आमेर की विवादित ‘हवेलियों की सच्चाई’

Edited By ,Updated: 16 Jul, 2015 12:43 AM

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प्रादेशिक राजधानी जयपुर से 14 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन नगर आमेर (जिसे अंबर के नाम से भी जाना जाता है) में पूर्व राजवंश के 3 ऐतिहासिक महलों (हवेलियों) को राजस्थान सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया है।

(प्रकाश भंडारी): प्रादेशिक राजधानी जयपुर से 14 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन नगर आमेर (जिसे अंबर के नाम से भी जाना जाता है) में पूर्व राजवंश के 3 ऐतिहासिक महलों (हवेलियों) को राजस्थान सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया है। दिलचस्प बात है कि सरकार ने यह कब्जा करने के लिए बहाना बनाया है कि यह आई.पी.एल. के दागी पूर्व कमिश्रर ललित मोदी और मुम्बई की रहने वाली एक महिला व्यवसायी बीना किलाचंद की सम्पत्ति है और इन्हें पूर्व भाजपा सरकार (2003-2008) के शासन दौरान तब खरीदा गया था जब वसुंधरा राजे ही मुख्यमंत्री थीं।

पूरे प्रकरण को रहस्यमयी और साजिशपूर्ण आभा प्रदान करने वाला तथ्य यह है कि न बीना किलाचंद और न ही ललित मोदी इन सम्पत्तियों पर दावा करने के लिए तब भी आगे नहीं आए जब प्रदेश सरकार ने इनके ताले तोड़े।
 
ललित मोदी ने ‘भैराठियों की हवेली’ (जो एक सम्पन्न व्यवसायी परिवार की सम्पत्ति थी) के साथ-साथ ‘छाबड़ों की हवेली’ भी खरीदी थी, जबकि तीसरी हवेली बीना किलाचंद द्वारा खरीदी गई थी। बेशक तीनों हवेलियां 1974 की गजट अधिसूचना के अनुसार ‘हैरीटेज जोन’ घोषित किए गए 14वीं शताब्दी के किले के बिल्कुल पास में स्थित हैं फिर भी इनके मालिकों ने इन्हें महंगे लग्जरी होटलों में बदलने की योजना बनाई थी। इन हवेलियों में जिन परिवारों की रिहाइश थी उन्होंने सवाई जयसिंह द्वारा राजधानी का स्थानांतरण जयपुर में किए जाने के बाद अपने नए आवास वहीं बना लिए थे। बेशक ललित मोदी और किलाचंद द्वारा खरीदी गई हवेलियां अलग-अलग स्तरों तक खंडहरों में बदल रही थीं, फिर भी बीना किलाचंद ने अपनी हवेली के  जीर्णोद्धार पर भारी-भरकम राशि खर्च की और काफी बड़ा बरांडा भी निर्मित किया।
 
भैराठियों की हवेली का स्वामित्व ऑनलाइन कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के नाम पर हस्तांतरित और पंजीकृत किया गया था। यह कम्पनी एक जमाने में बीना किलाचंद की ही सम्पत्ति थी। कभी वह विजय राजे सिंधिया के साथ ही सिविल लाइन स्थित उनके सरकारी निवास में रहा करती थी लेकिन बाद में दोनों में मन-मुटाव हो गया। इसके बाद छाबड़ों की हवेली का इंतकाल हैरीटेज सिटी कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के नाम चढ़ा दिया गया। उल्लेखनीय है कि ललित मोदी की पत्नी मिनाल मोदी इस कम्पनी के निदेशकों में से एक थी। लगभग खंडहर बन चुकी इस हवेली में 2 कमरे, 2 गुसलखाने और एक रसोई थी।
 
इन हवेलियों में कुछ परिवार रहते थे जो मुख्यत: बंगाली थे। इन परिवारों को राजा मान सिंह द्वारा निर्मित मंदिर में पुजारियों का काम करने के लिए बंगाल से लाकर बैठाया गया था। पुरातत्व एवं पर्यटन विभाग की पूर्व राज्यमंत्री बीना काक का कहना है, ‘‘ललित मोदी और किलाचंद दोनों को ही राजे की सरपरस्ती हासिल थी और उन्होंने स्थानीय लोगों की सहायता से हवेली का चयन किया था तथा राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग की सहायता लेकर अधिकतर आवासियों को खदेडऩे के लिए यह दलील प्रयुक्त की कि इन इमारतों का जीर्णोद्धार किए जाने की जरूरत है, जो कब्जाधारी डटे रहे उनके साथ उन्होंने सौदेबाजी कर ली क्योंकि उनमें से कोई भी वास्तविक मालिक नहीं था। उसके बाद उन्होंने राजे के प्रभाव का उपयोग करते हुए इन सम्पत्तियों का पंजीकरण करवा लिया।’’
 
