कुछ भूली बिसरी यादें : ‘हिमाचल वासियों के दिलों के राजा’ ‘श्री वीरभद्र सिंह चले गए’

Edited By ,Updated: 10 Jul, 2021 03:14 AM

king of the hearts of the people of himachal   shri virbhadra singh is gone

15 अगस्त, 1947 को भारत के विभाजन से पूर्व जब हम जालंधर आए उस समय पंजाब की सीमाएं पेशावर से दिल्ली तक थीं। उस जमाने में फ्रंटियर मेल नामक एक गाड़ी पेशावर से चलने के बाद

15 अगस्त, 1947 को भारत के विभाजन से पूर्व जब हम जालंधर आए उस समय पंजाब की सीमाएं पेशावर से दिल्ली तक थीं। उस जमाने में फ्रंटियर मेल नामक एक गाड़ी पेशावर से चलने के बाद दिल्ली में रुक कर ब बई जाती थी। 

विभाजन के बाद पंजाब छोटा होकर अटारी से दिल्ली तक ही रह गया। 1 नवंबर, 1966 को जब पंजाब का विभाजन हुआ तो ऊना और कांगड़ा सहित पंजाब के कई पहाड़ी इलाके हिमाचल में शामिल किए गए। इसके बाद 18 दिसंबर, 1970  को संसद में स्टेट आफ हिमाचल प्रदेश एक्ट पास हुआ और 25 जनवरी, 1971 को वर्तमान हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया। 

पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी देश के बंटवारे से पहले लाहौर कांग्रेस के अध्यक्ष थे। मैं 10 वर्ष का था तो उनके साथ 1942 में पहली बार पालमपुर गया। उन दिनों कांग्रेस के डा. गोपीचंद भार्गव और डा. सतपाल गुट के बीच खींचतान चल रही थी और इसी सिलसिले में पिता जी पालमपुर में श्री कुंज बिहारी लाल बुटैल से मिलने गए। उस समय वह पालमपुर में चाय के बड़े उत्पादक थे।

उसके बाद मुझे स्कूल की छुट्टियां हुईं तो गोस्वामी गणेश दत्त जी के शिष्य और स्वतंत्रता सेनानी अमरनाथ जी मुझे छुट्टियां बिताने के लिए फिर पालमपुर ले गए। वह कांग्रेसी थे और उन्होंने वहां कई सनातन धर्म स्कूल खोले। उस समय हिमाचल के लोग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। वे रोजगार के लिए पंजाब के ढाबों व कारखानों में काम करने आते थे। उस समय हिमाचल में बुनियादी सुविधाओं का अभाव था। सड़कों की हालत खस्ता थी, स्कूल कम थे और इलाज के लिए कोई अच्छा अस्पताल भी नहीं था। 

1952 में जब पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी संयुक्त पंजाब में शिक्षा, परिवहन और स्वास्थ्य मंत्री बने तो वह प्रदेश के कई क्षेत्रों का दौरा करते और इस दौरान वह अक्सर लोगों से कहते कि वे उन्हें 2 कमरों की जगह दें और वह क्षेत्र में स्कूल की मंजूरी दे देंगे। पिता जी के कार्यकाल के दौरान प्रदेश में कई नए स्कूल खोले गए, कई प्राइमरी, मिडल व हाई स्कूल अपग्रेड किए गए। हिमाचल प्रदेश के पहले मु यमंत्री बनने का श्रेय श्री यशवंत सिंह परमार को मिला। वह 1 जुलाई, 1963 से 28 जनवरी, 1977 तक 14 वर्ष तक राज्य के मु यमंत्री रहे। इनके बाद उनके खास मित्र श्री वीरभद्र सिंह पहली बार 1983 में मु यमंत्री बने और उसके बाद 5 बार मुख्यमंत्री बने। 

वह 4 बार सांसद भी चुने गए और केंद्रीय कांग्रेस सरकार में 4 बार मंत्री बने। वह प्रोफैसर बनना चाहते थे। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के प्रोत्साहित करने पर उन्होंने 1962 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा व 21 वर्ष के सबसे युवा सांसद बने। अपने राजनीतिक सफर में 16 चुनाव लड़कर 14 में विजय प्राप्त करने वाले श्री वीरभद्र सिंह का 8 जुलाई को तड़के तीन बजे देहांत हो गया। बुशहर रियासत के शाही परिवार में वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून, 1934 को शिमला जिले के सराहन गांव में हुआ था और 13 नव बर, 1947 को 13 साल की उम्र में वह बुशहर रियासत के 123वें राजा बने। 

