राज्यपालों और राज्य सरकारों का टकराव किसी भी दृष्टि से उचित नहीं

Edited By ,Updated: 25 Mar, 2024 04:05 AM

conflict between governors and state govts is not justified in any way

आर्टिकल 153 से लेकर आर्टिकल 156 तक राज्यपाल जो मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करते हैं, उनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केंद्र में राष्ट्रपति की है। संविधान निर्माता डा. बी.आर. अम्बेडकर ने 31 मई, 1949 को कहा था कि‘‘राज्यपाल का पद सजावटी है...

आर्टिकल 153 से लेकर आर्टिकल 156 तक राज्यपाल जो मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करते हैं, उनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केंद्र में राष्ट्रपति की है। संविधान निर्माता डा. बी.आर. अम्बेडकर ने 31 मई, 1949 को कहा था कि‘‘राज्यपाल का पद सजावटी है तथा उनकी शक्तियां सीमित व नाममात्र हैं।’’

फाइनैंस बिल (वित्त विधेयक) के अलावा कोई अन्य बिल राज्यपाल के सामने उनकी स्वीकृति के लिए पेश करने पर वह या तो उसे अपनी स्वीकृति देते हैं या उसे पुनॢवचार के लिए वापस भेज सकते हैं। ऐसे में सरकार द्वारा दोबारा बिल राज्यपाल के पास भेजने पर उन्हें उसे पारित करना होता है। परंतु पिछले कुछ समय से देश में विभिन्न राज्यों के राज्यपालों तथा राज्य सरकारों के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर टकराव की स्थिति बनी हुई है जिनमें पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु आदि शामिल हैं। 

इन दिनों केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की वामपंथी सरकार तथा राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान में विभिन्न मुद्दों को लेकर टकराव चल रहा है। इसी पृष्ठभूमि में 1 मार्च को राज्य सरकार ने पिछले 2 वर्षों में केरल विधानसभा द्वारा पारित 8 विधेयकों को स्वीकृति देने में देरी का हवाला देते हुए राज्यपाल के विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट का रुख किया था। इसके बाद सुप्रीमकोर्ट ने राज्यपाल के कार्यालय को एक मामले में अपने फैसले की समीक्षा करने का निर्देश दिया था जिस पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने ‘केरल सार्वजनिक स्वास्थ्य विधेयक’ पर अपनी सहमति दे दी थी जबकि शेष 7 विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के लिए आरक्षित कर दिए थे, जिन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी सहमति नहीं दी थी। इनमें से उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालयों से संबंधित 3 विधेयकों का उद्देश्य विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की शक्तियों को सीमित करना था जिससे कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य सरकार को स्पष्ट रूप से बढ़त मिल सके। 

अब 23 मार्च को केरल सरकार ने एक असामान्य कदम उठाते हुए राज्य विधानसभा द्वारा पारित 4 विधेयकों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा स्वीकृति न देने के विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए राष्ट्रपति द्वारा बगैर किसी कारण के विधेयकों को स्वीकार न करने को असंवैधानिक कदम घोषित करने का न्यायालय से अनुरोध किया है। इनमें विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) (2) विधेयक, 2021; केरल सहकारी सोसायटी संशोधन विधेयक, 2022; विश्वविद्यालय कानून (संशोधन विधेयक 2022 और विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) (3) विधेयक, 2022 शामिल हैं। राज्य सरकार ने इस मामले में राष्ट्रपति के सचिव, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और उनके अतिरिक्त सचिव को पक्षकार बनाते हुए कहा है कि यह संविधान की धारा 14 (कानून के सामने सभी समान) का उल्लंघन है। 

इसी प्रकार तमिलनाडु में एम. के. स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक सरकार और राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच भी अनेक मुद्दों को लेकर विवाद चला आ रहा है। यहां तक कि राज्यपाल ने सरकार द्वारा दिए गए सत्र के अभिभाषण को भी पढऩे से इंकार कर दिया। ताजा विवाद मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के अनुरोध पर 14 मार्च को राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में लौटने वाले पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री के. पोनमुडी को राज्यपाल द्वारा पद की शपथ दिलाने से इंकार करने से पैदा हुआ। 

उल्लेखनीय है कि के. पोनमुडी को 2023 में आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पद छोडऩा पड़ा था परंतु सुप्रीमकोर्ट द्वारा उनकी सजा पर रोक लगा देने के बाद विधानसभा अध्यक्ष एम. अपावु ने पोनमुडी की विधानसभा सीट थिरूकोइलुर को खाली घोषित करने वाली अपनी पिछली अधिसूचना रद्द कर दी थी। इसके बाद जब मुख्यमंत्री स्टालिन ने पोनमुडी को दोबारा मंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए राज भवन को अनुरोध भेजा तो राज्यपाल आर.एन. रवि ने उन्हें शपथ दिलाने से इंकार कर दिया। इस पर तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में गुहार लगाई जिस पर सुप्रीमकोर्ट द्वारा सुनवाई के दौरान पोनमुडी को मंत्री परिषद में फिर से शामिल करने के लिए 24 घंटे की समय सीमा देने और  राज्यपाल की खिंचाई करने के बाद राज्यपाल एन. रवि ने 22 मार्च को राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में पोनमुडी को मंत्रिपद की शपथ दिला दी है। 

इसी तरह गत वर्ष पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस और राज्य सरकार के बीच विवाद चर्चा में रहा। राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस द्वारा की गई राज्य सरकार द्वारा संचालित 10 विश्वविद्यालयों में अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति को खारिज कर दिया था जिसे लेकर काफी विवाद पैदा हुआ था। गौरतलब है कि राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होने के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार के बीच महत्वपूर्ण कड़ी होता है। जहां एक ओर राज्यपाल राज्य के नाममात्र प्रमुख के रूप में कार्य करता है वहीं वास्तविक शक्ति लोगों द्वारा चुने गए राज्य के मुख्यमंत्री के पास होती है। इसलिए राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच इस प्रकार के विवादों को किसी भी दृष्टिï से उचित नहीं कहा जा सकता। 

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