विश्व शांति के लिए ‘सार्वभौम सहयोग’ जरूरी

Edited By ,Updated: 03 Jul, 2015 02:15 AM

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आगामी 6 जुलाई से मध्य एशियाई देशों के दौरे पर जाने वाले हैं। इस दौरे में विश्व में बढ़ते आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता से उठाने की संभावना है।

(बलबीर पुंज): प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आगामी 6 जुलाई से मध्य एशियाई देशों के दौरे पर जाने वाले हैं। इस दौरे में विश्व में बढ़ते आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता से उठाने की संभावना है। अपने 8 दिनों के प्रवास में प्रधानमंत्री मोदी कजाकिस्तान, किॢगस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान का दौरा करने वाले हैं। आज जबकि दुनिया के कई हिस्से इस्लामी आतंकवाद से त्रस्त हैं और मुस्लिम देशों सहित कई अन्य देशों के मुस्लिम युवाओं में नए खलीफा-आई.एस. के प्रति मजहबी जुनून तेजी से पांव पसार रहा है, ऐसे में मध्य एशिया के देशों के साथ आतंकवाद की समस्या को सांझा करना महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। 

प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी क्षेत्रीय स्थिरता व शांति बहाली के लिए एशियाई देशों के साथ-साथ यूरोपीय देशों के साथ भी वैश्विक समस्याओं को सांझा करते आए हैं। 
 
प्रधानमंत्री मोदी के विदेशी दौरों का वैश्विक और स्थानीय संदेश है। उन्होंने अपने विजन से यह स्पष्ट किया कि आने वाला समय भारत का है। 21वीं सदी दुनिया के सर्वाधिक ऊर्जावान व युवा भारत के नाम होगी। अमरीकी दौरे में उन्होंने इस बात को मजबूती से रखा कि विश्व में शांति और सद्भाव कायम करने में भारत की बड़ी भूमिका रहने वाली है। उन्होंने दोहरे मापदंड रखने वाले देशों को दो टूक चेतावनी भी दी थी कि आतंकवाद को अच्छे औरबुरे आतंकवाद में बांटकर मानवता को खतरे में न डालें। 
 
आतंकवाद आज पूरे विश्व के लिए एक गंभीर चुनौती है। पिछले माह आतंकवाद की 6 बड़ी घटनाएं हुईं, जिसमें 100 से ज्यादा निरपराध लोगों की जानें गईं। इस्लामी आतंकवाद के कई संस्करण सभ्य समाज को लहूलुहान करने में जुटे हैं। सुदूर दक्षिण अफ्रीका, ईरान, ईराक से शुरू होकर इंडोनेशिया-मलेशिया तक जेहादी जहर तेजी से पांव पसार रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप में इसकी सघनता बंगलादेश, पाकिस्तान व भारत में बढ़ती ही जा रही है। किसी भी तरह की हिंसक गतिविधियों को हाथ भले ही अंजाम देता हो, किन्तु हिंसक भावना मस्तिष्क में पैदा होती है। हाथ को मस्तिष्क संचालित करता है, किन्तु इससे जुड़ा बड़ा सवाल यही है कि मस्तिष्क को हिंसा के लिए प्रेरित कौन करता है। 
 
जब तक इस सवाल का ईमानदारी और बिना किसी पूर्वाग्रह के जवाब नहीं ढूंढा जाता, आतंकवाद के सफाए की आशा करना व्यर्थ है। इस पर वैश्विक विचार मंथन की आवश्यकता है। जहां तक भारत का प्रश्न है, वह सदियों से इस मजहबी जुनून का शिकार बनता आया है।
 
मजहबी असहिष्णुता के साथ भारत के सदियों पुराने कटु अनुभव हैं। भारत ने मजहबी असहिष्णुता को लगभग 1000 वर्ष तक भोगा और जिया है। 8वीं सदी के पूर्वाद्र्ध में सिन्ध पर मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से लेकर अब तक भारत और उसकी बहुलतावादी सनातन संस्कृति पर लगातार बर्बर हमले होते रहे हैं। मजहबी जुनून से प्रेरित होकर हमारी सनातन संस्कृति पर होने वाले निरंतर हमलों के कारण ही देश को कई बार अपने हिस्से खोने पड़े। 
 
कुछ सदियों पूर्व अफगानिस्तान इस सांझी संस्कृति से अलग हुआ तो 1947 में देश के रक्तरंजित विभाजन से मजहब के नाम पर पाकिस्तान का जन्म हुआ। देश को तब एक-तिहाई भूमि खोनी पड़ी। इसमें सिन्धु नदी के तटीय क्षेत्र भी हैं, जिसके किनारों पर कालजयी सभ्यता व संस्कृति का विकास हुआ। यहीं पावन ननकाना साहिब भी है, जहां सिख पंथ के प्रवर्तक गुरु नानक साहिब का जन्म हुआ। गुरु नानक देव जी ने न केवल बाबर की बर्बरता से आतंकित पंजाब को कठिन समय में ढांढस बंधाया, बल्कि पूरे भारत को अपनी शिक्षा के माध्यम से नया जीवन और नई दिशा भी दी। 
 
