सुखबीर बादल करेंगे पंजाब में पदयात्रा जनता को साथ लेने के लिए देश में की जा रही पदयात्राएं

Edited By Updated: 20 Dec, 2022 04:26 AM

sukhbir badal will do padyatra in punjab

इन दिनों देश में यात्राओं का दौर चल रहा है। अतीत में ऐसी अनेक राजनीतिक यात्राओं का आयोजन विभिन्न नेताओं द्वारा किया गया जिनका उद्देश्य सत्ता में वापसी था और इसका उन्हें काफी लाभ भी हुआ।

इन दिनों देश में यात्राओं का दौर चल रहा है। अतीत में ऐसी अनेक राजनीतिक यात्राओं का आयोजन विभिन्न नेताओं द्वारा किया गया जिनका उद्देश्य सत्ता में वापसी था और इसका उन्हें काफी लाभ भी हुआ। वर्तमान में 7 सितम्बर, 2022 से राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जारी है जो अपने 100 दिन पूरे होने के बाद इन दिनों राजस्थान से गुजर रही है।

इसी तरह अब शिअद के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल जल्द ही ‘पंजाब बचाओ यात्रा’ शुरू करने जा रहे हैं। उनका कहना है कि ‘‘यह वह पंजाब नहीं रहा जो प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली शिअद सरकार द्वारा उत्तराधिकारी सरकार को विरासत में दिया गया है जिसने शासन में हमेशा शांति और साम्प्रदायिक सद्भावना को ध्यान में रखा।’’ 

वैसे भारत में राजनीतिक पदयात्राओं का इतिहास काफी लम्बा है। इनकी  शुरुआत 12 मार्च,1930 को महात्मा गांधी की पैदल दांडी यात्रा से मानी जा सकती है। वह यात्रा जहां अंग्रेजों के विरुद्ध भारत की जनता को जगाने के लिए थी, वहीं स्वतंत्र भारत में कई नेताओं द्वारा विभिन्न रूपों में यात्राएं निकाली जाती रही हैं जिनमें से चंद निम्र में दर्ज हैं : 

* 1977 में एमरजैंसी हटने के बाद हुए लोकसभा के चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद इंदिरा गांधी ने नस्ली संघर्ष से ग्रस्त बिहार के ‘बेलछी’, जहां 14 लोग मारे गए थे, की यात्रा की थी। इसके बाद उन्हें 1980 के चुनावों में दोबारा जीत कर अपनी सरकार बनाने में काफी मदद मिली।
* 29 मार्च, 1982 को एन.टी. रामाराव ने आंध्र प्रदेश में ‘तेलगू देशम पार्टी’ बनाने के बाद ‘चैतन्य रथम यात्रा’ निकाली। इसकी समाप्ति के बाद हुए चुनावों में उनकी पार्टी ने 294 में से 199 सीटें जीती थीं। 

* 6 जनवरी,1983 से 25 जून, 1983 तक देश की राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को चुनौती देने तथा फूट की शिकार ‘जनता पार्टी’ को मजबूत करने के लिए चंद्रशेखर ने कन्याकुमारी से दिल्ली के राजघाट तक 4260 किलोमीटर लम्बी पदयात्रा निकाली। इस यात्रा ने उनका राजनीतिक कद इतना बढ़ा दिया कि बाद में वह भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे।

* 1985 में एक पदयात्रा 1984 के लोकसभा चुनाव में 400 से अधिक सीटें जीत कर कांग्रेस की सरकार बनाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ‘संदेश यात्रा’ के नाम से निकाली थी। 
* 25 सितम्बर, 1990 को भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवानी ने 10,000 कि.मी. लम्बी ‘राम रथ यात्रा’ सोमनाथ से शुरू की जिसका समापन 30 अक्तूबर को अयोध्या में होना था। अयोध्या में इस यात्रा के समापन का उद्देश्य रामजन्म भूमि और राम मंदिर निर्माण का पहला पड़ाव माना गया। 

वह अपनी यात्रा अयोध्या तक नहीं ले जा पाए क्योंकि बिहार के समस्तीपुर में 23 अक्तूबर की सुबह उन्हें गिरफ्तार करके बंदी बना लिया गया था परंतु इसकी बदौलत आज भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी है। इस यात्रा के दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सक्रिय भूमिका निभाई व यात्रा के हिमाचल पहुंचने पर अडवानी जी के स्वागत के लिए सोलन के प्रसिद्ध टमाटरों का स्वागत द्वार बनवाया।

* 2004 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वाई.एस.आर. रैड्डी ने आंध्र प्रदेश के ‘चेवेल्ला’ शहर से 1400 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। इसके बाद राज्य विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस ने 294 में से 185 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 
* 2007 में एक पदयात्रा नंदीग्राम की घटना, जिसमें पुलिस की गोली से 14 लोग मारे गए थे, के बाद ममता बनर्जी ने सिंगूर से नंदीग्राम तक निकाली। इसका पुरस्कार उन्हें 2011 में मिला जब वह प. बंगाल में वामदलों की 34 वर्ष पुरानी सरकार को सत्ताच्युत करके तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल हुईं।  
* 2013 में तेलगू देशम नेता चंद्रबाबू नायडू ने, जब वह विपक्ष में थे, 1700 किलोमीटर की पदयात्रा की थी और 2014 में वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 

*  6 नवम्बर, 2017 को वाई.एस.आर. कांग्रेस के नेता जगनमोहन रैड्डी ने भी 3600 किलोमीटर लम्बी ‘प्रजा संकल्प यात्रा’ निकाली जो ‘कडप्पा’ जिले से शुरू होकर 430 दिनों तक चली और ‘श्रीकाकुलम’ में समाप्त हुई। वह 2019 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और अभी तक अपने पद पर हैं। 
* 9 अगस्त, 2022 से सपा ने विभिन्न चरणों में ‘देश बचाओ, देश बनाओ’ यात्रा शुरू कर रखी है। 

अतीत की यात्राओं को ध्यान में रखते हुए ही राहुल गांधी और सुखबीर बादल ने यात्राएं निकालने का सही फैसला किया है। इनका परिणाम तो बाद में पता चलेगा परंतु इस दौरान पार्टी कार्यकत्र्ताओं और आम जनता से मिल कर इन्हें उनकी नाराजगी दूर करने और यह जानने का अवसर अवश्य मिलेगा कि लोग उनसे क्या उम्मीदें रखते हैं।—विजय कुमार

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