Edited By ,Updated: 31 Jul, 2015 11:43 AM
हर व्यक्ति अपना दीपक अथवा गुरु नहीं बन सकता। स्वयं दीपक या प्रकाश बनने के लिए भी उचित मार्गदर्शन अनिवार्य है। यह मार्गदर्शन एक गुरु की संगति के बिना कठिन है।
हर व्यक्ति अपना दीपक अथवा गुरु नहीं बन सकता। स्वयं दीपक या प्रकाश बनने के लिए भी उचित मार्गदर्शन अनिवार्य है। यह मार्गदर्शन एक गुरु की संगति के बिना कठिन है।
भगवान अपने हर अवतार में गए थे इनकी शरण में
अज्ञेय कहते हैं- वास्तव में कोई भी किसी को सिखाता नहीं है, जो सीखता है अपने ही भीतर के किसी उन्मेष से, प्रस्फुटन से सीखता है। जिन्हें गुरुत्व का श्रेय मिलता है, वे वास्तव में केवल इस उन्मेष के निमित्त होते हैं।
सर्वोच्च स्थान को ‘व्यासपीठ’ की संज्ञा दी जाती है, कौन थे वेद व्यास जी
परमहंस रामकृष्ण नहीं मिलते तो नरेंद्रनाथ दत्त विवेकानंद नहीं बन सकते थे। नेत्रहीन स्वामी विरजानंद ने मूलशंकर को स्वामी दयानंद सरस्वती बना दिया। जिज्ञासा मूलशंकर में थी। उसी जिज्ञासा, उसी ज्ञानलिप्सा ने उन्हें दयानंद सरस्वती बना दिया। हमारी सबसे बड़ी विडंबना है कि हम साधन को लक्ष्य या साध्य मान लेते हैं। चाहे गुरु हो या तीर्थस्थल, ये सब साधन हैं। इनका अपना महत्व है लेकिन मात्र साधन से आप लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते।
भगवान विष्णु के 9वें अवतार का जन्मदिवस है आज
हम जब तक स्वयं को जानने का प्रयास नहीं करेंगे, प्रगति नहीं कर सकते। सामर्थ्य हमारे अंदर है। बस उसे पहचानना है। यहीं गुरु का काम प्रारंभ होता है। वह हमें हमारी क्षमताओं से परिचित करवाता है, बस। उसके बाद उसका काम समाप्त। खोज हमें स्वयं करनी है, जारी रखनी है।