असहिष्णुता के विरुद्ध आवाज बुलंद करे बॉलीवुड

Edited By ,Updated: 01 Feb, 2017 12:05 AM

to raise a voice against intolerance bollywood

बॉलीवुड निर्देशकों और एक्टरों पर दक्षिणपंथी गुटों द्वारा हल्ला बोलने की नवीनतम घटना में श्री राजपूत करणी सेना से संबंधित कार्यकत्र्ता जयपुर किले में चल...

बॉलीवुड निर्देशकों और एक्टरों पर दक्षिणपंथी गुटों द्वारा हल्ला बोलने की नवीनतम घटना में श्री राजपूत करणी सेना से संबंधित कार्यकत्र्ता जयपुर किले में चल रही फिल्म ‘पदमावती’ की शूटिंग के सैट में घुस आए और इसके निर्देशक संजय लीला भंसाली पर हमला कर दिया।

इस गिरोह ने सैट पर हमला करके न केवल साजो-सामान को नुक्सान पहुंचाया बल्कि संजय लीला भंसाली से भी इस संदेह में हाथापाई की कि उनकी फिल्म में रानी पदमावती के प्रति अलाऊद्दीन खिलजी की दीवानगी को प्रस्तुत किया जा रहा है और एक सपने के दृश्य में उसे रानी के साथ इश्क लड़ाते हुए दिखाया जाना है।

लोक कथाओं के अनुसार रानी ने मुस्लिम आक्रांताओं से अपमानित होने की बजाय शाही परिवार की अन्य कई महिलाओं सहित जौहर रचा लिया था यानी कि आत्मदाह करके सती हो गई थीं। वैसे इस जौहर को कविता का जामा कथित रूप में 200 वर्ष से भी अधिक समय बाद पहनाया गया था। कोई भी ऐसा समकालीन साक्ष्य नहीं मिलता जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि सचमुच में जौहर जैसी घटना हुई थी।

भंसाली ने दो टूक शब्दों में इस बात से इंकार किया कि जयपुर में फिल्म शूटिंग दौरान उन्होंने अलाऊद्दीन और पदमावती पर कोई रोमांटिक दृश्य फिल्माने का फैसला लिया था या किसी सपने के प्रसंग की योजना बनाई थी। उन्होंने कहा कि उनके मन में रानी पदमावती के प्रति सम्मान की बहुत ही गहरी भावना है इसलिए वह इस प्रकार के दृश्य की कल्पना ही नहीं कर सकते।

फिर भी पश्चाताप की किसी भावना से शून्य करणी सेना के नेता महिपाल सिंह अपनी जिद्द पर अड़े हुए हैं। उन्होंने कहा है कि ‘‘वह मुम्बई से आए लोगों’’ को शरारत करने के बाद बचकर नहीं जाने देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वह हमला करने की भावना से वहां नहीं गए थे बल्कि भंसाली के साथ बातचीत करने के लिए वहां गए थे। उन्होंने मीडिया कर्मियों को बताया, ‘‘हम हमले के हिसाब से नहीं गए थे, नहीं तो लाशें बिछ जातीं।’’

फिल्म और कला की अन्य विधाओं के विरुद्ध रोष-प्रदर्शन हमारे देश में कोई नई बात नहीं। धर्म और संस्कृति के हमारे स्वयंभू पहरेदारों को जब भी लगता है कि उनकी मान-मर्यादा पर छोटी-मोटी भी आंच आ रही है तो वे टकराव के लिए तत्पर हो जाते हैं। 2013 में कमल हासन की फिल्म ‘विश्वरूपम’ के विरुद्ध मुस्लिम गुटों ने आंदोलन चलाया था।

इसी प्रकार दलित संगठनों ने 2011 में प्रकाश झा की फिल्म ‘आरक्षण’ के विरुद्ध रोष-प्रदर्शन किए थे जबकि राजपूत समुदाय के लोग 2008 में बनी ‘जोधा अकबर’ में इतिहास को गलत ढंग से पेश किए जाने पर भड़क उठे थे। जिस प्रकार गत वर्ष ‘बाजीराव मस्तानी’ में पेशवा बाजीराव और मस्तानी बाई की प्रेम कथा की पेशकारी की गई, उस पर भड़की हुई शिवसेना ने भंसाली का पुतला जलाया था।

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना भी खुद को बहुत गंभीरता से एक ‘देशभक्त संगठन’ समझती है और यह फिल्म उद्योग पर दबाव डाल रही है कि पाकिस्तान से आने वाले कलाकारों को भारतीय फिल्मों में काम न दिया जाए। इसी ने हाल ही में फिल्म निर्माता और निर्देशक करण जौहर को सार्वजनिक रूप में यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया था कि वह फिल्म एक्टरों सहित पाकिस्तान के किसी भी कलाकार को अपनी फिल्म में काम नहीं देंगे।

