कार्यस्थलों पर महिलाओं का उत्पीड़न रोकने के लिए सुप्रीमकोर्ट का आदेश

Edited By ,Updated: 15 May, 2023 04:17 AM

supreme court orders to stop harassment of women at workplace

हाल ही में विनेश फोगाट और साक्षी मलिक समेत चंद महिला पहलवानों द्वारा भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाने के बाद एक बार फिर महिला अधिकारों पर चर्चा में तेजी आई है। भारतीय आचार संहिता में कार्यालयों, शिक्षा...

हाल ही में विनेश फोगाट और साक्षी मलिक समेत चंद महिला पहलवानों द्वारा भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाने के बाद एक बार फिर महिला अधिकारों पर चर्चा में तेजी आई है। भारतीय आचार संहिता में कार्यालयों, शिक्षा संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों सहित किसी भी तरह के वातावरण में महिलाओं की सुरक्षा और उन्हें यौन उत्पीडऩ से बचाने के लिए (1) सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार, (2) शिकायत दर्ज कराने का अधिकार (3) गोपनीयता का अधिकार (4) कानूनी कार्रवाई का अधिकार आदि प्रदान किए गए हैं। 

यौन उत्पीडऩ में शारीरिक और मौखिक उत्पीडऩ अभद्र भाषा का इस्तेमाल, किसी काम के बदले सैक्युअल फेवर की मांग करना और महिला के इंकार करने पर भेदभाव की धमकी देना शामिल है। इसी सिलसिले में भारत में कार्य स्थल पर ‘महिलाओं का यौन उत्पीडऩ (रोकथाम और निवारण) अधिनियम-2013’ (क्कशस्॥) अस्तित्व में आया जिसमें कहा गया है कि किसी भी कार्यस्थल पर जहां 10 से अधिक कर्मचारी काम करते हों वहां यौन उत्पीडऩ की शिकायतें सुनने और उनका निपटारा करने के लिए ‘आंतरिक शिकायत समिति’(आई.सी.सी.) बनानी चाहिए। 

उक्त कानून लागू होने के 10 वर्ष बाद भी इसके प्रावधानों के खराब तरीकों से कार्यान्वयन को लेकर सुप्रीमकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार को यह यकीनी बनाने का निर्देश दिया है कि उक्त अधिनियम के प्रावधानों को सार्वजनिक उपक्रमों व अन्य निकायों, उदाहरणार्थ निजी नियंत्रण वाले संगठनों में सख्ती से लागू किया जाए। इसके साथ ही सुप्रीमकोर्ट ने राज्य स्तर पर विश्वविद्यालयों, आयोगों तथा अन्य संगठनों आदि सहित राज्य प्राधिकरणों/ निकायों को उपरोक्त कानून के समान ही प्रावधान लागू करने का आदेश दिया है। 

एक समाचारपत्र में हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया था कि कुश्ती सहित देश के 30 राष्ट्रीय खेल संघों में से 16 ने आज तक अपने यहां आंतरिक शिकायत समिति (आई.सी.सी.) का गठन ही नहीं किया है और जहां यह है भी, वहां या तो इसमें निर्धारित संख्या में सदस्य नहीं हैं तथा कम से कम 6 संगठनों में अनिवार्य बाहरी सदस्य की कमी है। एक फैडरेशन में  2 पैनल बनाए हुए हैं पर किसी में भी एक स्वतंत्र सदस्य नहीं है। जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि, ‘‘यह वास्तव में एक खेदजनक स्थिति है और उक्त कानून के मामले में सभी सार्वजनिक प्राधिकरणों, निजी उद्यमों तथा संगठनों की खराब कारगुजारी का प्रदर्शन करती है।’’ 

ऐसे कृत्य की शिकार महिला का न सिर्फ आत्म सम्मान प्रभावित होता है बल्कि उसके भावात्मक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है।  अनेक पीड़िताएं तो इस प्रकार के दुव्र्यवहार की शिकायत करने से ही संकोच करती हैं और नौकरी तक छोड़ जाती हैं। इसीलिए इस कानून को कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा और आत्मसम्मान को यकीनी बनाने के लिए सख्ती से लागू करने और सरकारी तथा गैर सरकारी लोगों द्वारा इसका पालन जरूरी है। पीठ ने कहा कि विभिन्न संस्थानों के प्रबंधकों और अधिकारियों द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं को सुरक्षित कार्यस्थल उपलब्ध न करने से वे सम्मानपूर्वक आजीविका कमाने के लिए अपने घरों से बाहर निकलने से संकोच करेंगी। 

अत: शीर्ष न्यायालय ने केंद्र सरकार, राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को समयबद्ध रूप से यह पता लगाने का आदेश दिया है कि क्या सभी मंत्रालयों और विभागों तथा सरकारी व गैर सरकारी संगठनों में उक्त कानून का कठोरतापूर्वक पालन करते हुए इसके अनुसार आंतरिक शिकायत समितियां बनी हुई हैं या नहीं! पीठ ने इस बारे संबंधित अथारिटी की वैबसाइट पर शिकायत दायर करने संबंधी सभी जानकारी उपलब्ध करने का भी निर्देश दिया। इसके साथ ही अदालत ने तत्काल प्रभाव से ऐसे संगठनों के अधिकारियों को यह निर्देश भी दिया कि वे इन समितियों के सदस्यों को उनके कत्र्तव्यों के बारे में बताएं। पीठ ने राष्ट्रीय कानूनी सहायता प्राधिकरण तथा राज्य कानूनी सेवाएं प्राधिकरण को रोजगारदाताओं, कर्मचारियों और किशोर वर्ग को इस संबंध में संवेदनशील बनाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित करने का आदेश भी दिया। 

निश्चय ही शीर्ष न्यायालय का यह एक सही आदेश है और इसका कठोरतापूर्वक पालन करने से कार्यस्थलों पर महिलाओं का यौन उत्पीडऩ रोकने में कुछ सहायता अवश्य मिलेगी परंतु सोचने की बात यह है कि कानून बनने के 10 साल बाद भी अगर इसे अमलीजामा नहीं पहनाया गया तो क्या अब सिस्टम ऐसा होने देगा?

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