गौ-रक्षा के लिए सभी राज्यों के कानूनों की होगी समीक्षा

Edited By ,Updated: 24 Sep, 2019 02:07 AM

all state laws will be reviewed for cow protection

राष्ट्रीय कामधेनुयोग या राष्ट्रीय गौ आयोग, फरवरी 2019 में गठित किया गया था। इसके अध्यक्ष वल्लभ कथीरिया का कहना है, ‘‘आयोग गायों की सुरक्षा से संबंधित राज्य कानूनों की समीक्षा करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि सभी राज्यों में गौ हत्या बंद कर दी जाए, उन...

राष्ट्रीय कामधेनुयोग या राष्ट्रीय गौ आयोग, फरवरी 2019 में गठित किया गया था। इसके अध्यक्ष वल्लभ कथीरिया का कहना है, ‘‘आयोग गायों की सुरक्षा से संबंधित राज्य कानूनों की समीक्षा करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि सभी राज्यों में गौ हत्या बंद कर दी जाए, उन प्रदेशों में भी जहां यह अब भी वैध है। 

नए आयोग की भूमिका के बारे में आयोग के अध्यक्ष का कहना है कि हमारे पास बहुत बड़ा जनादेश है। यह एक सर्वोच्च निकाय है जो न केवल नीतियों पर सरकार को सलाह देगा, बल्कि उनमें से कुछ के कार्यान्वयन में भी शामिल होगा। राष्ट्रीय गोकुल मिशन (गौजातीय प्रजनन प्रौद्योगिकी में सुधार और उनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक मिशन) अब आयोग का एक अभिन्न अंग होगा। हम सभी राज्य कानूनों की समीक्षा करके गौ-रक्षा पर भी ध्यान केन्द्रित करेंगे। हम यह भी सुनिश्चित करेंगे कि जिन राज्यों में गौ हत्या अभी भी कानूनी है, वहां भी यह बंद हो। हम इसके लिए दिशा-निर्देश जारी करेंगे और स्थिति की निगरानी भी करेंगे। 

उनका कहना है कि एक गाय ‘पंचगव्य’ नामक पांच प्रमुख उत्पाद प्रदान करती है- दूध, दही, घी, गोबर और मूत्र। हम स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने की योजना बना रहे हैं जो युवाओं में इन उत्पादों को लोकप्रिय बनाएगा। हम जैव-उर्वरक और जैव-कीटनाशकों के निर्माण के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के मंत्रालय के तहत गाय आधारित स्टार्ट-अप को भी बढ़ावा देंगे। गौमूत्र और गोबर का उपयोग फिनाइल, साबुन और ऐसे अन्य उत्पादों को बनाने के लिए किया जा सकता है। बड़े कॉर्पोरेट्स भी इसमें आ सकते हैं। 

पर्यावरण संरक्षण में इसके महत्व के कारण, भारत में एक गाय को ‘मां’ कहा जाता है लेकिन जैसे-जैसे हमने एक समाज के रूप में प्रगति की, हम इसके महत्व को भूल गए। पहले लोग गाय के गोबर से अपने घरों की दीवारों को लीपते थे क्योंकि इसमें जीवाणुरोधी गुण होते हैं लेकिन अब आप शायद ही कभी ऐसा होते हुए देखेंगे। इन लाभों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाएगा। हम गाय को सामाजिक परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन और जलवायु परिवर्तन से लडऩे हेतु आवश्यक उपकरण बनाने के लिए विज्ञान और आध्यात्मिकता को एक साथ लाएंगे। 

199 मिलियन के साथ भारत में दुनिया के मवेशियों की संख्या का 14.5 प्रतिशत है लेकिन इसकी औसत दूध उत्पादन दर सबसे कम है। तीन दशकों में 2012 तक, भारतीय मवेशियों की औसत उत्पादकता 1.9 किलोग्राम से बढ़कर 3.9 किलोग्राम प्रति दिन हो गई लेकिन यह यू.के., यू.एस. और इसराईल से बहुत कम है। इसे सुधारने के लिए आयोग अपनी उच्च दूध उत्पादकता के लिए जानी जाने वाली नस्लों के देसी बैल तैयार करेंगे, उदाहरण के लिए थारपकर, साहीवाल, ओंगोल और गंगा-तिरी। उनके वीर्य का उपयोग कम उत्पादकता वाली देसी गायों पर किया जाएगा और फिर उनसे पैदा होने वाली बछडिय़ां अधिक दूध देने वाली गाय बनेंगी। हम अच्छी आनुवांशिकी वाले सांड  तैयार करेंगे और उन्हें गांवों में वितरित करेंगे। 

स्वदेशी मवेशियों की नस्लों में सुधार और संरक्षण के अपने एजैंडे के बावजूद भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने इसके लिए पर्याप्त धन आबंटित नहीं करने के बारे में कथीरिया का कहना है कि एन.डी.ए. (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) सरकार के लिए गाय कल्याण एक प्राथमिकता रहेगी। बजट एक बाधा नहीं होगा क्योंकि हम राष्ट्रीय सरकार की प्राथमिकताओं के साथ राज्य के बजट को संरेखित करने की दिशा में काम करेंगे। हम सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पी.पी.पी.) मॉडल में शामिल होने के लिए गैर-मुनाफे को आमंत्रित करेंगे। देश में कई धार्मिक संगठन नस्ल सुधार पर काम कर रहे हैं, हम उन्हें सरकार के साथ काम करने के लिए मिलेंगे। इसी तरह से हम सभी को एकजुट करेंगे और अपने-अपने राज्यों में गाय की नस्लों को बचाने और सुधारने के लिए समान विचारधारा वाले संस्थानों का एक नैटवर्क तैयार करेंगे। 

