जलसंरक्षण के लिए कुछ करना होगा

Edited By Pardeep,Updated: 14 May, 2018 03:11 AM

something to do for water conservation

शहरी तथा ग्रामीण भारत के मुद्दे अक्सर बेहद अलग होते हैं परंतु दोनों को समान रूप से प्रभावित करने तथा भविष्य में भी बना रहने वाला मुद्दा है पानी की कमी। ग्रामीण अंचलों में 1 करोड़ 63 लाख लोगों का पेयजल से वंचित रहना जल्द ही एक बड़ी जनसंख्या के लिए भी...

शहरी तथा ग्रामीण भारत के मुद्दे अक्सर बेहद अलग होते हैं परंतु दोनों को समान रूप से प्रभावित करने तथा भविष्य में भी बना रहने वाला मुद्दा है पानी की कमी। 

ग्रामीण अंचलों में 1 करोड़ 63 लाख लोगों का पेयजल से वंचित रहना जल्द ही एक बड़ी जनसंख्या के लिए भी वास्तविकता बन सकता है। विश्व की 18 प्रतिशत जनसंख्या तथा 4 प्रतिशत जल स्रोतों के साथ यह पूर्वनिश्चित ही था कि भारत इस समस्या का सामना करेगा। दुर्भाग्यवश समस्या प्रकृति आधारित नहीं बल्कि मानव आधारित है। इस समस्या के प्रमुख कारणों में संसाधनों का कुप्रबंधन, जलसंरक्षण के लिए सरकारी नियामकों का अभाव, मानवीय तथा औद्योगिक कचरा शामिल हैं। 

इस वर्ष फरवरी में सुर्खियों में रही खबरों में एक थी यमुना नदी के जल में अमोनिया की अधिक मात्रा जिसका स्तर 2.23 पी.पी.एम. (पाटर््स पर मिलियन) तक बढ़ गया था जबकि सुरक्षित स्तर 0.2 पी.पी.एम. है। दिल्ली जल बोर्ड पानी में अमोनिया को केवल 0.9 पी.पी.एम. के स्तर तक साफ करने में सक्षम है। कुछ दिन पूर्व राजधानी में पानी की समस्या एक बार फिर खबरों में थी। इस बार कारण था मध्य तथा दक्षिण दिल्ली के कुछ हिस्सों को छोड़ कर इसके अधिकतर हिस्सों के जलस्तर में आई गिरावट। 

वैसे सैंट्रल ग्राऊंड वाटर बोर्ड की 2016 की रिपोर्ट से पता चलता है कि जनवरी 2015 से 2016 के मध्य निगरानी के तहत रहे देश के 64 प्रतिशत से अधिक हिस्सों में जलस्तर में कमी आई है। इसका एक बड़ा हिस्सा देश के उत्तर-पश्चिम राज्यों में है। इस संदर्भ में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का विशेष उल्लेख बनता है। केवल इसलिए नहीं कि यह देश की राजधानी है या केंद्र तथा राज्य सरकार की सीधी निगरानी में है बल्कि इसलिए भी कि यह विश्व का सबसे तेजी से फैल रहा शहरी इलाका है और पानी को लेकर यहां स्थिति बेहद चिंताजनक है। 

ऐसा नहीं है कि सारा भारत ही रेगिस्तान है या हमारे यहां वर्षा कम हो रही है। कमाल की बात यह है कि सम्पूर्ण दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप समुद्र से घिरा है और वहां हर वर्ष भारी वर्षा भी होती है। अन्य सागरों की तुलना में 7 गुणा अधिक खारे मृत सागर से पानी लेकर उसे फिल्टर करके यदि इसराईल प्रयोग कर सकता है तो भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता? यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि इसराईल ने भी जल परियोजनाओं की शुरूआत 1960 के दशक में ही की थी। फिल्टर रिसाइक्लिंग के अलावा वहां ड्रिप इरिगेशन को भी अपनाया गया है और पेड़ों को रात के समय पानी दिया जाता है ताकि वह वाष्पित न हो सके। 

उत्तर भारत को हिमालय पर्वत से पानी मिलता है और वहां भी जलाशयों के संरक्षण अथवा नदियों को साफ करने की कोई योजना नहीं है जबकि पूर्व में गंगा बेसिन है जहां अच्छी वर्षा होती है तथा अनेक उप-नदियां बहती हैं। सवाल उठते हैं कि इस प्रकार के भौगोलीय गुणों के बावजूद भला राज्यों में किस तरह पानी की कमी है? क्यों जल संरक्षण की कोई नीतियां नहीं हैं? क्यों हर शहर में पानी को फिल्टर करने की व्यवस्थाएं नहीं हैं? इस संबंध में कागज तक पर कोई योजना क्यों नजर नहीं आती? 

हर सरकार नदी जल विवादों को सुलझाने को प्राथमिकता न देकर उन्हें सुलगने देती है और चुनावों पर उनका इस्तेमाल करने को तैयार रहती है। चाहे यह पंजाब-हरियाणा-राजस्थान के बीच जल विवाद हो या कर्नाटक-आंध्र प्रदेश में जल विवाद हो, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बावजूद इन्हें निपटाया नहीं जा सका है। सतलुज तथा कावेरी नदियों से संबंधित फैसलों को लागू करने के लिए राज्य सरकारें तत्पर नहीं हैं। यहां तक कि पंजाब में सरकार बदलने के साथ ही फैसले भी बदल जाते हैं। हालांकि, छोटे-छोटे पग उठा कर ही बहुत कुछ किया जा सकता है। जैसे कि हर शहर में वाटर हार्वेस्टिंग, इंडस्ट्रियल वेस्ट रीफिल्ट्रेशन प्लांट कुछ ऐसे उपाय हैं जो जनता स्वयं पर लागू कर सकती है। समस्या को सुलझाने के लिए देश की विभिन्न नदियों को शायद जानबूझ कर ही आपस में नहीं जोड़ा जा रहा है। किसी प्रकार की पुख्ता नीतियों तथा जनता में जागरूकता के अभाव में हम एक मानव निर्मित रेगिस्तान की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।

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