गांधी जी का अहिंसा का सिद्धांत क्यों त्याग रहे हैं हम

Edited By ,Updated: 02 Oct, 2023 03:56 AM

why are we abandoning gandhiji s principle of non violence

हाल ही में नई दिल्ली में सम्पन्न जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए विभिन्न देशों के नेताओं ने राजघाट पर जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि भेंट की। इसका मात्र कारण यह नहीं था कि यह भारत सरकार द्वारा आयोजित समारोह था, इसका कारण यह भी था कि...

हाल ही में नई दिल्ली में सम्पन्न जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए विभिन्न देशों के नेताओं ने राजघाट पर जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि भेंट की। इसका मात्र कारण यह नहीं था कि यह भारत सरकार द्वारा आयोजित समारोह था, इसका कारण यह भी था कि विश्व के सभी नेताओं के दिल में महात्मा गांधी के प्रति सम्मान की एक भावना है। 

इसका मुख्य कारण उनका अहिंसा दर्शन है, जिसने देश को विश्व समुदाय में सम्मान का पात्र बनाया है। परंतु अब भारत में न ही गांधी जी और उनके अहिंसा के सिद्धांत को समझने और अपनाने की कोशिश की जा रही है और न ही उस पर विचार किया जा रहा है। शायद ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अहिंसा की तुलना में हिंसा करना अधिक आसान होता है और हिंसा करते हुए व्यक्ति इसके लिए दूसरे को दोषी ठहरा सकता है कि अमुक व्यक्ति के उकसाने पर मैंने ऐसा किया। अत: स्पष्ट है कि अहिंसा का सिद्धांत राजनीतिक दृष्टि से अपनाने के लिए अत्यंत कठिन तकनीक है और समाज में इसे अपनाने के लिए साहस चाहिए। गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित तीन मुख्य आंदोलन थे। अंग्रेजों में गांधी जी के प्रशंसक और उनसे घृणा करने वाले दोनों ही तरह के लोग थे क्योंकि गांधी जी के कारण ही अंग्रेज भारत छोड़ कर गए। अंग्रेजों के इतने बड़े साम्राज्य से मुक्त होने वाला भारत पहला देश था। 

1960 तक अफ्रीका तथा एशिया के अन्य देश भी उनकी गुलामी से मुक्त हो चुके थे। विश्व से अंग्रेजी राज की बुनियाद हिलाने के सूत्रधार होने के बावजूद भारत की स्वतंत्रता के 22 वर्षों के बाद ही 1969 में गांधी जी की जन्मशती पर उनकी पहली प्रतिमा लंदन में स्थापित की गई। गांधी जी के प्रशंसकों में बड़े-बड़े व अलग-अलग विचारधाराओं के लोग  शामिल हैं जिनमें महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन, स्वीडिश अर्थशास्त्री गुन्नार मिर्डल, मनोविश्लेषक एरिक एच.एरिकसन आदि शामिल हैं। 

यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि चैकोस्लोवाकिया, पोलैंड, आदि देशों ने गांधी जी से प्रेरणा लेते हुए अहसक उपायों से ही रूस की गुलामी से अपने देशों को स्वतंत्रता दिलाई है। माॢटन लूथर किंग ने भी गांधी जी के पदचिन्हों पर चलते हुए अमरीका में अश्वेतों को समानता का हक दिलाया परंतु ऐसा क्या है कि अब भारतवर्ष अपने ही राष्ट्रपिता के सिद्धांतों को छोड़ता जा रहा है। अहिंसा हमारी सभ्यता और धर्म में गौतम, महावीर और अशोक  के समय से ही गहरी पैठ बनाए हुए है तो अब हमारा समाज क्यों हिंसक होता जा रहा है। 2 अक्तूबर के दिन यह विचारणीय है कि क्या हम मन, वचन और कर्म से अहिंसक बनना चाहते हैं।

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