Edited By ,Updated: 05 Oct, 2015 01:44 PM
एक ही गुण सब दुर्गुणों पर भारी
व्यालाश्रयापि विफलापि सकंटकापि,
वक्रापि पंकिलभवापि दुरासदाऽपि।
एक ही गुण सब दुर्गुणों पर भारी
व्यालाश्रयापि विफलापि सकंटकापि,
वक्रापि पंकिलभवापि दुरासदाऽपि।
गंधेन बंधुरसि केतकि सर्वजन्तोर्
एको गुण: खुलु निहन्ति समस्त दोषान्।।
अर्थ : हे केतकी! यद्यपि तू सांपों का घर है, फलहीन है, कांटेदार है, टेढ़ी भी है, कीचड़ में ही पैदा होती है, बड़ी मुश्किल से तू मिलती भी है, तब भी सुगंध रूपी गुण से तुम सभी को प्रिय लगती हो। वाकई एक ही गुण सभी दोषों को नष्ट कर देता है।
अर्थात किसी आदमी में चाहे कितने ही अवगुण क्यों न हों, परंतु यदि उसका एक ही गुण सभी दुर्गुणों पर भारी पड़ता है तो उसके सारे दोषों को अनदेखा किया जा सकता है।