‘भारत की सरकारों के कारण शर्मिन्दा हैं भारतीय अमरीकी’

Edited By ,Updated: 26 May, 2015 01:23 AM

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मेरी मां अपनी सहेलियों को कहा करती थीं, ‘‘अपनी थाली में परोसा गया भोजन बर्बाद करने से पहले भारत में भुखमरी से मरने वाले बच्चों के बारे में सोचें।

(विवेक वधवा): मेरी मां अपनी सहेलियों को कहा करती थीं, ‘‘अपनी थाली में परोसा गया भोजन बर्बाद करने से पहले भारत में भुखमरी से मरने वाले बच्चों के बारे में सोचें।’’ यह 1960 के न्यूयार्क की बात है, जहां मेरा बचपन बीता। मेरा बचपन सचमुच बहुत मुश्किलों भरा था, जिनके कारण मुझे घटियापन का एहसास होता था। स्कूल के ‘दादा टाइप’ लड़के मुझे ‘हिन्दू’ और ‘गौ-पूजक’ होने का ताना दिया करते थे। हम लोगों की तुलना में अधिक बुरा व्यवहार केवल अफ्रीकी मूल के अमरीकियों यानी नीग्रो लोगों के साथ ही होता था। 

इसके बाद के दशकों में अमरीका बहुत बदल गया है। जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मैं भी हीनभावना से मुक्त हो गया। लेकिन मुझे दूसरे लोगों की तुलना में बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ा और बुद्धि का प्रयोग भी अधिक करना पड़ा। मुझे अपनी शक्तियों और सकारात्मक बातों पर फोकस बनाना पड़ा। ये शक्तियां हैं हमारी संस्कृति की गहराई, हमारे सशक्त पारिवारिक  जीवन मूल्य और दुनिया के प्रति हमारा अधिक समझ-बूझ भरा दृष्टिकोण। मैं जानता था कि मुझे अपने सहपाठियों जैसे अवसर सुलभ नहीं होंगे, इसलिए मुझे खुद को उनसे कहीं बेहतर सिद्ध करना होगा। 
 
तानों-उलाहनों तथा नकारात्मक रवैये ने मुझे और भी मजबूत बना दिया। इन्हीं की बदौलत मेरा अपनी जन्मस्थली भूमि भारत के प्रति लगाव अधिक गहरा गया। इन बातों ने जहां मुझे अपनी विरासत के करीब ला दिया, वहीं मुझे इस पर गर्व करना भी सिखाया। विदेशों में रहने वाले अधिकतर भारतीय मेरी तरह ही अपनी विरासत पर गर्व करते हैं। वे अभी भी भारतीय संगीत का आनंद लेते हैं, बॉलीवुड फिल्में देखते हैं, भारतीय पकवानों के चटखारे लेते हैं और पीछे देश में रह रहे अपने परिवार और दोस्तों के साथ मजबूत संबंध बनाए रखते हैं। 
 
इन्हीं बातों के कारण मुझे उस समय बहुत हैरानी हुई, जब शंघाई और   सियोल में प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार के सत्तासीन होने से पूर्व भारतीयों को खुद को भारतीय कहते हुए शर्म महसूस होती थी। मोदी का यह कथन वास्तविकता को प्रतिबिम्बित नहीं करता। 
 
मोदी असाधारण रूप में अन्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक सोचवान और संतुलित हैं और मैं निश्चय से कह सकता हूं कि वह स्वयं बेहतर जानते हैं। वास्तव में उनके प्रधानमंत्री बनने पर विदेशों में रह रहे अधिकतर भारतीयों के अंदर ढेर सारी उम्मीदें जगी हैं। कई दशकों की अक्षम सरकारों,  थोक स्तर पर भ्रष्टाचार और समाजवाद व साम्यवाद के नाम पर बेडिय़ों में  जकड़े रहने के बाद आखिर भारत को अपना कायाकल्प करने का मौका मिला है। हमारे अंदर यह आशा पैदा हुई है कि भारत को नस्लीय या मजहबी आधार पर विभाजित किए बिना हम इस कायाकल्प का नेतृत्व करने वाले बनेंगे। 
 
