अब चिनम्मा

Edited By ,Updated: 12 Dec, 2016 12:24 AM

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तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता का जीवन और उनकी मित्र मंडली सदा ही रहस्य के आवरण में रहे हैं जिनमें सर्वाधिक चॢचत रहे हैं 17-सदस्यीय ...

तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता का जीवन और उनकी मित्र मंडली सदा ही रहस्य के आवरण में रहे हैं जिनमें सर्वाधिक चॢचत रहे हैं 17-सदस्यीय ‘मन्नारगुडी माफिया परिवार’ से संबंधित उनकी सहेली और राजदार शशिकला के साथ 30 वर्ष पुराने उनके बनते-बिगड़ते रिश्ते। कई बार शशिकला से नाराज होकर जयललिता ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया परंतु जल्दी ही उनके आवास ‘पोएस गार्डन’ में शशिकला की वापसी भी हो गई।

2012 में जयललिता ने शशिकला को अन्नाद्रमुक से निकाल बाहर किया था क्योंकि जयललिता को शक था कि शशिकला  ने उनके शत्रुओं से मिल कर उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की थी पर इसके 100 दिनों के बाद ही शशिकला को उन्होंने वापस बुला लिया और ऐसा कई बार हुआ।

जयललिता के जीते-जी ही शशिकला ने तमिलनाडु की सरकार और पार्टी में किसी भी पद पर न रहते हुए भी अपना इतना दबदबा बना लिया था कि पार्टी के भीतर वह सत्ता का एक केंद्र बन गई थीं। अपने भाई द्वारा खोली कैसेट किराए पर देने वाली दुकान से लेकर शशिकला और उसका परिवार अब 30 कम्पनियों का मालिक है।

अस्पताल में जयललिता के इलाज के दौरान शशिकला ने जयललिता के दिवंगत भाई की बेटी और बेटे (जयललिता के एकमात्र रिश्तेदारों)को भी जयललिता से मिलने नहीं दिया और जयललिता की मृत्यु के बाद भी उनके पाॢथव शरीर के इर्द-गिर्द भी शशिकला के परिवार के सदस्यों का ही घेरा रहा।

जयललिता के इन परिजनों के मौजूद होने के बावजूद उन्हें उनके अंतिम संस्कार की रस्में निभाने नहीं दी गईं और यह काम भी शशिकला ने ही किया। जयललिता को दफनाने के बाद श्रद्धांजलि संदेश भी पार्टी और सरकार से जुड़े किसी व्यक्ति ने नहीं बल्कि शशिकला के पति नटराजन (जिन्हें जया बेहद नापसंद करती थीं) ने पढ़ा था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जयललिता की मृत्यु पर जब शोक व्यक्त करने चेन्नई आए तो उन्होंने मुख्यमंत्री पन्नीरसेलवम के साथ-साथ शशिकला से भी शोक व्यक्त किया था। इसी प्रकार राहुल गांधी को भी पन्नीरसेलवम से मिलवाने की बजाय शशिकला के पति नटराजन से मिलवाया गया था।

बेशक जयललिता ने पन्नीरसेलवम पर सदा भरोसा किया और जेल जाते समय उन्होंने अपनी गद्दी भी उन्हें ही सौंपी और शशिकला ने भी उन्हीं को मुख्यमंत्री पद की शपथ राज्यपाल से दिलवाई परंतु वह स्वयं को जयललिता की विरासत की उत्तराधिकारी के रूप में पेश करना चाहती हैं। इसी उद्देश्य से वह खुद को चिनम्मा (छोटी मां) के रूप में प्रस्तुत करते हुए पार्टी की महासचिव बनना चाहती हैं। ऐसे में सुनने में आया है कि वे अपने दूसरे पड़ाव में जयललिता के चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ कर मुख्यमंत्री भी बनना चाहेंगी।

अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में जया 4 बड़ी जातियों थेवर, कांगू-वेल्लार, गौण, वबणियार और दलित के प्रभाव को संतुलित करती रहीं। जहां शशिकला और पन्नीरसेलवम थेवर जाति से हैं वहीं परिवहन मंत्री गौण जाति से संबंधित हैं जिसके सदस्यों को जयललिता उच्च स्थानों पर पदासीन करती रही हैं। ऐसे में अब ये दूसरी जातियां नहीं चाहतीं कि शशिकला जयललिता की सारी सम्पत्ति और राजनीतिक विरासत की उत्तराधिकारी बनें इसीलिए वे जयललिता की सम्पत्तियों, खासतौर पर उनके आवास ‘पोएस गार्डन’ को संग्रहालय का रूप देना चाहती हैं।

इस तरह के घटनाक्रम के बीच कुछ भी कहना समय से पूर्व की बात होगी? अलबत्ता इतना अवश्य कहा जा सकता है कि तमिलनाडु में व्याप्त अनिश्चितता का अंजाम चाहे जो भी निकले वहां सत्ता पर कब्जा करने के लिए घात लगाकर बैठी द्रमुक, कांग्रेस और भाजपा भी इससे अछूती नहीं रहेंगी।

लोकसभा में अन्ना द्रमुक की निर्णायक 37 सीटें और राज्यसभा में इसके 14 सदस्य होने के कारण जयललिता की मौत एन.डी.ए. सरकार के लिए चुनौतियां और अवसर दोनों लेकर आई है। न केवल आगामी राष्ट्रपति चुनाव, जी.एस.टी. बिल बल्कि 2019 के आम चुनाव में भी भाजपा को अन्नाद्रमुक को साथ रखना अनिवार्य है। चूंकि तमिलनाडु की राजनीति फिलहाल अनिश्चित और अस्थिर है, केन्द्र सरकार को तमिलनाडु के सत्ता के खेल में ताकतवर बन कर उभरने वाले के साथ संतुलन बनाकर रखना पड़ेगा। 

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