इस देश में सड़कें खुद भर लेती हैं गड्डे,  तकनीक कर देगी हैरान !

Edited By ,Updated: 22 May, 2017 06:33 PM

netherland road repair with bacteria technique

भारत में सड़कों पर गड्ढे होना आम बात है। ऐसे में जब लोग सड़कों पर सफर करने निकलते हैं को मजा किरकिरा सा हो जाता है

एम्स्टर्डमः भारत में सड़कों पर गड्ढे होना आम बात है। ऐसे में जब लोग सड़कों पर सफर करने निकलते हैं को मजा किरकिरा सा हो जाता है।  इनसे निजात पाना  भारत में थोड़ा मुश्किल लगता है लेकिन नीदरलैंड में ये अब और नहीं चलेगा। दरअसल, नीदरलैंड में भी सड़कों पर गड्ढ़े पाए जाते हैं लेकिन वहां के वैज्ञानिकों ने इसका रास्ता खोज निकाला है।  नीदरलैंड के साइंटिस्ट्स ने खुद को ठीक कर लेने वाली सड़कें बना डाली हैं। ये सड़कें गड्ढे और दरारें खुद भर लेती हैं। जरूरत है इनके ऊपर इंडक्शन रोलर चलाने की। 

 डच साइंटिस्ट्स सड़कों को गड्ढा-मुक्त रखने के लिए बैक्टीरिया की मदद भी ले रहे हैं। कोलतार यानी डामर की सड़कों पर बहुत छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। यह कोलतार की खूबी है और उसकी कमी भी। छिद्रों की वजह से ऐसी सड़कें शोर और गर्मी सोख लेती हैं। इन्हीं छिद्रों के कारण उनमें दरारें और गड्ढे भी जल्दी पड़ते हैं। न्यूजीलैंड स्थित डेल्फ्ट यूनिवर्सिटी में एक्सपेरिमेंटल माइक्रो-मैकेनिक्स के प्रमुख डॉ. एरिक श्लेन्जन सेल्फ-हीलिंग डामर पर प्रयोग कर रहे हैं। 

उन्होंने स्टील फाइबर मिलाकर डामर की एक नई किस्म तैयार की है। यह सुचालक होती है। जब इस प्रकार के डामर से बनी सड़क पर साधारण इंडक्शन रोलर चलाया जाता है तो सड़क अपने गड्ढे और दरारें खुद-ब-खुद भर लेती हैं। नीदरलैंड में इस तरह के विशेष डामर से 12 सड़कें बनाई गई हैं। जो सन् 2010 से काम कर रही हैं। स्टील फाइबर मिश्रित डामर हालांकि सामान्य डामर से 25 प्रतिशत महंगा होता है। लंबे समय के लिये यह बहुत फायदेमंद है।

मटेरियल्स साइंटिस्ट डॉ. श्लेन्जन ने बताया कि सामान्य सड़कों की लाइफ जहां 7-8 साल होती है वहीं इस डामर से बनी सड़कें इससे दोगुना चलती हैं। डॉ. श्लेन्जन की टीम कंक्रीट की सड़कों को लेकर भी एक्सपेरिमेंट कर रही है। उन्हें एक खास बैक्टीरिया की मदद से कंक्रीट रोड की मरम्मत करने में कामयाबी मिली है। यह बैक्टीरिया कैल्शियम कॉर्बोनेट प्रोड्यूस करता है। इससे सड़कों के क्रैक और गड्ढे खुद-ब-खुद भर जाते हैं। उनमें कोई मटेरियल नहीं मिलाना पड़ता। अच्छी बात यह है कि इस किस्म का बैक्टीरिया 200 साल तक जीवित रहता है और इंसानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता।

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