भारतीय यदि किसी बात पर शर्मिन्दा महसूस करते रहे हैं तो वह है भारत की सरकारें। इसके नेता देश की हालत सुधारने की बजाय खुद को अमीर बनाने पर ही ध्यान केन्द्रित करते रहे हैं। उन्होंने बिल्कुल ब्रिटिश साम्राज्यवादियों जैसा ही शासन किया है। यानी कि धर्म और क्षेत्र के आधार पर लोगों को एक-दूसरे से लड़ाकर राज करते रहे हैं। 
 
ऐसे लोग हैं, जो मेरी बातों से सहमत नहीं होंगे। लुसियाना के गवर्नर बॉबी जिन्दल जैसे कुछ अमरीकी भारतीय  भी हैं, जो खुद को भारत से अलग करने के लिए लक्ष्मण रेखा को लांघ जाते हैं। अन्य कई ऐसे हैं, जो हीनभावना महसूस करते हैं और नकारात्मक बातों पर ही रुदन करते रहते हैं। इसलिए मैं सभी अमरीकी भारतीयों का प्रतिनिधि होने का दावा नहीं कर सकता। 
 
लेकिन मैं यह बात जरूर जानता हूं कि यात्राओं के दौरान भारतीयों के जिन समूहों से मेरा मिलना होता है, वे बहुत प्रसन्नता से एक-दूसरे के साथ घुलते-मिलते हैं और आमतौर पर मेरे दृष्टिकोण से सहमत हैं। वे विदेशी धरती पर रहते हैं और जिन देशों ने उन्हें अपनाया है, उनके प्रति वे वफादार हैं, लेकिन इसके बावजूद वे अपनी सांस्कृतिक पहचान अभी भी बनाए हुए हैं। अपने नए अपनाए वतन में भी वे अपने हाड़-मांस में गहराई तक बसी हुई भारतीय संस्कृति से लाभान्वित होते हैं। मेरी पीढ़ी के जो अधिकतर भारतीय विदेशों में सफल हुए हैं, वे अपनी विरासत और जीवन मूल्यों के प्रति अहसानमंद हैं और अपने बच्चों को भी इन्हीं के अनुसार सीख दे रहे हैं। 
 
दूसरी पीढ़ी के भारतीय अमरीकी वास्तव में दोनों ही देशों का खूब लाभ ले रहे हैं। अमरीका में हम उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के झंडे फहराते हुए देखते हैं। वे बड़ी-बड़ी कम्पनियों के कार्यकारी पदों से लेकर शिक्षा जगत के शीर्ष पदों पर सुशोभित हैं। निवेश बैंकों में भारतीय मौजूद हैं और सिलीकोन वैली में शुरू होने वाली  हर 6 में से एक कम्पनी का नेतृत्व किसी भारतीय के हाथ में है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी वे शीर्ष पदों पर हैं। यहां तक कि व्हाइट हाऊस में भी अधिकतर  शीर्ष पदों पर भारतीय ही तैनात हैं। 
 
हर जगह भारतीय अमरीकी चेहरे दिखाई देते हैं और वे भी भारतीय सांस्कृतिक जीवन मूल्यों को अपने जीवन का अंग बनाए हुए हैं। ये लोग अक्सर ही छुट्टियां बिताने के लिए या किसी प्रकार के समाजसेवी सेवा कार्यों के लिए भारत जाते रहते हैं। 
 
अभिभावकों के रूप में हम लोग उस समय बहुत गर्व महसूस करते हैं, जब हमारे बच्चे भारत जाते हैं और इस देश के साथ हमारे संबंधों को नया जीवन प्रदान करते हैं। मुझे आशा है कि भारत में रहने वाले भारतीय भी देश पर अधिक गर्व करना सीखेंगे और मोदी सरकारी तंत्र की मैली हो चुकी गंगा की सफाई कर देंगे ताकि हम में से किसी को भी भारतीय होने पर शर्मिन्दगी महसूस न हो।  
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