यात्रा: गणेशपुरी नाम से जाना जाने वाला स्थान वास्तव में है मोक्षपुरी

Edited By ,Updated: 14 Dec, 2016 08:02 AM

ganeshpuri  mumbai

कुछ संतों की तपोभूमि ऐसी होती है कि उस क्षेत्र में जाते ही तीर्थक्षेत्र का अनुभव आना शुरू हो जाता है। वहां मस्तिष्क के सारे द्वंद्व समाप्त हो जाते हैं। मन शांतचित्त होकर निर्मल हो जाता है। ऐसा ही एक तीर्थक्षेत्र है गणेशपुरी।

कुछ संतों की तपोभूमि ऐसी होती है कि उस क्षेत्र में जाते ही तीर्थक्षेत्र का अनुभव आना शुरू हो जाता है। वहां मस्तिष्क के सारे द्वंद्व समाप्त हो जाते हैं। मन शांतचित्त होकर निर्मल हो जाता है। ऐसा ही एक तीर्थक्षेत्र है गणेशपुरी। मुम्बई के दहिसर चेकनाका से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित है गणेशपुरी। महायोगी संत श्री नित्यानंद का समाधि मंदिर यहां स्थित है। इन्हें उनके भक्त भगवान नित्यानंद नाम से संबोधित करते हैं। भगवान नित्यानंद के बारे में कहा जाता है कि वह दक्षिण भारत के कोजीकोड जिले के तुनेरी गांव के एक गरीब परिवार को शिशु अवस्था में तब मिले जब एक बहुत बड़ा नाग बरसात में फन उठाकर उन्हें बरसात से बचा रहा था। दम्पति चतुनायर और उन्नी अम्मा नामक दम्पति ने जब यह दृश्य देखा तो अवाक रह गए क्योंकि स्वप्न में भगवान शिव ने उन्हें अगले दिन उसी स्थान पर जाने को कहा था।


उन्नी अम्मा की ममता बच्चे को घर ले आई। बड़े लाड़-प्यार से शिशु का पालन-पोषण हुआ। समय बीतता गया। बच्चे का नाम रामन रखा गया। घर और गांव के लोग बच्चे को राम कह कर पुकारते। एक बार बच्चा बहुत बीमार पड़ गया। मां का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने अपने इष्ट शिव से प्रार्थना की। महादेव ने उन्नी अम्मा को इलाज बताया। इलाज के पश्चात बच्चा बिल्कुल स्वस्थ हो गया। चतुनायर और उन्नी अम्मा एक ब्राह्मण परिवार ईश्वर अय्यर के घर काम करते थे।  राम दिन भर उनके घर ही रहता। ईश्वर अय्यर बड़े ही धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और सूर्यदेव के भक्त थे। उन्हें अनुभव हो गया था कि राम कोई साधारण बच्चा नहीं है।


बचपन से ही राम वैरागी था। राम के मुख से जो निकलता, वह सत्य हो जाता। हजारों लोग उसके पास इलाज के लिए आने लगे। जिस रोगी के सिर पर हाथ फेर देता वह ठीक हो जाता। बिना शिक्षण ग्रहण किए एक लंगोट में घूमने वाला राम वेदांत और धर्मशास्त्र की अकाट्य व्याख्या करता। इससे साबित हो चुका था कि राम जन्म सिद्ध बालक है। सबके लिए एक आधार बन चुका था।


एक दिन ईश्वर अय्यर के निवेदन पर राम ने उन्हें भगवान सूर्य का दर्शन करवाया। उस दिन अय्यर ने कहा कि तुम सबको नित आनंद देते हो। दुनिया तुम्हें नित्यानंद नाम से पहचानेगी। इसके बाद हिमालय में कई वर्ष तथा काशी में कुछ वर्ष रहने के बाद नित्यानंद ने गणेशपुरी को अपनी लीला स्थली के रूप में चुना। अति प्राचीन शिव मंदिर भीमेश्वर महादेव के समीप ही वह रहने लगे। भक्त उन्हें भगवान दत्तात्रेय का तो कोई भक्त शिव का अवतार मानते हैं आज भी वहां कई ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्होंने नित्यानंद को हनुमान जी से संवाद करते देखा है। गृहस्थों से भगवान अक्सर कहते पहले अपना गृहस्थ धर्म अच्छे से निभाओ। साथ ही धर्म अध्यात्म भी करो। ‘बाबा गणेश पुरी’ के बारे में कहते यह संतों की तपोभूमि है। आज भी मंदाग्नि पर्वत (गणेशपुरी के करीब) पर कई तपस्वी सूक्ष्म रूप से साधनारत हैं। बाबा की स्तुति में कहा गया है ‘नैव निंदा प्रशंसाभ्याम्’ अर्थात निंदा और प्रशंसा से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वे अपने आनंद में मस्त रहते। बहुत कम बोलते किन्तु संतों को पहचानकर उन्हें दृष्टि मात्र से दीक्षा देकर शक्तिपात कर देते।


लाखों भक्त देश-विदेश से गणेशपुरी पहुंचते हैं। आज भी भगवान नित्यानंद की उपस्थिति यहां महसूस होती है। उनके दर्शन को आए लोगों से वे कहते ‘माता जी’ (वज्रेश्वरी) का दर्शन किया? कुंड में नहाए? ‘भक्तों के ‘नहीं’ बोलने पर वे उन्हें ऐसा करके आने को कहते। गणेशपुरी में ही गर्म पानी के तीन कुंड हैं जबकि पास ही अकलोली में भी गर्म पानी के कुंड हैं। जहां लोग स्नान के पश्चात भगवान नित्यानंद का दर्शन कर मोक्ष की आकांक्षा से दर्शन करते हैं और नित अनुभव प्राप्त करते हैं। आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वादशी को भगवान नित्यानंद ने समाधि मंदिर के पीछे बेंगलोरवाला बिल्डिंग में शरीर छोड़ दिया। इसकी घोषणा वे 14 दिन पहले ही कर चुके थे। आज भगवान नित्यानंद भले ही सशरीर यहां न हों  किन्तु गणेशपुरी को मोक्षपुरी मानने वाले सैंकड़ों भक्त यहां प्रतिदिन पहुंच रहे हैं और एक-दूसरे से मिलने पर अभिवादन स्वरूप कहते हैं : ‘जय नित्यानंद’।

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