वैश्विक शांति की स्थापना में भारतीय जीवन दर्शन और संस्कृति अमूल्य भूमिका निभा सकती है। सनातनी मूल्यों और बहुलतावाद के कारण भारत में जहां ऊर्जावान प्रजातंत्र और पंथनिरपेक्षता अक्षुण्ण है, वहीं अफगानिस्तान और पाकिस्तान में मजहबी सहिष्णुता के लिए कोई स्थान नहीं है। विडंबना यह है कि पाकिस्तान जैसे देश, जहां लोकतंत्र अधिकांशत: सैन्य बूटों के नीचे पिसता रहा है, जहां मजहबी कट्टरवाद को पोषित कर गैर-मुस्लिमों से करीब-करीब छुटकारा पा लिया गया है और एक ऐसा देश, जो जेहाद के जहर से दुनिया को लहूलुहान कर रहा है, उसे अमरीका से भारी वित्तीय मदद और संरक्षण मिलता है। 
 
अफगानिस्तान से सोवियत संघ को खदेडऩे के लिए अमरीका ने जिस जेहादी जुनून को पोषित कर उसे सैन्य असलों से लैस किया, वह आज तालिबान के रूप में सिर उठाकर दुनिया को रक्तरंजित करने और उसे इस्लाम के झंडे के नीचे लाने का खम ठोकता है। 
 
पड़ोसी मुल्क होने के कारण ‘काफिर भारत’ जेहादी जहर से निरंतर त्रस्त है। भारत के प्रति पाकिस्तान की घृणा उसके डी.एन.ए. में ही रची-बसी है। 8वीं सदी के मो. बिन कासिम के आक्रमण के बाद से ही लगातार कई ‘गाजियों’ ने मजहब के नाम पर इस मुल्क को लहूलुहान किया है। 11वीं सदी के पूर्वाद्र्ध में गजनी के आक्रमण से लेकर आज तक मजहबी कट्टरता भारत को रक्तरंजित करती रही है। कोई आश्चर्य नहीं कि पाकिस्तान के मिसाइलों के नाम गजनी, गोरी, बाबर, अब्दाली जैसे उन गाजियों के नाम हैं, 
 
जिन्होंने मजहबी घृणा से प्रेरित होकर हिन्दुओं के मानस्थलों, मंदिरों को ध्वस्त किया और काफिरों का नरसंहार किया, तलवार के दम पर बलात् उनका मतांतरण किया।
 
आतंकवाद के पीछे छिपे मजहबी जुनून को नकारने वाले स्वयंभू बुद्धिजीवी व मानवाधिकारी यह झूठ परोसते हैं कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था आतंकवाद को काबू में रख सकती है। उनका तर्क है कि यदि मुसलमान पूर्ण स्वतंत्रता के साथ रहें और उन्हें प्रजातांत्रिक ढंग से अपना नेता चुनने को मिले तो आतंकवादी पैदा ही नहीं हों। पाश्चात्य आधुनिक प्रजातंत्र में स्वतंत्र और खुशहाल जीवन जीने वाले उच्च शिक्षित मुस्लिम युवा फिर किस कारण उसी धरती को लहूलुहान करते हैं?
 
यह भी कुतर्क दिया जाता है कि मुसलमानों के साथ किए जाने वाले भेदभाव के कारण आतंकवाद पैदा हुआ। दुनिया में खिलाफत लाने के लिए सीरिया और ईराक में खून बहा रहा आई.एस. किस भेदभाव का शिकार हुआ है? यदि गैर-मुस्लिम भेदभाव करने के आरोपी हैं तो दुनिया भर में शिया-सुन्नी और अहमदिया आपस में ही क्यों कट-मर रहे हैं? 
 
मुस्लिम देशों का आदर्श सऊदी अरब मानता है कि हिंसा और कट्टरपंथी इस्लाम के असली दुश्मन हैं। वहीं ईरान का भी कहना है, ‘‘बेगुनाह लोगों के खिलाफ आतंकी कार्रवाई इस्लाम की शिक्षाओं के विपरीत है।’’ ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि सच्चा इस्लाम क्या है और उसकी शिक्षाएं क्या हैं? पेशावर, सिडनी, पैरिस और यमन में इस्लाम के नाम पर रक्तपात करने वाले कौन लोग हैं? बोकोहराम के आतंकी किस इस्लाम के अनुयायी हैं? इस्लाम यदि दुनिया में अमन और भाईचारगी कायम करने का संदेश देता है तो उसके नाम पर खून बहाने वाले इस्लाम के किस संस्करण के उपासक हैं? 
 
ईराक और सीरिया में यजीदियों, कुर्दों और ईसाइयों के सफाए में लगा ‘इस्लामिक स्टेट’ कैसी दुनिया कायम करना चाहता है? क्या बर्बरता और मजहबी उन्माद से भरी ऐसी दुनिया को इस्लाम मान्यता देता है? नहीं तो पूरी दुनिया में इस्लाम के नाम पर जिस तरह हिंसा हो रही है, उसे रोकने के लिए इस्लाम के नाम पर आबाद देश एकजुट क्यों नहीं होते? मध्य एशिया के देश, जहां मुस्लिमों की बड़ी आबादी बसती है, यदि ऐसे माहौल को विकसित करने की पहल पैदा करने में सफल हो सकें तो यह विश्व बंधुत्व की दिशा में बड़ा योगदान साबित होगा।          
 
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