भैराठियों की हवेली और छाबड़ों की हवेली दोनों ही ऐतिहासिक अंबर दुर्ग के बिल्कुल पड़ोस में पहाडिय़ों की चोटियों पर स्थित हैं। दोनों का स्वामित्व 2007 में उस समय हाथों में आया जब भाजपा सत्तासीन थी।  राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, ‘‘जब कांग्रेस सत्ता में आई तो इसको पता चला कि 3 हवेलियों को उन लोगों से अवैध रूप से खरीदा गया है जिनके पास इनके स्वामित्व का कोई अधिकार नहीं था। इसलिए जयपुर मंडल के आयुक्त द्वारा इस मामले में जांच का आदेश जारी किया गया था।’’
 
अंबर विकास व प्रबंधन प्राधिकार के पूर्व अध्यक्ष सलाऊद्दीन अहमद ने बताया, ‘‘दिलचस्प बात यह है कि पूर्व भाजपा सरकार के शासन दौरान इस प्राधिकार का गठन केवल इस उद्देश्य से किया गया था कि कुशवाहा शासकों द्वारा निर्मित दुर्ग का जीर्णोद्धार किया जा सके। ललित मोदी की पत्नी भी इस प्राधिकार की सदस्य थी। जब उन्हें इन प्राचीन हवेलियों के महत्व का पता चला तो उनके दिमाग में इन्हें लग्जरी होटलों में परिवर्तित करने का विचार आया।’’
 
इससे बड़ी बात यह है कि बैनामा दस्तावेजों के अनुसार इन सम्पत्तियों का बाजार मूल्य 50 करोड़ रुपए था लेकिन इन्हें 9 से 21 लाख तक की कीमतों पर खरीदा गया था। इसी दौरान संदीप भाटरा नामक एक्टिविस्ट द्वारा चलाई जा रही एन.जी.ओ. ने इस  बिक्री को चुनौती देने के लिए इस आधार पर याचिका दायर की कि ये वास्तव में राज्य सरकार की ‘नजूल’ सम्पत्तियां हैं। ये ऐसी सम्पत्तियां होती हैं जिनके स्पष्ट स्वामित्व के दस्तावेज किसी के नाम पर भी नहीं होते इसलिए सरकार ही इनका अधिग्रहण करती है। भाटरा ने आरोप लगाया चूंकि जयपुर नगर निगम ने इन हवेलियों को 2013 में सील कर दिया था इसलिए इनकी बिक्री अवैध है।
 
जयपुर मंडल की पूर्वायुक्त किरण सोनी गुप्ता ने जांच करके यह खुलासा किया कि 2 हवेलियां अवैध रूप में खरीदी गई थीं क्योंकि विक्रेता के पास स्वामित्व का कोई अधिकार ही नहीं था और यह राज्य सरकार की सम्पत्तियां थीं। भूमि पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत रजिस्ट्रार को यह सत्यापन करना होता है कि सम्पत्तियों की मालिक कहीं सरकार तो नहीं लेकिन इस मामले में अधिकारियों ने स्पष्ट तौर पर इस नियम का उल्लंघन किया।
 
अटल तौर पर सवाल पैदा होता है कि ललित मोदी और किलाचंद ने इन सम्पत्तियों को सरकार से हासिल करने के प्रयास क्यों नहीं किए? इनके हस्तांतरण का मुद्दा राजस्थान विधानसभा में कई बार उठा था। सुश्री गुप्ता की अध्यक्षता वाली समिति की जांच-पड़ताल को उजागर करते हुए कांग्रेस ने कहा कि ये सम्पत्तियां सरकार की हैं और साथ ही इन्हें विरासती भवनों का दर्जा हासिल है। राजस्थान विधानसभा चुनाव से पूर्व ही कांग्रेस ने प्रचार शुरू कर दिया था कि वह सत्ता में आने पर इन हवेलियों की बिक्री को अवैध भूमि सौदों में शामिल करेगी और इनकी जांच करवाएगी।
 
लेकिन 2013 के चुनाव में जीत भाजपा के हाथ लगी। इससे भी बढ़कर कई पुश्तों से इन हवेलियों में रहते आ रहे परिवारों ने शिकायत की थी कि राज्य सरकार ने उन्हें जबरदस्ती उनके घरों से खदेड़ा है क्योंकि राज्य के पुरातत्व विभाग ने सभी कब्जाधारियों को नोटिस भेजे थे कि इन विरासती स्थलों का संरक्षण किया जाना जरूरी है। सरकार का यह दबाव का हथकंडा स्पष्ट रूप में सफल रहा। जैसे ही ललित मोदी और किलाचंद के राजे के साथ संबंध बिगड़े उन्होंने अपनी जुबान बंद रखने में ही भलाई समझी और अब मामला यहीं अटका हुआ है। 
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