वीरभद्र सिंह का पहला विवाह 28 मई, 1954 को जुब्बल रियासत के राणा दिग्विजय चंद और रानी हेमानी कंवर की बेटी रत्नकुमारी से हुआ और उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने दूसरा विवाह प्रतिभा सिंह से किया। इन दोनों विवाहों से उनकी चार बेटियां और एक बेटा है। श्री वीरभद्र सिंह के साथ ‘पंजाब केसरी परिवार’ के बहुत अच्छे संबंध थे। इसी कारण वह 18 मई, 1986, 23 जनवरी, 2011, 27 जुलाई, 2014 और 11 दिसंबर, 2016 को ‘पंजाब केसरी समूह’ द्वारा संचालित शहीद परिवार फंड राहत वितरण समारोहों में भाग लेने के लिए जालंधर पधारे।

‘पंजाब केसरी’ द्वारा ‘हिमाचल आपदा राहत कोष’ में 4 बार सहायता प्रदान की गई। वह दो बार जालंधर पधारे पहली बार 4 नवंबर 1997 को उन्हें 15.42 लाख रुपए तथा दूसरी बार 27 जुलाई, 2014 को ‘शहीद परिवार फंड राहत समारोह’ में भाग लेने आए तो ‘पंजाब केसरी’ की ओर से उन्हें ‘हिमाचल राहत कोष’ के लिए 11 लाख रुपए का ड्राफ्ट भेंट किया गया।
मेरे निमंत्रण पर वह 2 बार आल इंडिया फैडरेशन आफ मास्टर प्रिंटर्स के नई दिल्ली में आयोजित समारोहों में भाग लेने आए।

उनकी खूबी थी कि उन्हें जब भी आमंत्रित किया गया तो वह समय पर ही वहां पहुंचते। अत्यंत विनम्र और मधुर स्वभाव वाले वीरभद्र सिंह जी मात्र अपनी रियासत के ही राजा नहीं, बल्कि लोगों के दिलों के भी राजा थे। जो कोई भी उनके पास आया उन्होंने उसे कभी खाली हाथ नहीं लौटाया। दूसरों की सहायता करने की उनकी भावना का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक बार जब वह अपनी दूसरी पत्नी श्रीमती प्रतिभा सिंह के साथ जालंधर पधारे तो उन्होंने मुझसे कहा कि ‘‘यदि कभी मैं न मिलूं तो आप इनसे संपर्क करें और उनका फोन नंबर मुझे दिया।’’ 

जब मैंने हिमाचल प्रदेश की सड़कों की प्रशंसा की तो उन्होंने कहा, ‘‘प्रदेश में जहां कहीं भी मैं जाता हूं तो बीच-बीच में रुक कर सड़क बनाने में प्रयुक्त सामग्री निकाल कर उसकी जांच करवाता हूं।’’ मैंने जब हिमाचल में कुछ स्थानों पर सड़कों के किनारे रेलिंग न होने से दुर्घटनाओं की बात की तो उन्होंने एक माह में ही वहां रेङ्क्षलग लगवा दी। वीरभद्र सिंह को कांगड़ा क्षेत्र में अनेक परियोजनाएं शुरू करने का श्रेय जाता है। वह हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड को शिमला से धर्मशाला में लाए। अधिकारी उनकी प्रशासनिक क्षमता की प्रशंसा करते थे और उनके दिए गए आदेशों की तामील करते। उन्होंने अन्य विकास कार्यों के अलावा सोलन जिले में ही दिग्गल, जय नगर और दाड़लाघाट में नए कालेज खुलवाए। 

1980 के दशक में जब कश्मीर में हालात बिगडऩे लगे और पर्यटकों का रुझान कश्मीर की तरफ से घटा तो वीरभद्र जी ने राज्य में सड़कों का जाल बिछाया और उन्हें चौड़ा करवाया और हिमाचल को पर्यटन के केंद्र के रूप में विकसित किया जिस कारण अब हिमाचल पर्यटकों का पसंदीदा प्रदेश बन गया है। आज पूरे भारत के लोग शिमला, मनाली, चंबा और डल्हौजी सहित प्रदेश के कई पर्यटन स्थलों पर छुट्टियां मनाने जाते हैं।

किसी समय शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा राज्य आज शत-प्रतिशत साक्षरता वाला प्रदेश बन चुका है जिसका श्रेय श्री वीरभद्र सिंह को काफी हद तक जाता है। आज बेशक श्री वीरभद्र सिंह हमारे बीच नहीं रहे परंतु उनके काम सदैव हिमाचल वासियों को उनकी याद दिलाते रहेंगे। उनके चले जाने से हिमाचल की राजनीति में पैदा हुआ शून्य शायद ही भरा जा सके।—विजय कुमार

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