Edited By ,Updated: 17 Sep, 2015 11:37 AM
यह बात बिलकुल सही है कि हरि-भजन करने से, हरि-नाम करने से व्यक्ति का चित्त निर्मल होता है, आत्म-बल बढ़ता है, जीवन में संतुष्टि का अनुभव होता है, प्रभाव बढ़ता है, सांसारिक मोह खत्म हो जाता है।
यह बात बिलकुल सही है कि हरि-भजन करने से, हरि-नाम करने से व्यक्ति का चित्त निर्मल होता है, आत्म-बल बढ़ता है, जीवन में संतुष्टि का अनुभव होता है, प्रभाव बढ़ता है, सांसारिक मोह खत्म हो जाता है। यही नहीं हरिभजन करने से उनका जीवन प्रसन्नता से भर जाता है, उसे अपने जीवन की हरेक घटना पर भगवान की कृपा का अनुभव होता है लेकिन हरिभजन सही रूप, दिशा, आनुगत्य व सही उद्देश्य से होना चाहिए।
सही रूप का मतलब हमारे द्वारा किया हुआ हरिनाम संकीर्तन-पिता श्रीचैतन्य महाप्रभु के शिक्षाष्टकम के तीसरे श्लोक के अनुसार होना चाहिए।
अर्थात
1) उसको संसारिक घमण्ड नहीं होना चाहिए। उसे इस सही भावना में रहना होगा कि वो भगवान श्रीकृष्ण के दासों का दास है।
2) श्रीप्रह्लाद जी व श्रीहरिदास ठाकुर जैसे भक्तों के जीवन चरित्र को याद करते हुए अपने व्यवहार में सहनशीलता बढ़ानी होगी।
3) अपने मान-सम्मान के लिए दिल में पागलपन नहीं होना चाहिए। हमारे जीवन में हमसे जो भी अच्छा हो उसका सारा श्रेय सच्चे दिल से गुरुजी, वैष्णव व भगवान को देना चाहिए।
4) सभी से सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए और जहां तक बात है भक्तों की हमें पता होना चाहिए कि कौन कनिष्ठ भक्त है, कौन मध्यम और कौन उत्तम, उसके अनुसार उनका सम्मान व सेवा करनी चाहिए।
सही दिशा का अर्थ है कि यदि हम कुछ इच्छाएं लेकर भगवान का भजन कर रहे हैं तो हमें सकाम भाव से निष्काम भाव की ओर और निष्काम भाव से उनके प्रेम मार्ग की ओर अग्रसर होना चाहिए।
सही आनुगत्य का तात्पर्य है कि हमें एक ऐसे भक्त के दिशा-निर्देशानुसार हरि-भजन करना होगा जिसके बारे में जगद गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी ने कहा है-
कनक कामिनी, प्रतिष्ठा-बाघिनी, छाड़ि आछे यारे, सेई तो वैष्णव।
सेई अनासक्त, सेई शुद्ध भक्त, संसार तथाये, पाये पराभव।
अर्थात हमें ऐसे भक्त का अनुभव करना चाहिए जिसके अंदर दुनियावी धन-दौलत का कोई लोभ न हो तथा सांसारिक भोगों की वासना व प्रतिष्ठा की इच्छा जिसे दूर-दूर तक भी छूती न हो। साथ ही जिनका हृदय जीवों के प्रति दया-भाव और श्री कृष्ण-प्रेम से भरा हो।
सही उद्देश्य- श्री चैतन्य महाप्रभु जी के प्रिय श्री रूप गोस्वामी जी ने कहा कि हमें भगवान की इच्छा के अनुकूल, भक्ति अंगों का पालन करना चाहिए। समझने के लिए कंस भी भगवान का स्मरण करता है और प्रह्लाद भी, पूतना भी दूध पिलाती है और माता यशोदा या माता कौशल्या भी।
श्री चैतन्य महाप्रभु जी के एक और भक्त श्री श्रीनाथ चक्रवर्ती जी कहते हैं कि हमें गोपियों वाली स्थिती को प्राप्त करने के लिए चेष्टा करनी चाहिए।
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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