पहले तो वह टाल-मटोल करते रहे लेकिन जब सेना ने धमकी दी कि जिस भी सिनेमाघर में उनकी फिल्म का प्रदर्शन हुआ, वहीं पर वे तोड़-फोड़ करेंगे। इस प्रकार मात्र झुकने का आदेश प्राप्त होने पर करण जौहर रींगने की हद तक चले गए।

एक अन्य घटनाक्रम में शाहरुख खान अपनी फिल्म ‘रईस’ की रिलीज के संबंध में मनसे प्रमुख को उनके आवास पर मिलने गए थे क्योंकि इस फिल्म की नायिका माहिरा खान पाकिस्तान से संबंध रखती है। यह तो कोई नहीं जानता कि उनके बीच क्या बातचीत हुई है लेकिन फिर भी यह स्वत: स्पष्ट है कि खान ने अपनी फिल्म रिलीज करने के लिए उनसे ‘मंजूरी’ मांगी थी।

जितनी आसानी से फिल्म समुदाय इस प्रकार के दबावों के आगे घुटने टेक देता है उससे बालीवुड को धमकाने वालों के हौसले और भी बुलंद होते जा रहे हैं। संजय लीला भंसाली का नवीनतम मामला यह दिखाता है कि  यह रुझान कितना खतरनाक है। धमकाने वालों का यह आत्मविश्वास बढ़ रहा है कि ङ्क्षहसा लाभदायक है और अन्य लोगों की तरह भंसाली भी उनके आगे दंडवत् झुक जाएंगे।

भंसाली को फिल्मी समुदाय के अनेक लोगों से समर्थन मिला है। सबसे पहले तो हीरोइन दीपिका पादुकोण ने यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया कि फिल्म में इतिहास को किसी भी तरह से तोड़ा-मरोड़ा नहीं गया है। इसी तरह हीरो रणवीर सिंह ने फिल्म सैट पर हुए हमले को ‘बहुत दुर्भाग्यपूर्ण’ करार दिया और यह उम्मीद व्यक्त की कि राजस्थान के लोग उन्हें समर्थन देंगे। विडम्बना देखिए कि शिवसेना के दबाव के आगे नतमस्तक होने वाले करण जौहर ने भी ट्विटर के माध्यम से भंसाली का समर्थन किया।

ताजातरीन हमला इस बात का स्वाभाविक परिणाम है कि दूसरों के साथ अंतर्कलह में उलझी फिल्मी हस्तियां मौन साधे रहीं कि उन्हें खुद तो कोई आंच आई नहीं है। इस प्रकार फिल्म उद्योग ने ऐसे गिरोहों के हाथों खुद की ब्लैकमेङ्क्षलग होने की एक तरह से अनुमति प्रदान कर दी है, जिन्होंने कानून अपने हाथों में ले लिया है। यह सत्य है कि सरकारें भी इस तरह के संंगठनों के साथ कड़ाई से पेश नहीं आ रही हैं। वास्तव में इस  प्रकार के गुंडा तत्वों को कुछ राजनीतिक पाॢटयों का समर्थन हासिल है।

अब बहुत सटीक समय है कि फिल्म उद्योग संयुक्त रूप में और कड़ाई से स्टैंड ले और राज्य सरकारें भी फिल्म उद्योग को इसकी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में सुरक्षा उपलब्ध करवाएं। यदि किसी को सचमुच में कोई शिकायत है तो वह सैंसर बोर्ड या अपीलीय अदालतों का दरवाजा खटखटा सकता है। इसके अलावा कोई भी अपनी जगह इंसाफ हासिल करने के लिए हाईकोर्टों और यहां तक कि सुप्रीमकोर्ट के आगे गुहार लगा सकता है।

फिर भी कानून को अपने हाथों में लेना और दूसरों पर अपनी मनमर्जी थोपने के रुझान को सख्ती से दबाने की जरूरत है। देश के लिए यह रुझान खतरनाक है। यदि गुंडा तत्वों को समय रहते रोका नहीं गया तो कल को वे मीडिया सहित अन्य लोकतांत्रिक संस्थानों के विरुद्ध भी यही हथकंडा अपनाएंगे। समय आ गया है कि बालीवुड एकजुट होकर खड़ा हो और इसी प्रकार की असहिष्णुता के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करे। सभी समझदार लोगों और सरकारों को भी उन्हें समर्थन देना चाहिए। 

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