Edited By ,Updated: 03 Nov, 2015 08:43 AM
अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की मंगलकामना हेतु रखती हैं। पूरा दिन व्रत रखने के बाद वे शाम को कथा सुनती हैं....
अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की मंगलकामना हेतु रखती हैं। पूरा दिन व्रत रखने के बाद वे शाम को कथा सुनती हैं। कथा सुनने के वक्त वे एक जल लोटा भरकर और सामर्थ्यनुसार मिठाई व रुपए रखकर पूजा करती हैं। शाम को तारे निकलने पर वे लोटे के जल से अर्ध्य देती हैं और मिठाई-रुपए अपनी सास को ‘बया’ के रूप में भेंट करके उनसे आशीर्वाद लेती हैं। इसके बाद अहोई माता की पूजा आरंभ की जाती है इसके लिए दीवार पर रंगों की सहायता से अहोई माता की तस्वीर उकेरी जाती हैं या कैलेंडर टांग दिया जाता है।
इसके एक ओर परिवार के सभी पुरुष सदस्यों के नाम लिखे जाते हैं। घर में गुड़ और आटे से तैयार मीठे व्यंजनों को एक मिट्टी के गड़वे में रखकर ढंक दिया जाता है। परिवार के सभी सदस्य मिलकर कुमकुम, अक्षत और दूध के साथ व दीपक जलाकर अहोई माता की पूरी श्रद्धा से पूजा करते हैं। पूजा के बाद गड़वे में रखा प्रसाद परिवार में बांट दिया जाता है, इसके बाद महिलाएं अपना व्रत पूर्ण करती हैं। इस व्रत का उद्यापन भी किया जाता है। जिस स्त्री के बेटा हुआ हो या बेटे का विवाह हुआ हो उसे उद्यापन अवश्य करना चाहिए। इसके लिए एक थाल में सात जगह चार-चार पूरियां रख कर हलवे के साथ, साड़ी ब्लाऊज और रुपए रख कर सासू मां के पांवों को हाथ लगाकर श्रद्धापूर्वक उन्हें दे दें।
कथा : एक साहूकार के सात बेटे, सात बहुएं व एक बेटी थी। दीपावली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएं अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में खदान में मिट्टी खोद रही थीं कि मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से सेई का बच्चा मर गया। स्याहू (सेई) माता बोली कि तुमने मेरे बच्चे को मारा है मैं तुम्हारी कोख को बांधूगी। ननद ने अपनी भाभियों से कहा कि तुम सब में से कोई मेरी जगह अपनी कोख बंधवा ले। सबने मना कर दिया परंतु सबसे छोटी भाभी ने सास की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए अपनी कोख बंधवा ली। इसके बाद जब भी उसे पुत्र होता वह सात दिनों बाद ही मर जाता। एक दिन उसने एक पंडित जी को बुलाकर इसका कारण पूछा, तब पंडित जी ने कहा कि आप सुरही गाय की पूजा किया करो क्योंकि सुरही गाय स्याऊ माता की भायली है। वह तेरी कोख छोड़े तभी तेरा बच्चा जीवित रहेगा।
इसके बाद बहू प्रात: काल उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे सफाई आदि कर आती। गौ माता बोली कि आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है उसने देखा कि साहूकार के बेटे की बहू सफाई कर रही है। इस पर खुश होकर गौ माता ने उसे वर मांगने को कहा। वह बोली स्याऊ माता आपकी भायली है, उसने मेरी कोख बांध रखी है आप वह खुलवा दो। तब गौ माता उसे साथ लेकर समुद्र पार अपनी भायली के पास चल पड़ी। रास्ते में कड़ी धूप में आराम करने के लिए वे एक पेड़ के नीचे बैठ गईं। तभी वहां एक सांप आया और पेड़ पर गरुड़ पंखनी (पक्षी) के घोंसले में उसके बच्चे को डंसने लगा तो साहूकार की बहू ने सांप को मार कर बच्चे को बचा लिया। जब गरुड़ पंखनी ने यह देखा तो उसने बहू से कुछ मांगने को कहा। बहू ने कहा कि सात समुद्र पार स्याऊ माता रहती है, मुझे उनके पास पहुंचा दो। गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बिठाकर स्याऊ माता के पास पहुंचा दिया। स्याऊ माता उन्हें देखकर बोली, ‘‘अरे बहन, तुम यहां कैसे, मेरे सिर में बहुत जुएं पड़ गई हैं।’’
तब सुरही गाय के कहने पर साहूकार की बहू ने सलाई से उसकी जुएं निकाल दीं। इस पर स्याऊ माता ने खुश होकर कहा, ‘‘तेरे सात बेटे और बहू होंगी।’’
वह बोली, ‘‘मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद पड़ी है, बेटे कहां से पैदा होंगे।’’
तब स्याऊ माता बोली, ‘‘तू घर जा, वहां तुझे तेरे सातों बेटे अपनी पत्नियों के साथ मिलेंगे। तुम घर जाकर उद्यापन करना, सात अहोई बनाकर सात कढ़ाई (हलवा-पूरी) करना।’’
जब बहू लौट कर घर आई तो अपने बेटों-बहुओं को देखकर वह खूब खुश हुई और उद्यापन भी किया। जिस प्रकार स्याऊ माता ने साहूकार की बहू को उसकी खुशियां लौटा दीं, उसी तरह कथा सुनने वाले तथा कहने वाले पर भी स्याऊ माता अपना आशीर्वाद बनाए रखे।
—सरिता शर्मा