बुद्ध पूर्णिमा आज: प्रथम धर्म-उपदेश से लेकर विशेष पूजा तक की जानकारी

Edited By ,Updated: 10 May, 2017 10:19 AM

buddha purnima tomorrow

महात्मा बुद्ध का प्रथम धर्म-उपदेश: भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से प्रसिद्ध है जो उन्होंने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था। भेदभाव रहित होकर हर वर्ग के

महात्मा बुद्ध का प्रथम धर्म-उपदेश: भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से प्रसिद्ध है जो उन्होंने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था। भेदभाव रहित होकर हर वर्ग के लोगों ने महात्मा बुद्ध की शरण ली व उनके उपदेशों का अनुसरण किया। कुछ ही दिनों में पूरे भारत में ‘बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघ शरणम् गच्छामि’ का जयघोष गूंजने लगा। मगध और उसके पड़ोसी राजा भी बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए। महात्मा बुद्ध ने पहली बार सारनाथ में प्रवचन दिया था। उन्होंने कहा कि केवल मांस खाने वाला ही अपवित्र नहीं होता, क्रोध, व्यभिचार, छल, कपट, ईर्ष्या और दूसरों की निंदा भी इंसान को अपवित्र बनाती है। मन की शुद्धता के लिए पवित्र जीवन बिताना जरूरी है।

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निर्वाण और धर्म प्रचार  : बौद्ध धर्म विश्व के प्राचीन धर्मों में से एक है। बौद्ध धर्म की सभी शिक्षाएं आत्मा की शुद्धता से संबंधित हैं। महात्मा बुद्ध की शिक्षा के चार मौलिक सिद्धांत है : संसार दुखों का घर है, दुख का कारण वासनाएं हैं, वासनाओं को मारने से दुख दूर होते हैं, वासनाओं को मारने के लिए मानव को अष्टमार्ग अपनाना चाहिए। 
अष्टमार्ग यानी, शुद्ध ज्ञान, शुद्ध संकल्प, शुद्ध वार्तालाप, शुद्ध कर्म, शुद्ध आचरण, शुद्ध प्रयत्न, शुद्ध स्मृति और शुद्ध समाधि।


भगवान बुद्ध का धर्म प्रचार 40 वर्षों तक चलता रहा। अंत में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पावापुरी नामक स्थान पर 80 वर्ष की अवस्था में ई.पू. 483 में वैशाख की पूर्णिमा के दिन ही महानिर्वाण प्राप्त हुआ।


विशेष पूजा : बुद्ध जयंती के दिन पूरे संसार के बौद्ध मठों में भगवान बुद्ध के उपदेशों और प्रार्थनाओं की गूंज सुनाई देती है। भगवान बुद्ध से संबंधित सभी बौद्ध स्थलों पर बौद्ध भिक्षु इकट्ठे होकर उनकी शिक्षाओं को याद करते हैं। इस दिन श्रद्धालु भगवान बुद्ध की प्रतिमा की फूलों, फलों व अगरबत्ती द्वारा पूजा-अर्चना करते हैं व प्रसाद चढ़ाकर वितरित भी किया जाता है।
 

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