आयोग देश में सभी स्थानों पर मवेशियों के अनुसंधान, पंचगव्य उत्पादन इकाइयों और बाजार केन्द्रों पर काम करने वाले मंदिरों, प्रयोगशालाओं द्वारा संचालित अच्छे गौ-शैड के साथ, एक गौ-पर्यटन सॢकट बनाने के लिए काम करेगा। उदाहरण के लिए जब लोग गुजरात में साबरमती आश्रम जाते हैं तो वे यह भी नहीं जानते हैं कि गिर किस्म पर अपने काम के लिए जाना जाने वाला एक अत्याधुनिक गाय-प्रजनन केन्द्र वहां मौजूद है। इसलिए जब हम इन सभी केन्द्रों को एक मानचित्र पर रखेंगे तो यह न केवल पर्यटकों के लिए जागरूकता पैदा करेगा बल्कि उनके आसपास रहने वालों को भी वहां का दौरा करने के लिए मजबूर करेगा। इससे इन केन्द्रों पर गौ उत्पाद बेचने वाले लोगों के लिए विपणन अवसर भी पैदा होगा। हम इन केन्द्रों को मॉडल काऊ-शैड के रूप में भी विकसित करेंगे। हम इन केन्द्रों में निवेश करने या पास में संबंधित उद्योग स्थापित करने के इच्छुक निजी खिलाडिय़ों को आमंत्रित करेंगे। 

गौमाता की देखभाल के साथ कमाई भी
इससे गाय और गाय आधारित उद्योगों के बारे में लोगों की धारणा बदलेगी। यह देश के सबसे व्यावहारिक सामाजिक व्यापार मॉडल में से एक है जहां आप गौमाता की देखभाल करके पैसा कमा सकते हैं। हम पहले से ही निजी खिलाडिय़ों के साथ बातचीत कर रहे हैं, जो न केवल पर्यटन में आने के लिए तैयार हैं, बल्कि जैव-उर्वरक (इकाइयां), बायोगैस संयंत्र, आनुवंशिक अनुसंधान के लिए प्रयोगशाला और ए 2 दूध (गाय के दूध की एक किस्म ए 1) की भी रुचि रखते हैं। 

सरकार का एक जनादेश खेती की लागत को कम करना है। यदि कोई किसान 2 गायों को पाल रहा है तो वह गोबर से खाद बना सकता है, मूत्र का उपयोग कम से कम दो-पांच एकड़ भूमि में कीटनाशक बनाने के लिए किया जा सकता है। किसान को रासायनिक उर्वरक नहीं खरीदना होगा। उनकी इनपुट लागत में भारी कटौती की जाएगी और गाय के दूध से परिवार के लिए अतिरिक्त आय सुनिश्चित होगी। यदि हम पर्याप्त किसानों को शून्य-बजट खेती (जिसमें इनपुट पर कोई खर्च नहीं करना है और इस तरह से ऋण की कोई आवश्यकता नहीं है) के लिए लम्बे समय तक मना सकते हैं, तो यह हमें भारत के उर्वरक आयात में कटौती करने में मदद करेगा। 

गौ हत्या पर प्रतिबंध के बाद गौजातीय-संबंधित घृणा अपराध में वृद्धि होने संबंधी खबरों के बारे में कथीरिया का कहना है कि वह इससे सहमत नहीं हैं। यह बिल्कुल गलत है। लिंचिंग की एक या दो घटनाएं हुई होंगी। गौ रक्षक (गाय रक्षक) गायों के कानूनी लेन-देन में मदद करते हैं- विक्रेता के घर से लेकर खरीदार के घर तक। मॉब-लिंचिंग केवल उन मामलों में हुई जहां गायों को अवैध रूप से ले जाया जा रहा था लेकिन ये दो-तीन घटनाएं भी नहीं होनी चाहिए थीं। हम गौ रक्षकों को प्रशिक्षित और संवेदनशील बनाकर इन घटनाओं को रोकेंगे ताकि वे भी धीरे-धीरे गाय पालन करने वाले बनें। 

बिना दूध वाली गाय की उपयोगिता
वृद्ध मवेशियों के बारे में आयोग के अध्यक्ष का कहना है कि सबसे महत्वपूर्ण कदम बड़ी संख्या में आश्रय घरों की स्थापना है। हमने इन घरों को उत्तर प्रदेश में बनाना शुरू कर दिया है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत सभी राज्यों ने जिला मैजिस्ट्रेटों के नेतृत्व में गैर-लाभकारी संगठनों के साथ मिलकर पशु कल्याण केन्द्रों का संचालन करने के लिए जिला स्तर पर सोसायटियों का गठन किया है। इन्हें आवारा पशुओं को इकट्ठा करने और आश्रय स्थलों में डालने के लिए जनादेश दिया जाएगा। सरकार शुरू में उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। 

हम वहां उपलब्ध गोबर और मूत्र का उपयोग करके इन आश्रयों को स्वतंत्र बनाने के विचार के साथ भी प्रयोग करेंगे। इससे लोगों में यह भी जागरूकता आएगी कि अगर गाय दूध का उत्पादन नहीं कर रही है तो भी वह अपने उत्पादों की बिक्री के माध्यम से एक परिवार को 400-500 रुपए कमाने में मदद कर सकती है। इससे आवारा पशुओं के प्रति समाज की मानसिकता बदलेगी।-बी. त्रिपाठी    

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