चुनाव परिणामों का सबक ‘लोग अब बदलाव चाहने लगे’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Mar, 2018 12:07 AM

lessons of election results people want to change now

कुछ समय से देश के राजनीतिक वातावरण में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। पहले 17 दिसम्बर, 2017 को पंजाब के 3 नगर निगमों जालन्धर, अमृतसर व पटियाला के चुनाव परिणाम आए जिनमें 10 वर्ष के बाद कांग्रेस ने भारी विजय प्राप्त करके शिअद-भाजपा गठबंधन को सत्ताच्युत...

कुछ समय से देश के राजनीतिक वातावरण में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। पहले 17 दिसम्बर, 2017 को पंजाब के 3 नगर निगमों जालन्धर, अमृतसर व पटियाला के चुनाव परिणाम आए जिनमें 10 वर्ष के बाद कांग्रेस ने भारी विजय प्राप्त करके शिअद-भाजपा गठबंधन को सत्ताच्युत किया और 32 नगर परिषदों/नगर पंचायतों के चुनावों में अपनी जीत दर्ज की।

फिर 18 दिसम्बर को घोषित हिमाचल व गुजरात के चुनाव परिणामों में भी बदलाव की झलक देखने को मिली। हिमाचल में तो भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली और गुजरात में अपनी सत्ता पर कब्जा कायम रखा परन्तु वहां उसकी विजय का अंतर घट गया।

इस वर्ष 1 फरवरी को घोषित राजस्थान व बंगाल के उप-चुनावों में भी भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। राजस्थान की दोनों लोकसभा सीटें और एक विधानसभा सीट इसने कांग्रेस के हाथों गंवा दी तथा बंगाल में भी एक विधानसभा व एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव में भाजपा के हाथ खाली रहे।

19 फरवरी को घोषित गुजरात के नगर पालिका चुनावों में भाजपा जीत तो गई परन्तु इसकी सीटों की संख्या पिछली बार की 59 के मुकाबले घट कर 47 ही रह गई। पिछली बार लगभग एक दर्जन नगर पालिकाओं पर जीतने वाली कांग्रेस ने यहां भी भाजपा को झटका देते हुए 16 नगर पालिकाओं में जीत दर्ज करके अपनी स्थिति कुछ सुधार ली।

बदलाव का सिलसिला अभी भी जारी है तथा 27 फरवरी को घोषित लुधियाना नगर निगम के चुनाव परिणामों में भी कांग्रेस ने 62 सीटों पर भारी जीत दर्ज करके 10 वर्ष बाद नगर निगम पर कब्जे का रास्ता साफ कर लिया जबकि शिअद को 11 व भाजपा को 10 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।

अतीत में शिअद से जुड़े रहे बैंस बंधुओं ने अपनी ‘लोक इंसाफ पार्टी’ के झंडे तले 59 वार्डों में अपने उम्मीदवार खड़े किए परन्तु उन्हें 7 सीटों पर ही सफलता मिल पाई जबकि पार्टी प्रमुख विधायक सिमरजीत सिंह बैंस इस बार नगर निगम पर कब्जा करने के दावे कर रहे थे।

यहीं पर बस नहीं बदलाव की एक और लहर में जहां बीजद की रीता साहू ने ओडिशा के बिजेपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी को हराकर यह सीट छीन ली जो पहले कांग्रेस के पास थी।

हाल के वर्षों में केंद्र तथा अधिकांश राज्यों में सत्ता गंवा कर कमजोर दौर से गुजर रही कांग्रेस को इन विजयों ने हौसला दिया है परन्तु अपने उखड़े हुए पैर जमाने के लिए अभी इसे और मेहनत करनी होगी।

इन सफलताओं का श्रेय चाहे कोई भी लेना चाहे परन्तु वास्तव में जीत बदलाव की लहर की है। भले ही भाजपा यह कहती रहे कि केंद्र तथा देश में 19 राज्यों की सत्ता पर कब्जा करके उसने कमाल कर दिया है परन्तु लोग बदलाव चाहते हैं जो हमेशा अच्छा होता है।

इसीलिए हम अक्सर यह लिखते रहते हैं कि अनेक पाश्चात्य देशों की भांति भारत में भी संसद और विधानसभाओं का कार्यकाल 4-4 वर्ष होना चाहिए और हर बार सरकारें बदल-बदल कर ही आनी चाहिए।

एक ही पार्टी या गठबंधन की सरकारों के दो-दो कार्यकालों तक बने रहने पर उनमें ठहराव एवं लापरवाही की भावना आ जाने से भ्रष्टïाचार व अन्य प्रशासनिक बुराइयां बढ़ती चली जाती हैं और जनता की उपेक्षा होने लगती है। बदल-बदल कर सरकारें आने पर सभी पाॢटयां सतर्क रहेंगी जिससे देश के साथ-साथ उन्हें तथा जनता दोनों को ही लाभ होगा।

इस समय भाजपा नेतृत्व में उत्साह शिखर पर है, वहीं कांग्रेस का नेतृत्व जो पहले कमजोर दिखाई दे रहा था, और बार-बार की पराजयों से इसका मनोबल टूट रहा था, इन विजयों से इसका मनोबल बढ़ेगा तथा दूसरी ओर लगने वाले इन चुनावी झटकों से भाजपा नेतृत्व अपनी त्रुटियों पर आत्ममंथन करके उनमें सुधार करने के लिए विवश होगा।

हमारे देश ने 900 वर्षों तक गुलामी की मार सही है जिसके दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए बार-बार बदलाव जरूरी है। बार-बार बदलाव से ही देश के हालात सुधरेंगे और विकास में तेजी आएगी।      —विजय कुमार 

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