अब कृषि से ‘नाता’ तोड़ रहे हैं किसान

Edited By ,Updated: 18 Jan, 2015 02:58 AM

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कृषि के फायदेमन्द न रहने के कारण अब धीरे-धीरे किसान भी कृषि से नाता तोड़ रहे हैं। हमारा देश आम भाषा में एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है और माना जाता है कि हम कृषि प्रधान ...

(संजीव शुक्ल) कृषि के फायदेमन्द न रहने के कारण अब धीरे-धीरे किसान भी कृषि से नाता तोड़ रहे हैं। हमारा देश आम भाषा में एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है और माना जाता है कि हम कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में ही जी रहे हैं जबकि यह सत्य धीरे-धीरे मिथक बनता जा रहा है। नैशनल सैम्पल सर्वे आफिस (एन.एस.एस.ओ.) ने अभी हाल में सारे देश में ‘‘सिच्युएशन असैसमैंट सर्वे ऑफ एग्रीकल्चरल हाऊसहोल्ड्स’’ नाम से एक सर्वे किया था जिससे पता चला है कि गांवों में रहने वाली आबादी के मात्र 58 प्रतिशत परिवार ही कृषि कार्य करते हैं। इतना ही नहीं, इन परिवारों की औसत मासिक आमदनी का 60 प्रतिशत भाग भी कृषि से पूरा नहीं होता। यह सर्वे 2012-13 (जुलाई से जून) फसली वर्ष के लिए किया गया था।

देश के खाद्यान्न भंडार में 75 फीसदी से अधिक का योगदान देने वाले राज्यों क्रमश: पंजाब तथा हरियाणा की स्थिति भी देश के अन्य राज्यों से बहुत अधिक भिन्न नहीं है। सर्वे के अनुसार हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में 15.69 लाख परिवार कृषि कार्य में लगे हैं जो कुल ग्रामीण आबादी का 60.7 फीसदी हैं। इन परिवारों के 69.1 फीसदी ने ही कहा है कि उनकी आमदनी का मुख्य स्रोत कृषि है लेकिन इनकी कुल आय का सिर्फ 72.8 फीसदी ही कृषि आय (फसल व पशुपालन से आमदनी) से पूरा होता है, बाकी अन्य स्रोतों से आता है। अर्थात जो परिवार कृषि पर ही आधारित हैं उन्हें भी कमाई के दूसरे साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है।

पंजाब में कृषि से जुड़े परिवार 14.08 लाख हैं जो कुल ग्रामीण आबादी का 51.1 प्रतिशत हैं। इनमें से 55.6 फीसदी ने ही कृषि को अपना मुख्य धंधा बताया है और इनकी कुल आमदनी का 69.3 प्रतिशत ही खेती की कमाई से पूरा होता है। उत्तर प्रदेश में 180.49 लाख कृषि परिवार हैं जो ग्रामीण आबादी का 74.8 फीसदी हैं। इनमें से 68.5 प्रतिशत का कहना है कि उनकी आमदनी का मुख्य स्रोत कृषि है लेकिन उनकी आय का सिर्फ 69 प्रतिशत ही कृषि आमदनी से पूरा होता है।

वर्ष 2011 के जनगणना आंकड़ों के अनुसार देश की कुल आबादी की 68.8 फीसदी जनता गांवों में रहती है यानी 15.61 करोड़ परिवार। एन.एस.एस.ओ. सर्वे के अनुसार इनमें से सिर्फ 9.02 करोड़ (57.8 प्र.श.) ही कृषि कार्य में लगे हैं। इन 9.02 करोड़ परिवारों में से मात्र 68.3 फीसदी ने ही अपना मुख्य धंधा खेती बताया है। इस संख्या को यदि कुल ग्रामीण परिवारों की संख्या की तुलना में देखा जाए तो पता चलता है कि देश में मात्र 39.5 फीसदी ग्रामीण परिवार ही आज कृषि पर आधारित हैं और देश में कृषि से मिलने वाली आय मुख्य रूप से इन्हीं लोगों से हो रही है।

आंकड़े और भी महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर इशारा करते हैं। सर्वे के मुताबिक कृषि कार्य में लगे परिवारों की औसतन 59.8 फीसदी आय ही खेती से पूरी होती है जिसका अर्थ है कि 40 फीसदी अन्य स्रोतों से आती है जिसमें नौकरी, वेतन, गैर-कृषि व्यवसाय, ब्याज इत्यादि शामिल हैं।

इस विसंगति के विषय में विशेषज्ञों का तर्क यह भी है कि हमारे देश में ‘शहरी’, ‘ग्रामीण’ और ‘कृषि’ की परिभाषा ही दोषपूर्ण है। इन लोगों का कहना है कि ‘ग्रामीण’ और ‘कृषि’ के बीच बढ़ती खाई का कारण ही यह परिभाषा है। जनगणना में दी गई परिभाषा के अनुसार जो भी क्षेत्र शहरी नहीं है वह ग्रामीण है।

शहरी क्षेत्र का अर्थ है कि जहां की आबादी कम से कम 5 हजार हो, जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. हो और कुल कामकाजी पुरुषों की आबादी का कम से कम 75 फीसदी गैर-कृषि कार्यों में लगा हुआ हो। इसका अर्थ है कि किसी जगह यदि एक-चौथाई परिवार खेती के काम में लगे हैं, जैसा कि केरल में कई स्थानों पर है, तो वह क्षेत्र गांव ही गिना जाएगा। इसका मतलब यह है कि जी.डी.पी. (सकल घरेलू उत्पाद) में कृषि क्षेत्र का अंशदान गिरते जाने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र में कोई कमी नहीं आ रही है जबकि वह कम से कमतर कृषि आधारित होता जा रहा है। 2 दशक पहले तक जी.डी.पी. में कृषि का अंशदान 25 फीसदी था।

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