रहस्य: तो इन योगों के कारण जन्म लेता है बेटा

Edited By ,Updated: 26 Aug, 2015 04:05 PM

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सनातन धर्म में हर कार्य संस्कारों पर आधारित है। पौराणिक काल में संस्कारों की संख्या लगभग 40 थी। समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम स्मृति में 40 संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने 25 संस्कारों का आलेख किया है।...

सनातन धर्म में हर कार्य संस्कारों पर आधारित है। पौराणिक काल में संस्कारों की संख्या लगभग 40 थी। समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम स्मृति में 40 संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने 25 संस्कारों का आलेख किया है। व्यास स्मृति में 16 संस्कारों का वर्णन है। शास्त्रनुसार महत्वपूर्ण 16 संस्कार इस प्रकार हैं गर्भाधान संस्कार, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, मुंडन, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह व अन्त्येष्टि संस्कार। शास्त्र आज्ञा अनुसार 16 संस्कारो में से यज्ञोपवीत संस्कार, केशान्त संस्कार व अन्त्येष्टि संस्कार मात्र पुरुषों द्वारा ही किए जा सकते हैं। सनातन धर्म में मृत्यु संस्कार को अति महत्वपूर्ण माना गया है। मृत्यु पर अग्निदाह संस्कार व पितृ के पिंड व श्राद्ध कर्म पुत्र को ही करने का शास्त्र निर्देश देते हैं। शास्त्रनुसार पितृमोक्ष व पितृशांती हेतु वंशावली में पुत्र का होना अत्यंत आवश्यक है व पुत्र आभाव में पितृ को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है।
ज्योतिषशास्त्र अनुसार कुंडली व्यक्ति के भूत, वर्तमान व भविष्य का आईना होती है व व्यक्ति से संबंधित समस्त बातों का ज्ञान इससे प्राप्त होता है। व्यक्ति को संतान सुख है या नहीं या देर से प्राप्त होगा या व्यक्ति को पुत्र होगा या कन्या होगी या संतान गोद लेना होगा या चिकित्सा पद्धति से होगी ये सभी बातें कुंडली द्वारा ज्ञात की जा सकती है। हर व्यक्ति की इच्छा संतान सुख प्राप्त करने की होती है, परंतु सबको यह सुख प्राप्त नहीं होता। इस अर्थ प्रधान युग में प्रत्येक व्यक्ति शीघ्राशीघ्र धनवान होना चाहता है। इस चाहत में विवाह विलंब से हो रहे हैं तथा व्यक्ति भी विवाह उपरांत शीघ्र संतान नहीं चाहता अतः संतान की इच्छा धन संपत्ति के बाद होती है। ऐसी स्थिति में स्त्रियों की आयु अधिक हो जाने से संतान प्राप्ति में बाधाएं आती हैं। कुंडली में पंचम भाव व पंचमेश संतान की दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। संतान प्राप्ति का विचार अथवा इस विषय पर निर्णायक फल के लिए माता-पिता दोनों की कुंडली के गृहों का देखना आवश्यक होता है।
स्वस्थ व योग्य संतान प्राप्ति हर दंपती की इच्छा होती है परंतु पूर्व जन्मों के कर्म वर्तमान स्थिति में इन ग्रहों द्वारा फल देते हैं। बृहतपराशर होरा शास्त्र अनुसार यदि पंचम भाव में बुध, गुरु, शुक्र हो साथ-साथ पुरुष ग्रह से दृष्ट हो व पंचमेश भी बलवान हो तो बहुपुत्र होते हैं। लग्नेश पंचम में पंचमेश के साथ स्थित हो या लग्नेश पंचम में हो साथ-साथ पंचमेश केंद्र या त्रिकोण में हो तो पुत्र सुख प्राप्त होता है। लग्न, चंद्र व गुरु से पंचम भाव और नवम भाव पुत्रप्रद होता है। इन स्थानों के स्वामियों की दशांतर्दशा में जातक को पुत्र लाभ होता है। पंचमेश छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो संतान का अभाव होता है। यदि पंचमेश केंद्र या त्रिकोण में हो तो संतान सुख होता है। पांचवें भाव में छः ग्रह हों व पंचमेश 12वें भाव में, लग्नेश, चंद्र बलवान हो तो दत्तक पुत्र से सुख होता है। यदि पंचमेश उच्च राशि में हो, मूल त्रिकोण व स्वराशि में अर्थात बली हो व लग्न से एक, दो, पांच, नौ, भाव में हो तो व गुरु से दृष्ट रहे तो पुत्र जन्म के बाद व्यक्ति का भाग्य चमकता है।
 
यदि पंचम भाव में मिथुन, कन्या, मकर, कुंभ राशि में शनि व गुलिक की दृष्टि या योग हो तो व्यक्ति को दत्तक या कृत्रिम स्वीकृत पुत्र प्राप्त होता है। अपनी जीवनसाथी से उत्पन्न पुत्र नहीं होता। यदि पंचम भाव में 6 ग्रह हो तथा पंचमेश व्यय भाव में स्थित हो, लग्नेश व चंद्र बली हो तो जातक का गोद लिया पुत्र होता है। यदि पंचमेश 6, 8, 12 भाव में हो तो अथवा पंचमेश नीचस्थ, शुत्रक्षेत्री, होकर पंचम भाव में ही हो तो भी कष्टपूर्वक पुत्र होता है। यदि नवमेश लग्न में हो और पंचमेश नीच हो साथ ही पंचम भाव में केतु व बुध हो तो चिकित्सा पद्धति से पुत्र प्राप्त होता है। यंदि पंचमेश चंद्र के साथ हो या पंचमेश कर्क राशि के दे्रष्काण में हो तो कन्या रत्न की प्राप्ति होती है। लग्न से पंचम भाव में चंद्रमा या शु़क्र का वर्ग हो और वह चंद्र या शुक्र से युत या दृष्ट हो व पाप ग्रह से मुक्त हों। लग्न से एकादश भाव में शुभ ग्रह की राशि का नवांश हो व एकादशेश शुभ ग्रह से युत या दृष्ट होकर केंद्र या त्रिकोण भावों में स्थित हो तो जातक को पौत्र लाभ होता है।
 
नोट: इस लेख का आशय मात्र वैदिक शास्त्रों के आधार पर संतान के विषय पर जानकारी उपलब्ध कराना है। लेख गौतम स्मृति, व्यास स्मृति, गर्ग होरा व बृहत पाराशर होरा शास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित है।
 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com 

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