सरकारों द्वारा लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने से ‘देश में आर्थिक दिवालिएपन का खतरा’

Edited By ,Updated: 21 Apr, 2022 03:56 AM

govts giving free facilities to people threat economic bankruptcy in the country

गत वर्ष एक जागरूक मतदाता ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर करके अदालत से पार्टियों को चुनावों के मौके पर लम्बे-चौड़े चुनावी वादे करने और मुफ्त के गफ्फे देने से रोकने का आग्रह किया

गत वर्ष एक जागरूक मतदाता ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर करके अदालत से पार्टियों को चुनावों के मौके पर लम्बे-चौड़े चुनावी वादे करने और मुफ्त के गफ्फे देने से रोकने का आग्रह किया था। इस पर 31 मार्च, 2021 को मद्रास हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एन. किरूबाकरण और न्यायमूर्ति बी. पुगालेंढी पर आधारित खंडपीठ ने राजनीतिक पार्टियों को ‘लोक लुभावन वायदों का रिवाज’ बंद करने की सलाह देते हुए कहा : 

‘‘लोक-लुभावन वायदे करने के मामले में हर राजनीतिक पार्टी एक-दूसरे से आगे निकल जाना चाहती है। यदि एक पार्टी गृहिणियों को 1000 रुपए मासिक देने की बात कहती है तो दूसरी पार्टी 1500 रुपए मासिक देने की घोषणा कर देती है और तीसरी पार्टी इससे भी आगे बढ़ जाती है।’’ 

‘‘यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है जिस कारण लोगों के मन में यह बात घर कर गई है कि वे तो मुफ्त के माल से ही जिंदगी बिता सकते हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि मुफ्त के इस माल के वितरण का विकास, रोजगार या खेती से कोई संबंध नहीं है। मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए जादुई वायदों के जाल में फंसा कर लुभाया जाता है। यह तमाशा दशकों से जारी है जो हर पांच वर्ष बाद दोहराया जा रहा है।’’ 

‘‘हर उम्मीदवार को चुनाव पर कम से कम 20 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते हैं क्योंकि अधिकांश लोग अपना वोट बेचने के कारण भ्रष्ट हो चुके हैं। सिवाय बांटे गए मुफ्त के कुछ उपहारों के बाकी सब वादे वादे ही रह जाते हैं।’’ माननीय न्यायाधीशों ने आगे कहा, ‘‘लोगों को मुफ्त के उपहार देने पर खर्च किया जाने वाला धन यदि रोजगार के अवसर पैदा करने, बांधों के निर्माण और कृषि के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करने के लिए इस्तेमाल किया जाए तो निश्चित रूप से समाज का उत्थान और राज्य की प्रगति होगी।’’ माननीय न्यायाधीशों ने यह भी कहा, ‘‘आज आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद न रहने के चलते अधिकांश किसानों ने कृषि का परित्याग कर दिया है जिससे यह व्यवसाय अनाथ होकर रह गया है।’’ 

इसी बारे कई अफसरशाहों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ध्यान हाल ही में पांच राज्योंं के चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा एक-दूसरे से बढ़-चढ़ कर मुफ्त की सुविधाएं देने सम्बन्धी घोषणाओं की ओर दिलाया था। पंजाब की नवनिर्वाचित ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली के अलावा अनेक सुविधाएं देने की घोषणा की है। ये रियायतें देने से पहले मुख्यमंत्री भगवंत मान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट करके उनसे 50,000 करोड़ रुपए के विशेष पैकेज की मांग की थी। 

पंद्रहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह के अनुसार, ‘‘देश का राजनीतिक माहौल ही कुछ ऐसा बन गया है कि सरकारें राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए अधिक से अधिक मुफ्त की सुविधाएं देने की राजनीति की ओर आकर्षित हो रही हैं। इससे यह संशय पैदा होता है कि कहीं भारत दीवालिएपन की ओर तो नहीं बढ़ रहा।’’ वित्त आयोग के अध्यक्ष श्री एन.के. सिंह ने एक-दूसरे की देखादेखी मुफ्त के गफ्फे देने के दुष्परिणामों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘‘केंद्र की शक्ति राज्यों की शक्ति में निहित है। इसलिए केन्द्र सरकार का आर्थिक स्थायित्व दोनों केन्द्र और राज्यों के आर्थिक स्थायित्व पर निर्भर करता है।’’ 

‘‘राज्य सरकारों द्वारा केन्द्र से अतिरिक्त फंड मांगने का रुझान हमारे वित्तीय ढांचे को प्रभावित कर रहा है। हर राज्य सरकार अपने बिल अदा करने में विफल रहने पर तुरन्त केन्द्र की ओर रुख कर लेती है जबकि ऐसा केवल महामारी या प्राकृतिक विनाश जैसी आपदाओं में ही होना चाहिए।’’उक्त सुझावों का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकारों को इस विषय में विचार करना चाहिए। वैसे भी सरकारें ये गफ्फे सार्वजनिक कोष से ही देती हैं जिसका बोझ अंतत: करदाताओं पर ही पड़ता है। अत: यदि ऐसी सुविधाएं देनी ही हैं तो अपने पार्टी कोष से देनी चाहिएं या फिर ऐसा करने की बजाय रोजगार और व्यापार के अधिक साधन पैदा करके लोगों की स्थिति सुधारने का प्रयास करना चाहिए।—विजय कुमार 

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