Edited By ,Updated: 20 Mar, 2015 04:19 PM
काफी विवादों और प्रक्रियात्मक तकरार के बाद खान एवं खनिजों के मामले में राज्यों को और अधिक अधिकार देने वाले चर्चित विधेयक को आज
नई दिल्लीः काफी विवादों और प्रक्रियात्मक तकरार के बाद खान एवं खनिजों के मामले में राज्यों को और अधिक अधिकार देने वाले चर्चित विधेयक को आज राज्यसभा की मंजूरी मिल गई। कांग्रेस एवं वाम दलों को छोड़कर अधिकतर पार्टियों ने इसका समर्थन किया जबकि जदयू ने यह कह कर वाकआउट किया कि वह इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहता है।
उच्च सदन ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक 2015 को 69 के मुकाबले 117 मतों से पारित किया। सदन ने इस विधेयक को फिर से प्रवर समिति के पास भेजने की कुछ दलों की मांग तथा इस विधेयक के विभिन्न उपबंधों पर वाम एवं कांग्रेस के सदस्यों द्वारा लाये गये संशोधनों को खारिज कर दिया।
इस विधेयक को लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी है। उच्च सदन में इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजा गया था। प्रवर समिति ने इसके बारे में 18 मार्च को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस विधेयक के जरिए 1957 के मूल अधिनियम में संशोधन किया गया है। सरकार इससे पहले इस संबंध में एक अध्यादेश जारी कर चुकी है। मौजूदा विधेयक संसद की मंजूरी के बाद उस अध्यादेश का स्थान लेगा।
इस विधेयक में खनन से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए करने के साथ ही सरकारों की विवेकाधीन शक्तियों का समाप्त करने की दिशा में पहल की गई है। विवेकाधीन शक्तियों के चलते भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रही हैं।
विधेयक में राज्यों को कई अधिकार दिए गए हैं। इसके माध्यम से मूल अधिनियम में नई अनुसूची जोड़ी गई है तथा बाक्साइट, चूना पत्थर, मैगनीज जैसे कुछ खनिजों को अधिसूचित खनिजों के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें खनन लाइसेंस की नई श्रेणी बनाई गई है। इसमें खनन के बारे में पट्टे की अवधि और पट्टे को बढ़ाए जाने की रूपरेखा का उल्लेख किया गया है। इसमें खान से संबंधित रियायत प्रदान करने और इससे जुड़ी नीलामी प्रणाली के बारे में बताया गया है।