उद्धव ठाकरे के विरुद्ध संघ के मुखपत्र ने किया कटु शब्दों का प्रयोग

Edited By Pardeep,Updated: 28 Dec, 2018 04:15 AM

uddhav thackeray s use of bitter words against the party s mouthpiece

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ष 23 अप्रैल को भाजपा के सांसदों, विधायकों तथा अन्य नेताओं आदि को फटकार लगाते हुए कहा था कि वे मीडिया के सामने विवादास्पद बयान देने से बचें परंतु इन बड़बोले नेताओं पर प्रधानमंत्री की नसीहत का कोई असर नहीं हुआ। अभी...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ष 23 अप्रैल को भाजपा के सांसदों, विधायकों तथा अन्य नेताओं आदि को फटकार लगाते हुए कहा था कि वे मीडिया के सामने विवादास्पद बयान देने से बचें परंतु इन बड़बोले नेताओं पर प्रधानमंत्री की नसीहत का कोई असर नहीं हुआ। अभी हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी कहा कि ‘‘भाजपा में कुछ लोगों को कम बोलने की आवश्यकता है और नेताओं को आमतौर पर मीडिया से बात करते हुए कम बोलना चाहिए।’’ 

इस समय जबकि पांच राज्यों के चुनावों में पराजय को लेकर भाजपा नेतृत्व में चिंता व्याप्त है, अनेक गठबंधन सहयोगी दलों की ओर से भाजपा नेतृत्व को विभिन्न मुद्दों को लेकर आंखें दिखाई जा रही हैं और पुराने गठबंधन सहयोगी शिवसेना के साथ इसका दो दशक पुराना रिश्ता खतरे में पड़ा हुआ है, ऐसे में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी गत 19 दिसम्बर को शिवसेना की नाराजगी देख कर महाराष्ट्र भाजपा के नेताओं को नसीहत दी। अमित शाह ने कहा कि भाजपा नेता सार्वजनिक रूप से शिवसेना के विरुद्ध कुछ न कहें ताकि शिवसेना को चुनावों में अपने साथ जोड़े रखने की उम्मीद बनी रहे। उन्होंने महाराष्ट्र के भाजपा नेतृत्व को यह नसीहत भी दी कि ‘‘शिवसेना द्वारा अत्यधिक भड़काने के बावजूद वे अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करें।’’ 

परंतु ऐसा दिखाई देता है कि अमित शाह द्वारा भाजपा नेताओं को दी गई नसीहत का भाजपा के ‘अभिभावक संगठन’ राष्ट्रीयस्वयं सेवक संघ के नागपुर से प्रकाशित होने वाले मराठी दैनिक ‘तरुण भारत’ पर कोई असर नहीं हुआ है जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार पर आलोचनात्मक टिप्पणी करने के लिए शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे की आलोचना की है। पंढरपुर में 24 दिसम्बर को उद्धïव ठाकरे ने अपनी रैली में भाजपा को ‘सोया हुआ कुंभकर्ण’ करार देते हुए कहा था कि ‘‘हाल ही के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा द्वारा पैदा किया गया अजेय होने का भ्रम टूट गया है।’’ इस बारे अपने 26 दिसम्बर के अंक में प्रकाशित संपादकीय में दैनिक ने लिखा है कि ‘‘प्रधानमंत्री के विरुद्ध घटिया भाषा इस्तेमाल करने पर महाराष्टï्र के लोग आगामी चुनावों में शिवसेना को सबक सिखाएंगे।’’ 

उद्धव ठाकरे को परले दर्जे का ढोंगी, सत्ता का भूखा और अवसरवादी करार देते हुए संपादकीय में उन्हें चुनौती दी गई है कि ‘‘यदि वह भाजपा के साथ वास्तव में असहज महसूस करते हैं तो अपने मंत्रियों को फडऩवीस सरकार और केंद्र सरकार से वापस बुला लें।’’ संपादकीय के अनुसार, ‘‘यह महाराष्ट्र के लोगों को गुमराह करने का एक प्रयास तथा 2019 के लोकसभा और राज्य के चुनावों में स्वयं को प्रासंगिक बनाए रखने की बेचैनी के सिवाय और कुछ नहीं है।’’ राम मंदिर के मुद्दे पर शिवसेना पर बरसते हुए संपादकीय में उद्धव ठाकरे द्वारा अचानक भगवान राम के प्रति मोह जागने और उद्धव ठाकरे की अयोध्या यात्रा पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया गया है। संपादकीय के अनुसार, ‘‘संभवत: शिवसेना को यह डर है कि आने वाले चुनावों में यह हार न जाए और इसका छोटा भाई (भाजपा) बड़ा भाई न बन जाए। इसलिए सरकार के कार्यकाल के अंत में आकर इसने राम मंदिर का मुद्दा उठाया है।’’ 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरुद्ध अशिष्ट तथा असभ्य भाषा का प्रयोग करने के लिए शिवसेना की आलोचना करते हुए संपादकीय में लिखा है कि ‘‘शक्तिशाली हाथी चलता रहता है और कुत्ते भौंकते रहते हैं। नरेंद्र मोदी बिना कोई छुट्टïी लिए दिन में 18 घंटे काम करते हैं। यदि इतना कठिन परिश्रम शिवसेना के नेतृत्व को प्रभावित नहीं करता तब तो अवश्य ही वह वास्तविकता से आंखें मूंदे हुए हैं।’’ शीर्ष भाजपा नेताओं की नसीहत के बावजूद संघ के मुखपत्र द्वारा शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे की आलोचना से दोनों दलों के बीच पहले से ही पड़ी हुई दरार और चौड़ी ही होगी जिसका दोनों ही दलों को नुक्सान होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत व अन्य नेताओं को इसका संज्ञान लेकर ऐसी रणनीति बनानी चाहिए जिससे सहयोगी दलों में दूरियां और फूट न बढ़े तथा पार्टी की एकता को आघात न लगे।—विजय कुमार  

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