Edited By ,Updated: 22 Jun, 2015 02:57 PM
एक दर्द छुपा था किसी कोने में
किसी मोड़ पर खुद को खोने का डर था, तो कहीं
खुद से रूसवा होने का डर था,
एक दर्द छुपा था किसी कोने में
किसी मोड़ पर खुद को खोने का डर था, तो कहीं
खुद से रूसवा होने का डर था,
कुछ उम्मीद जुड़ी थी मुझसे तो कुछ सपने जुड़े थे मुझसे
सोचता हूं! ऐसा क्या है जो मुझे कह रहा है ऐसा
क्या है जो मुझे हमेशा से सता रहा है इक राह
चला था मैं खुद से टूट रहा था मैं,
न जाने क्या होगा मेरे सपनों का?
क्या यह यूं ही टूट जाएंगे या फिर कोई नई उम्मीद की
किरण संग लाएंगे
शायद इसी उम्मीद में जीए जा रहा हूं
अब मैं उस छुपे दर्द को ढू़ढ़ने जा रहा हूं
शायद फिर लौटूंगा कभी
एक नई किरण लेकर
एक नई दुनिया लेकर
-मनीष मेहरा