सबसे लंबे वक्त तक सोनिया के हाथों रही कांग्रेस की कमान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Nov, 2017 05:34 PM

sonia controlled the congress for longest time

आजादी के पहले की कांग्रेस स्वतंत्रता आंदोलन की पार्टी थी, आजादी के बाद सत्ताधारी दल। दोनों उद्देश्यों की भिन्नता उसकी कार्यशैली में भी देखी जा सकती है। पार्टी के पिछले 133 साल में 59 नेताओं ने अलग-अलग समय पर इसके अध्यक्ष का दायित्व संभाला है। ...

नेशनल डैस्कः आजादी के पहले की कांग्रेस स्वतंत्रता आंदोलन की पार्टी थी, आजादी के बाद सत्ताधारी दल। दोनों उद्देश्यों की भिन्नता उसकी कार्यशैली में भी देखी जा सकती है। पार्टी के पिछले 133 साल में 59 नेताओं ने अलग-अलग समय पर इसके अध्यक्ष का दायित्व संभाला है।  स्वतंत्रता के बाद से 17 व्यक्ति इसके अध्यक्ष बने हैं। सन् 1947 के बाद के 70 वर्षों में पार्टी का अध्यक्ष पद 38 वर्षों तक नेहरू-गांधी परिवार के पास रहा है। सोनिया गांधी सन् 1998 से अब तक अध्यक्ष हैं। कांग्रेस के इतिहास में सबसे लम्बी अवधि वाली वह पार्टी अध्यक्ष हैं।

आजादी के ठीक पहले 1947 में जिस वक्त आचार्य कृपलानी पार्टी अध्यक्ष बने, तब कांग्रेस कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं की पार्टी थी। पार्टी और प्रधानमंत्री की भूमिका को लेकर सबसे पहले सवाल उस दौर में ही खड़ा हुआ। आचार्य कृपलानी की राय थी कि सरकार को महत्वपूर्ण निर्णय करने के पहले पार्टी से भी मंत्रणा करनी चाहिए। नेहरू का कहना था कि रोजमर्रा मसलों में यह सम्भव नहीं। आचार्य कृपलानी के बाद पट्टाभि सीतारमैया पार्टी अध्यक्ष बने, जो मध्यमार्गी और नरम मिजाज के थे। उनके बाद अगले पार्टी अध्यक्ष पद को लेकर नेहरू और पटेल के बीच मतभेद उभरे। पटेल ने पुरुषोत्तम दास टंडन का समर्थन किया। दूसरे प्रत्याशी थे आचार्य कृपलानी और शंकरराव देव।

नेहरू का इन दोनों के प्रति खास झुकाव नहीं था, पर वह टंडन के विरोध में थे। नेहरू के विरोध के बावजूद टंडन जीते। इसके बाद तल्खी काफी बढ़ गई। नेहरू ने कार्यसमिति की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। अंतत: टंडन ने भी इस्तीफा दिया और 1951 में नेहरू जी पार्टी अध्यक्ष बने। उनके बाद यू.एन. ढेबर आए और फिर इंदिरा गांधी। आलोचकों का मानना है कि नेहरू ने अपनी बेटी को उत्तराधिकारी बनाने की व्यवस्था तभी कर ली थी। इंदिरा के बाद नीलम संजीव रैड्डी और के. कामराज अध्यक्ष बने। कामराज को अध्यक्ष बने चार महीने ही हुए थे। सवाल था प्रधानमंत्री कौन बने? गुजरात के धाकड़ नेता मोरारजी देसाई भी मैदान में आ गए। काफी विमर्श के बाद लालबहादुर शास्त्री के नाम पर सहमति हुई। इसके बाद फिर टकराव हुआ। इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए सीधा मुकाबला हो गया।

इस चुनाव में इंदिरा गांधी जीत गईं। उस जीत ने ज्यादा बड़े टकराव की बुनियाद तैयार कर दी, जिसके कारण पार्टी का विभाजन हुआ। सन् 1969 के बाद जब पार्टी टूटी तब भी पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद अलग-अलग व्यक्तियों को देने की परम्परा रही। अगस्त 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में इंदिरा गांधी ने पार्टी प्रत्याशी नीलम संजीव रैड्डी का विरोध करके बगावत का बिगुल बजा दिया। इंदिरा गांधी ने भी पार्टी पर नियंत्रण बनाकर  रखा। दिसम्बर 1969 में मुम्बई के समांतर कांग्रेस महाधिवेशन में जगजीवन राम पार्टी अध्यक्ष चुने गए। उनके बाद शंकर दयाल शर्मा और फिर देवकांत बरुआ पार्टी अध्यक्ष बने। दोनों इंदिरा के विश्वस्त थे, पर 1977 का चुनाव हारने के बाद 1978 में इंदिरा गांधी ने जब पार्टी अध्यक्ष का दायित्व संभाला तो वह परम्परा समाप्त हो गई। उनके बाद राजीव गांधी ने भी दोनों पदों को संभाला। पी.वी. नरसिम्हा राव ने भी उस परम्परा को जारी रखा।

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