हम कठोर मुद्रा अपनाते हैं तो उसी क्षण हमारी स्वदेशी सैन्य क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए सैन्य तैनाती होनी चाहिए। परमाणु और अंतरिक्ष मामलों के क्षेत्र में कोई तू-तू, मैं-मैं नहीं होती, क्योंकि ये दोनों राष्ट्रीय गरिमा के प्रतीक माने जाते हैं, तो क्या रक्षा क्षेत्र में हमारे द्वारा नई क्षमताएं हासिल करने के मामले में भी इसी तरह की मुद्रा नहीं अपनाई जा सकती? 

लंबी सीमाएं: डोकलाम में मैदान की रचना कुछ इस प्रकार थी कि उससे हमें लाभ मिला और दुनिया में हमारी प्रतिष्ठा बढ़ी, लेकिन हमारी सीमाओं पर हर जगह धरातल रचना डोकलाम जैसी नहीं है। ऐसे में भारत की सैन्य क्षमता ही प्रतिद्वंद्वी के हृदय में भय पैदा कर सकेगी और ऐसी क्षमता का प्रदर्शन हमारे राजनीतिक वर्ग के दोनों पक्षों के लिए एक-समान लक्ष्य होना चाहिए। चौथा कदम है सैन्य विनिर्माण की क्षमता। यह क्षमता रातों-रात हासिल नहीं की जा सकती। इसके लिए नए सिरे से फल-फूल रहे भारत-अमरीका संबंधों का लाभ लेते हुए रणनीतिक सांझेदारियां स्थापित करनी होंगी। तभी जाकर डोकलाम जैसे प्रकरणों की पुनरावृत्ति रुक सकेगी।-मनमोहन बहादुर    

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