एमरजैंसी के सबक

Edited By ,Updated: 29 Jun, 2015 02:11 AM

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13वीं सदी के फारसी कवि रूमी ने मानवीय अज्ञानता के संबंध में एक कहानी ‘अंधे इंसान और हाथी’ लिखी थी। संकीर्ण धार्मिक व राजनीतिक सोच पर यह एक तीखा कटाक्ष है।

13वीं सदी के फारसी कवि रूमी ने मानवीय अज्ञानता के संबंध में एक कहानी ‘अंधे इंसान और हाथी’ लिखी थी। संकीर्ण धार्मिक व राजनीतिक सोच पर यह एक तीखा कटाक्ष है। कहानी में प्रत्येक नेत्रहीन व्यक्ति हाथी के एक अंग को स्पर्श करता है और सोचता है कि समूचा हाथी वैसा ही है। 

गत सप्ताह भारत में एमरजैंसी को लेकर भी कुछ इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए जा रहे थे। प्रत्येक व्यक्ति की टिप्पणी इस बात पर निर्भर थी कि वह किस राजनीतिक विचारधारा से संबंध रखता है। 
 
देश में एमरजैंसी लगाने की 40वीं वर्षगांठ सरसरी तौर पर याद की गई। इंदिरा गांधी के करीबी तथा विश्वासपात्र आर.के. धवन का साक्षात्कार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा कुछ अन्यों के इस बारे में भाषणों में कोई नई  या महत्वपूर्ण बात सामने नहीं आई। 
 
इस संबंध में एक प्रश्न यह भी हो सकता है कि एमरजैंसी से आप क्या उम्मीद करते थे? एमरजैंसी लगाना किस प्रकार संभव हुआ, इसके कारणों को समझने के लिए कुछ अच्छी-बुरी बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। 
 
देश की वर्तमान जनसंख्या में से दो-तिहाई का तो जन्म ही 1975 के बाद हुआ है अत: न तो इस पीढ़ी को उस दौर के घटनाक्रम का अनुभव है और न ही इतिहास की पुस्तकों में दिए गए चलन्त वर्णन से अधिक कुछ जानकारी। यही कारण है कि इनमें से अधिकांश ने एमरजैंसी के संबंध में उदासीनता व्यक्त की। 
 
यही हमारी राष्ट्र निर्माण नीति की कमजोरी है। हम अपनी समूची नई पीढ़ी को अपनी विरासत से उसके वारिसों के रूप में जोडऩे में असफल रहे हैं। इंगलैंड के सम्राट जॉन द्वारा 15 जून, 1215 को हस्ताक्षरित मैगनाकार्टा (घोषणा पत्र) पर हस्ताक्षर करने की 800वीं वर्षगांठ इन दिनों इंगलैंड में मनाई जा रही है। यही वह दिन था जब सम्राट जॉन ने इंगलैंड के सम्राट के अधिकारों को सीमित करने वाले इस घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। 
 
नागरिकों के अधिकारों की बुनियाद के रूप में भी इस घोषणा पत्र को जाना जाता है जिसे बाद में फ्रांसीसी क्रांति और अमरीकी जन अधिकार विधेयक में शामिल किया गया और यही बाद में संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार घोषणा पत्र भी बना और इस प्रकार यह विश्व भर में जनता की रक्षा करने वाला महत्वपूर्ण उपकरण बन गया। 
 
जाहिर है कि इंगलैंड की वर्तमान पीढिय़ों में से किसी ने भी उन हालात का अनुभव नहीं किया होगा जो मैगनाकार्टा पर हस्ताक्षर करने का कारण बने परन्तु वहां की सरकार इंटरनैट के माध्यम से इसके संबंध में अपने देश की युवा पीढ़ी के विचार जानने की कोशिश कर रही है ताकि इसमें कोई सुधार किया जा सके।
 
1975 से 1977 तक के 21 महीनों की अवधि को हम एमरजैंसी के नाम से जानते हैं जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने सभी नागरिक अधिकारों का निलंबन   कर दिया जो किसी भी लिहाज से हमारे अधिकारों संबंधी विधेयक के मापदंडों के अनुरूप नहीं था लेकिन यह एक सबक अवश्य है कि हमें अपने लोकतंत्र को किस प्रकार चलाना है। 
 
उस समय जबकि सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं ने घुटने टेक दिए थे, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी को सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग की दोषी पाते हुए उनके चुनाव को रद्द करके उन्हें 6 वर्षों के लिए चुनाव लडऩे से रोक दिया था। सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर ने भी यह आदेश बहाल रखा। 
 
भारतीय न्यायपालिका का इतना सशक्त और उज्ज्वल उदाहरण मौजूद होने के बावजूद न्यायपालिका ने भी घुटने टेक दिए और मंत्रिमंडल ने भी 15 मिनट के भीतर बिना किसी प्रकार के विरोध के विधेयक पारित कर दिया। अधिकांश प्रैस पर सैंसर बिठा दिया गया और कोई भी व्यक्ति एमरजैंसी के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं छाप सकता था। सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी संपादकों और विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया। 
 
भारतीय संविधान की धारा-352 का इस्तेमाल करते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वयं को असीमित शक्तियां प्रदान कर दीं। उनके 20 सूत्रीय कार्यक्रम के साथ संजय गांधी के 5 सूत्रीय कार्यक्रम ने जब्री नसबंदी और झोंपड़-पट्टियों के सफाए जैसी ज्यादतियोंके लिए जमीन तैयार कर दी। ऊपरी तौर पर इसे अच्छी गवर्नैंस कहा जा रहा था जिसके माध्यम से सरकार द्वारा कर्मचारियों को अनुशासित किया जा रहा है ताकि लोग समय पर कार्यालयों में पहुंचें और रेलगाडिय़ां समय पर चलें लेकिन वास्तविकता कुछ और ही थी।
 
एमरजैंसी का सबसे बड़ा सबक यह है कि जब एक व्यक्ति पार्टी पर हावी हो जाए और संविधानेत्तर शक्तियां मजबूत हो जाएं, जब थोथा राष्ट्रवाद भय का वातावरण पैदा कर देता है, जब एक व्यक्ति अपने समूचे मंत्रिमंडल से ऊंचा हो जाता है, जब मीडिया का दमन कर दिया जाता है तब वही बलपूर्वक राष्ट्रीय स्वतंत्रताओं को छीन लेने का उपयुक्त समय होता है। वही संगठित होने का उपयुक्त समय भी होता है।  

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