‘...क्योंकि दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति सदैव जवान बना रहना चाहता है’

Edited By ,Updated: 22 Dec, 2020 03:40 AM

because everyone in the world always wants to be young

अभी हाल में ही इसराईल के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी रिसर्च की है जिससे व्यक्ति हमेशा जवान बना रहेगा और वह 75 वर्ष की आयु में भी 25 वर्ष के जवान जैसा शरीर बनाए रख सकेगा। जिन बुजुर्गों पर यह प्रयोग किया गया उनका शरीर अब 25 वर्ष के युवाओं जैसा...

 अभी हाल में ही इसराईल के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी रिसर्च की है जिससे व्यक्ति हमेशा जवान बना रहेगा और वह 75 वर्ष की आयु में भी 25 वर्ष के जवान जैसा शरीर बनाए रख सकेगा। जिन बुजुर्गों पर यह प्रयोग किया गया उनका शरीर अब 25 वर्ष के युवाओं जैसा हो गया है। यदि यह रिसर्च सफल हुई तो यह दुनिया के लिए एक वरदान साबित होगी क्योंकि दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति सदैव जवान बना रहना चाहता है। इसके लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक और डॉक्टर पिछले कई वर्षों से प्रयासरत हैं कि कोई ऐसा प्रयोग उनके हाथ लग जाए जिससे मनुष्य के बुढ़ापे पर रोक लगाई जा सके और वह मृत्यु पर्यंत जवान बना रहे। 

यह रिसर्च इसराईल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी और समीर मैडीकल सैंटर के वैज्ञानिकों ने की है। यह रिसर्च 64 वर्ष से ज्यादा उम्र के 35 लोगों पर की गई। इनमें से किसी भी व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी कोई गंभीर बीमारी नहीं थी। इन 35 लोगों को हफ्ते में 5 दिन 10 मिनट के लिए शुद्ध ऑक्सीजन दी जाती थी, इसके लिए इन बुजुर्गों को एक प्रैशराइज्ड चैम्बर में भेजा जाता था। यह रिसर्च 3 महीने तक चली और 3 महीने पश्चात जो परिणाम सामने आए उसने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को हत्प्रभ कर दिया। 

शोधकत्र्ताओं ने यह दावा किया है कि इस प्रयोग के बाद इन बुजुर्गों की न केवल उम्र बढऩी बंद हो गई बल्कि स्वस्थ कोशिकाओं के स्तर पर उनके शरीर किसी 25 वर्ष के युवा जैसे हो गए यानी सिर्फ 3 महीनों में इन वैज्ञानिकों ने रिवर्स एजिंग की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया। जब कोई व्यक्ति अपनी वर्तमान उम्र से कम उम्र का दिखने लगता है तो उसे रिवर्स एजिंग कहते हैं अर्थात उसकी उम्र उल्टी दिशा में जाने लगती है और वह वापस जवान दिखने लगता है। 

वैज्ञानिकों ने अपने इस प्रयोग में उम्र बढ़ाने वाली दो प्रक्रियाओं पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया। शरीर में क्रोमोजोम्स पाए जाते हैं, ये शरीर में मौजूद डी.एन.ए. से तैयार होते हैं। इन क्रोमोजोम्स में व्यक्ति की पूरी जेनेटिक जानकारी छुपी होती है। इन क्रोमोजोम्स के आखिरी सिरे को टेलोमियर कहते हैं, आसान भाषा में समझें तो ये टेलोमियर गाड़ी में आगे और पीछे लगे बंपरों जैसे होते हैं। क्रोमोजोम्स अपनी संख्या लगातार बढ़ाते रहते हैं और अपनी प्रतियां तैयार करते रहते हैं। इस दौरान पुराने और नए क्रोमोजोम्स को किसी दुर्घटना या टक्कर से बचाने का काम टेलोमियर करते हैं, लेकिन बार-बार होने वाली इस टक्कर से टेलोमियर घिसने लगते हैं और लंबाई में छोटे होते चले जाते हैं। जब यह लंबाई में बहुत छोटे हो जाते हैं तो फिर क्रोमोजोम्स अपनी प्रतियां नहीं बना पाते। इसकी वजह से नई कोशिकाओं का निर्माण बंद हो जाता है। कोशिकाएं या तो मर जाती हैं या इनका विकास रुक जाता है और यहीं से बुढ़ापा शुरू होता है। निष्क्रिय हुईं ये कोशिकाएं बुढ़ापे या गंभीर बीमारियों की वजह से बनती हैं। ये कोशिकाएं यदि हमेशा सुरक्षित और मजबूत रहें तो व्यक्ति कभी बूढ़ा नहीं होगा। 

वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोग के जरिए न केवल टेलोमियर की लंबाई को कम होने से रोका बल्कि ऑक्सीजन थैरेपी की वजह से निष्क्रिय हो चुकी कोशिकाओं की संख्या भी घटने लगी। इससे इस प्रयोग में शामिल इन बुजुर्गों की उम्र न सिर्फ रुक गई बल्कि नई और ताजा कोशिकाओं के निर्माण के कारण उनका शरीर युवाओं जैसा हो गया। इस दौरान इन बुजुर्गों को लगातार 90 मिनट के लिए ऑक्सीजन नहीं दी जाती थी बल्कि बीच-बीच में इस प्रक्रिया को रोक भी दिया जाता था लेकिन शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढऩे और कम होने का परिणाम यह हुआ कि शरीर के अंदर शुरू हुए इस संघर्ष ने इन बुजुर्गों को फिर से जवान बना दिया। 

हालांकि वैज्ञानिकों ने ऑक्सीजन थैरेपी के इस प्रयोग को घर में करने से मना किया है क्योंकि इससे शरीर को नुक्सान भी हो सकता है। कुछ समय पहले इसराईल के ही एक मशहूर लेखक युवल नोह हरारी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘होमोडेयस’ में लिखा था कि धार्मिक लोगों के लिए मृत्यु भले ही ईश्वर द्वारा लिया हुआ बड़ा फैसला हो लेकिन वैज्ञानिकों के लिए मृत्यु शरीर में आने वाला एक टैक्नीकल ग्लिच है। शरीर एक मशीन की तरह है और जब इसमें कोई टैक्नीकल ग्लिच अर्थात तकनीकी खामी आती है तो यह निष्क्रिय हो जाता है और इसी को मृत्यु कहते हैं। उनका मानना है कि इस तकनीकी खामी को वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशालाओं में दूर करके मृत्यु को टाला जा सकता है। युवल नोह हरारी की पुस्तक का टाइटल होमोडेयस भी इसी ओर इशारा करता है कि आने वाले दिनों में मनुष्य किसी देवता से कम नहीं होगा। लेटिन भाषा में होमो का मतलब होता है मनुष्य और डेयस का मतलब होता है देवता। अब वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में अपने चमत्कारिक प्रयोग से इस बात को सच साबित कर रहे हैं। 

हजारों वर्षों से मनुष्य अपने बुढ़ापे को रोकने और मृत्यु को टालने के लिए प्रयासरत रहा है। 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में उम्र को रोकने के लिए जिस पद्धति का इस्तेमाल होता है उसे रसायन कहते हैं। उदाहरण के लिए जड़ी बूटियों से तैयार होने वाला च्यवनप्राश एक प्रकार का रसायन है।-रंजना मिश्रा
 

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