क्या नवाज शरीफ का फिर वही हश्र होने वाला है

Edited By ,Updated: 01 Oct, 2016 02:03 AM

nawaz sharif is going to have the same fate

शरीफ इससे पहले भी दो बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। 1990 से लेकर 1993 तक और 1997-1998 में। दोनों बार पाकिस्तान के फौजी ...

शरीफ इससे पहले भी दो बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। 1990 से लेकर 1993 तक और 1997-1998 में। दोनों बार पाकिस्तान के फौजी तानाशाहों ने उन्हें गद्दी से उतार फैंका था। पहली बार जिया उल हक ने और दूसरी बार स्वयं उन्हीं के अपने ही नियुक्त किए हुए सेनापति जनरल परवेज मुशर्रफ ने। वर्तमान सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ की नियुक्ति नवाज शरीफ के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद ही हुई है।

पहले दोनों फौजी तानाशाहों ने नवाज शरीफ का तख्ता यह कह कर पलटा था कि वह इस गद्दी पर बैठे रहने के काबिल नहीं। क्या इतिहास फिर अपने आप को दोहराने वाला है? क्या उनका फिर वही हश्र होने वाला है?

यदि ब्रिटिश मीडिया में छपी रिपोर्टों की गहराई में जाएं तो आसार कुछ ऐसे ही नजर आ रहे हैं। प्रमुख दैनिक समाचारपत्र ‘द टाइम्स’ ने इस रविवार ‘शरीफ बनाम शरीफ’ के शीर्षक से एक लम्बी रिपोर्ट में कहा है कि एक तरफ तो भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ रहा है, दूसरी तरफ मुल्क के दो सबसे ज्यादा ताकतवर व्यक्तियों की आपस में ठन चुकी है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और जनरल राहील शरीफ दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने सीना ताने खड़े हैं। सत्ता हथियाने के लिए शरीफ के मुकाबले में शरीफ के संघर्ष में सारा पाकिस्तान उलझा हुआ है।

समाचार पत्र ने लिखा है कि जनरल राहील शरीफ बड़े लोकप्रिय चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (सेनापति) हैं। उन्होंने अपने 3 वर्ष के कार्यकाल की अवधि पूरी करके आने वाले नवम्बर मास में रिटायर होना है। लेकिन पिछले 20 वर्षों में पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि किसी सेनापति ने अवधिकाल पूरा होने पर पदवी यूं ही छोड़ दी हो।

नवाज शरीफ के बारे में समाचार पत्र ने कहा है कि फौज चूंकि पहले दो बार उनका तख्ता पलट चुकी है। इसलिए इस बार वह जनरल शरीफ को अवधि समाप्त होते ही रिटायर कर देना चाहते हैं। पाकिस्तानी सेना के पूर्व प्रमुख जनरल कियानी की रिटायरमैंट की मुद्दत बढ़ा दी गई थी। नवाज शरीफ पर दबाव पड़ रहा है कि राहील की नौकरी की मुद्दत बढ़ा दी जाए लेकिन वह इस मांग के आगे झुक नहीं रहे क्योंकि जिस शासकीय प्रशासन पर फौजी जनरलों ने एक लम्बे अर्से से कब्जा कर रखा है, वह उसे अब स्वयं अपने हाथ में लेना चाहते हैं।

3 वर्ष पहले नवाज ने जब हुकूमत संभाली थी, तब से फौज और प्रशासन के आपसी संबंधों में जो निरंतर तनाव रहा है, उसका प्रभाव देश पर और उसकी आर्थिक उन्नति पर पड़ा है। इस्लामी उग्रवादियों के बढ़ते खतरे की वजह से इन दोनों समस्याओं के हल की तरफ कोई ध्यान भी नहीं दिया जा सका।

जनरल राहील शरीफ की अवधि बढ़ाने के हक में एक प्रकार का प्रचार अभियान चला कर शहरों और नगरों में उसकी तस्वीरों के साथ बड़े-बड़े बोर्ड लगाए जा रहे हैं, यह बताने के लिए कि उसने देश के अंदर आतंकवाद खत्म कर दिया है। यह इसलिए कि उसे लोकप्रिय दिखा कर नवाज शरीफ के साथ उसकी टक्कर का वातावरण पैदा किया जाए और जैसा कि जिया उल हक और परवेज मुशर्रफ ने उसे अयोग्य घोषित करके उसका तख्ता पलटने का कोई न कोई बहाना बनाया था, उसी तरह अब फिर कोई न कोई चाल चली जाए। 

इस बात के चर्चे हैं कि जनरल राहील शरीफ अभी यह पद छोडऩा नहीं चाहता। इसलिए शरीफ और शरीफ की आपस में कशमकश चल रही है। जनरल शरीफ के बारे में माना जाता है कि फौज पर उसका पूरी तरह कंट्रोल है। फिर इस बात को भी नहीं भुलाया जाना चाहिए कि जिस मुशर्रफ ने नवाज का तख्ता पलट कर उसे पहले तो जेल भेजा और फिर देश निकाला दे रखा था, इतने घोर अपराधों और कड़े अदालती फैसलों के बावजूद उस मुशर्रफ का कुछ नहीं बिगड़  सका। वह बाहर का बाहर है। जनरल शरीफ और जनरल मुशर्रफ दोनों का निशाना एक है- नवाज शरीफ।

जनरल शरीफ अभी यद्यपि खुल कर नवाज शरीफ के सामने नहीं आए लेकिन यह महसूस किया जा रहा है कि भारत के साथ तनाव का वातावरण पैदा करने की कोशिशों के पीछे भी संभवत: उसी कशमकश का हाथ है, जो इन दोनों के बीच चल रही है ताकि ऐसी स्थिति में सेनापति को बदलने की बात भी न सोची जा सके। प्रेक्षकों ने एक बात विशेष रूप से नोट की है कि अगर नवाज शरीफ के हाव-भाव, चेहरे की भंगिमांओं, बॉडी लैंग्वेज को ध्यान से देखा जाए तो आजकल उनकी चाल-ढाल में वह सहजता नहीं, चेहरे पर फीकी-फीकी औपचारिक सी मुस्कुराहट है, इधर-उधर कुछ खोजती खोई-खोई सी आंखें, मानो दिल और दिमाग पर कुछ हावी हो, जो प्रतीक हो सकता है कुछ उन अनकही शंकाओं का, उन घटनाक्रमों की यादों का जब दो बार उनसे गद्दी छीनी गई थी।
 

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