‘रुपहले पर्दे पर फिर नजर आएंगे’‘कश्मीर के नजारे’

Edited By ,Updated: 01 Feb, 2021 04:29 AM

will be seen again on the silver screen

कश्मीर शुरू से ही देश की फिल्म इंडस्ट्री के लिए हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है। 1990 के दशक में आतंकवाद शुरू होने से पहले तक यहां बड़ी संख्या में फिल्मों की शूटिंग होती रही है परंतु बाद में यह सिलसिला थम गया। हालांकि 1960 के दशक

कश्मीर शुरू से ही देश की फिल्म इंडस्ट्री के लिए हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है। 1990 के दशक में आतंकवाद शुरू होने से पहले तक यहां बड़ी संख्या में फिल्मों की शूटिंग होती रही है परंतु बाद में यह सिलसिला थम गया। हालांकि 1960 के दशक के बाद से यहां लगभग 50 फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इनमें ‘जंगली’ (1961), ‘कश्मीर की कली’ (1964),‘हकीकत’ (1964) आदि शामिल हैं। 

वास्तव में यह दौर विशेष तौर पर भारतीय सिनेमा के लिए खास रहा जब हमारे फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों की शूटिंग के लिए स्विटजरलैंड तथा दूसरे पश्चिमी देशों में न जा कर कश्मीर ही आते थे। 90 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद बढऩे लगा तब सबसे पहले यहां के सिनेमा घर इसका शिकार बने और फिर यहां शूटिंग के लिए फिल्म निर्माताओं ने आना बंद कर दिया और विदेशों का रुख किया। सिनेमा घर बंद हो गए और वहां आतंकवादियों ने अड्डे बना लिए। 

2010 के बाद कश्मीर में स्थिरता आनी शुरू होने के साथ ही बॉलीवुड ने एक बार फिर से कश्मीर की तरफ रुख करना शुरू किया है। इसी शृंखला में यहां पिछले वर्षों में ‘हैदर’ (2014), ‘बजरंगी भाईजान’ (2015) और ‘फितूर’ (2016) जैसी फिल्मों ने इस गतिरोध को तोड़ा। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के निरस्त होने और कोविड-19 महामारी के कारण घाटी लम्बे समय से बंद पड़ी है। अब यह सिलसिला एक बार फिर तेज होने की आशा बंधी है और यहां एक साथ पंद्रह से अधिक फिल्मों, वीडियो एलबम,वैब सीरीज तथा विज्ञापन फिल्मों की शूटिंग विभिन्न लोकेशनों पर होने के साथ ही अपनी निर्माणाधीन बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग के लिए संभावनाओं की तलाश के लिए हाल ही में बॉलीवुड से 24 सदस्यों के एक शिष्टमंडल ने कश्मीर का दौरा भी किया है, जो 2615 करोड़ के राजस्व के घाटे का सामना कर रहा है और केंद्र द्वारा अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के बाद से 65000 नौकरियों का नुक्सान भी उठा रहा है। 

इस शिष्टमंडल में अजय देवगन फिल्म्स, संजय दत्त प्रोडक्शंस, रिलायंस एंटरटेनमैंट, रोहित शैट्टी फिल्म्स, काी स्टूडियोज, अधिकारी ब्रदर्स, राज कुमार हिरानी, एक्सैल एंटरटेनमैंट आदि के अलावा कई अन्य बड़े फिल्म निर्माताओं के प्रतिनिधि शामिल थेे। इस शिष्टमंडल के सदस्य पहलगाम, गुलमर्ग तथा श्रीनगर में फिल्मों की शूटिंग के लिए लोकेशनें देखने भी गए। जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग के निदेशक जी.एन. इत्तू के अनुसार,‘‘यह कार्यक्रम एक बार फिर कश्मीर का भारत की फिल्म इंडस्ट्री के साथ टूटा हुआ रिश्ता बहाल करने के लिए आयोजित किया गया। हम अतीत की भांति ही राज्य में फिल्मों के माध्यम से पर्यटन को बढ़ावा देना चाहते हैं।’’ 

इस अवसर पर कश्मीर में पर्यटन को प्रमोट करने में प्रमुख भूमिका निभाते रहे ‘राजा रानी ट्रैवल्स’ के चेयरमैन अभिजीत पाटिल ने कहा,‘‘अगले 6 महीनों के दौरान यहां ‘डब्ल्यू.आई.सी.ए.एफ.’ (वैस्टर्न इंडिया सिने आॢटस्ट्स फैडरेशन) के पदाधिकारी युवाओं को फोटोग्राफी और नृत्यकला आदि की शिक्षा देंगे। इससे यहां आने वाले फिल्म निर्माताओं को अपने साथ कम स्टाफ लाने की जरूरत पड़ेगी और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने के साथ-साथ भाईचारा भी बढ़ेगा।’’ जी.एन. इत्तू ने यह भी कहा कि कश्मीर फिल्म निर्माताओं के लिए पर्यटन विभाग उन्हें अपनी फिल्मों की शूटिंग की अनुमति देने के नियमों को आसान कर रहा है। श्रीनगर की डल झील के अलावा मुगल गार्डन भी बॉलीवुड के फिल्म निर्माताओं की पसंदीदा जगह रही है और कई फिल्म निर्माताओं ने अपनी फिल्मों की शूटिंग यहां की है। 

ऐसे में बॉलीवुड के शिष्टमंडल का कश्मीर में पुन: फिल्मों की शूटिंग की संभावना खोजने के लिए आना अपने आप में सुखद समाचार है और उम्मीद है कि रुपहले पर्दे  पर कश्मीर की खूबसूरती एक बार फिर लौटेगी। राज्य की राजनीतिक स्थिति और धारा 370 आदि के विषय में राज्य के लोगों के चाहे जो भी विचार हों, राज्य में एक बार फिल्मों की शूटिंग शुरू होने से यहां की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा जिससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने से उनमें खुशहाली भी आएगी। 

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