रणवीर सेना के पीड़ितों को ‘न्याय’ दिलाने में नीतीश अब देर न करें

Edited By ,Updated: 25 Nov, 2015 11:39 PM

ranvir sena victims justice do not delay in getting nitish now

राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जद (यू) और कांग्रेस के महागठबंधन ने अभी-अभी बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगियों को बुरी तरह धूल चटाई है

(ए.के. बिस्वास) राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जद (यू) और कांग्रेस के महागठबंधन ने अभी-अभी बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगियों को बुरी तरह धूल चटाई है और बहुत सफलता से राजनीतिक नैतिकता का महत्व सुदृढ़ करवाया है। अब पराजित पक्ष को यह समझने में सहायता मिलेगी कि उसकी असहिष्णुता, अहंकार और आक्रामकता ने विशाल जनसमूहों के शांतमय जीवन और सिविल सोसाइटी को कितना खतरे में डाल दिया था। इस परिप्रेक्ष्य में राजद-जद (यू)-कांग्रेस महागठबंधन की जीत और भाजपा नीत गठबंधन की शर्मनाक पराजय के कारकों और कारणों पर ध्यान केन्द्रित होना स्वाभाविक ही है। 

प्रत्येक सफलता के माई-बाप बनने को तो अनेक लोग तैयार होते हैं। अभी डेढ़ वर्ष पूर्व संसदीय चुनाव में धमाकेदार जीत दर्ज करने वाले मोदी का हर ओर यशोगान हो रहा था और किसी को कानों-कान खबर नहीं थी कि बिहार की जनता उनकी पार्टी को इतने घृणापूर्वक ढंग से रद्द कर देगी। दोनों पक्षों की जीत और हार के स्थानीय कारण भी हैं जिन्हें केवल बिहार के लोग ही जानते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव हारने के बाद देश में भाजपा नीत राजग की यह पहली हाई प्रोफाइल पराजय है। भाजपा की इस पराजय में बिहार के स्थानीय भाजपा नेताओं ने महत्वपूर्ण आत्मघाती भूमिका अदा की है, लेकिन दिल्ली में बैठे भाजपा नेता शायद इस बारे में नहीं जानते। 

 
खुद को बिहार के नेता के रूप में प्रस्तुत करने वाले अति महत्वाकांक्षी लोगों पर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कोई नियंत्रण नहीं रहा। गत 1 जून को पटना के गांधी मैदान में स्थित एस.के. मैमोरियल हाल में रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्मेश्वरनाथ सिंह की बरसी पर विशाल सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस व्यक्ति ने वर्ष 1995 से 2000 के बीच 30 से भी अधिक नरसंहार अंजाम दिए थे जिनमें नृशंस ढंग से दलित, अल्पसंख्यक और ओ.बी.सी. से संबंधित महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों और युवकों को मौत के घाटउतारा गया था। बिहार के ग्रामीण जीवन में वहशी करतूतों को अंजाम देने वाले इस व्यक्ति का उक्तसम्मेलन में एक शहीद के रूप में यशोगान किया गया और इसदिन को ‘शहीदी दिवस’ के रूप में चित्रित किया गया। 
 
इस सम्मेलन में मांग की गई कि सरकार पटना में रणवीर सेना के इस वहशी प्रमुख की आदमकद प्रतिमा स्थापित करे। सम्मेलन में बिहार से संबंधित कम से कम दो पूर्व केन्द्रीय मंत्री भी उपस्थित थे जिन्होंने इस कातिल का गुणगान करने वालों के स्वर में स्वर मिलाया। 
 
रणवीर सेना के शिकार लोगों को न्याय न मिलने की शॄमदगी अभी तक देश झेल रहा है और उनके परिजनों के दिलों में गुस्से की ज्वाला बहुत तेजी से दहक रही है, इसके बावजूद उनकी आंखों के सामने बहुत ताम-झाम से ऐसा शर्मनाक आयोजन किया गया जो उनके भविष्य के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। ब्रह्मेश्वर शेखी बघारा करता था कि उसके आदमी महिलाओं की हत्या इसलिए करते हैं कि वे बच्चों को जन्म देती हैं और बच्चों की हत्या इसलिए करते हैं कि वे बड़े होकर नक्सलवादी बनते हैं। 
 
पटना से प्रकाशित होने वाले हिन्दी समाचार पत्रों सिवाय एक को छोड़कर, अन्य सभी ने ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या के दिन को ‘शहीदी दिवस’ के रूप में प्रचारित करने का संगठित अभियान चलाया। 
 
स्थानीय टैलीविजन चैनल भी ऐसे ही उत्साह के साथ इस अभियान में शामिल हुए। सम्मेलन में उपस्थित एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री का हवाला देते हुए एक हिन्दी समाचार पत्र ने लिखा, ‘‘मुखिया जी जैसे लोग इस धरती पर 100-200 वर्षों में एक बार ही पैदा होते हैं।’’ (उल्लेखनीय है कि ब्रह्मेश्वर के जातिबंधु उसे ‘मुखिया जी’ कहकर संबोधित करते हैं)। वास्तव में यह एक जाति का समारोह था जो एक वहशी दरिंदे का यशोगान करने के लिए ही आयोजित किया गया था। उक्त पूर्व मंत्री ने इस दरिंदे को ‘अवतार’ की पदवी तक दे डाली। 
 
बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में हिन्दी समाचार पत्रों को भारी संख्या में पढ़ा जाता है क्योंकि दूर-दूर तक उनका अखबार वितरण का नैटवर्क बना हुआ है। चाय के खोखे, ढाबे, गली-कूचों के मोड़ों पर बैठे और खड़े लोग इन अखबारों के समाचारों और विश£ेषण की चर्चा और चीर-फाड़ करते हैं। ऐसे में रणवीर सेनाके दिवंगत नेता की याद में होने वाले समारोह की एक-एक खबर प्रदेश के लोगों तक बहुत विस्तारपूर्वक पहुंची। 
 
सम्मेलन में यह मांग भी की गई थी कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. सी.पी. ठाकुर को भाजपा मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे। ठाकुर को अपनी जाति के प्रमुख नेताओं में से एक माना जाता है। कुछ वक्ताओं ने यहां तक घोषणा कर दी कि विधानसभा चुनावों में भाजपा को समर्थन तभी दिया जाएगा यदि वह ठाकुर को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करेगी। 
 
लक्ष्मणपुर बाठे में 61 दलितों के नरसंहार के दृष्टिगत 1996 में राजनीतिज्ञों और रणवीर सेना के बीच सांठ-गांठ की जांच-पड़ताल करने के लिए अमीर दास आयोग गठित किया गया था लेकिन इसका कार्य 1999 में ही शुरू हो सका क्योंकि इसे अपना काम-काज शुरू करने के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई गई थी। 
 
बिहार में 2005 में चुनाव से पूर्व इस आयोग के कार्यकाल में विस्तार किया गया था लेकिन खेद की बात है कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही नीतीश कुमार ने यह कार्यकाल विस्तार रद्द कर दिया। इस फैसले से मूल रूप में इन नरसंहारों के शिकार दलितों व अन्य लोगों को न्याय मिलना मुश्किल हो गया। नि:संदेह इस फैसले के पीछे निहित स्वार्थ कार्यरत थे।
 
रणवीर सेना के संरक्षकों और प्रवत्र्तकों द्वारा पैदा किए गए आतंक के भयावह परिणामों का अंदाजा लगाने में पूरे बिहार राज्य के जनसमूह  बिल्कुल नहीं चूके। उन्होंने पहले ही यह भांप लिया था कि 2015 के चुनाव में यदि भाजपा जीत गई तो सी.पी. ठाकुर ही राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे और उनके मुख्यमंत्री बनते ही रणवीर सेना के संस्थापक की हत्या के दिन को न केवल सरकारी तौर पर ‘शहीदी दिवस’ का दर्जा मिल जाएगा बल्कि पटना में उसकी प्रतिमा भी स्थापित कर दी जाएगी। इन भयावह आशंकाओं के मद्देनजर ही बिहार की जनता ने सी.पी. ठाकुर के सपने का गला घोंट दिया। 
 
नीतीश के नेतृत्व में बनी नई सरकार की तात्कालिक जिम्मेदारी है कि वह उपद्रवी तत्वों पर अंकुश लगाकर प्रदेश मेें कानून का राज स्थापित करे। नीतीश की पिछली सरकार के दौरान उनके आसपास मौजूद कुछ निहित स्वार्थी लोगों ने रणवीर सेना द्वारा किए गए नरसंहार के शिकार लोगों को न्याय दिलाने की जिम्मेदारी सरकार को पूरी नहीं करने दी। पटना हाईकोर्ट ने बिल्कुल मनमानी दलीलें प्रयुक्त करते हुए रणवीर सेना से संबंधित लोगों को अपराधमुक्त कर दिया।  
 
अब नई सरकार को चाहिए कि संबंधित मामलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाए और इनका शीघ्रातिशीघ्र फैसला करवाया जाए। इस प्रक्रिया के रास्ते में आने वाली रुकावटें तत्परता से हटाए जाने की जरूरत है। निहित स्वार्थी लोगों द्वारा निश्चय ही इसका विरोध किया जाएगा। ऐसे लोगों में नेता और नौकरशाह दोनों शामिल हैं। यदि अभी भी पीड़ितों को इन्साफ दिलाने के मामले में विलम्ब होता है तो जनसमूह में आक्रोश और हताशा अवश्य बढ़ेगी। खुद को जनता की सरकार कहने वाले लोगों को अवश्य ही जनता की चिन्ता करनी चाहिए। सामाजिक न्याय को अधिक सुदृढ़ किए जाने की जरूरत है। ऐसा होने से नरसंहार के पीड़ितों और उनके शुभचिन्तकों को निश्चय ही प्रसन्नता होगी।  
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