जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव अभी टाल देना ही बेहतर

Edited By ,Updated: 08 Aug, 2022 06:10 AM

better to postpone the jammu and kashmir assembly elections now

यद्यपि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा गठजोड़ सरकार कश्मीर के हालात को नार्मल  बनाने के लिए तरजीह के तौर पर पूरा ध्यान दे रही है और इसी सिलसिले में इसने 2019 में बहुत जोखिम उठा कर

यद्यपि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा गठजोड़ सरकार कश्मीर के हालात को नार्मल  बनाने के लिए तरजीह के तौर पर पूरा ध्यान दे रही है और इसी सिलसिले में इसने 2019 में बहुत जोखिम उठा कर भी संविधान की  धारा-370 का खात्मा एक सफल रणनीति के रूप में किया परन्तु एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि अभी वहां काफी कुछ प्रभावशाली रूप से करना बाकी है। 

इतिहास गवाह है कि जम्मू-कश्मीर में कभी वह समय भी था जब वहां पंडितों का वर्चस्व था और वहां हिन्दू राजाओं का शासन होता था। तब कश्मीरी पंडित इतने शक्तिशाली और प्रभावशाली थे कि वह किसी भी निकम्मे अथवा नापसंद राजा को गद्दी से उतार कर दूसरे किसी योग्य व्यक्ति को उस का जानशीन बना देते थे। परन्तु कालचक्र ने इस धुरी को पलट दिया और 2 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित पिछले लगभग 30 सालों में हिंसा, हत्या, लूटमार आदि के शिकार हो गए। सैकुलरिज्म का कश्मीर में जनाजा उठ गया, परन्तु धर्म निरपेक्षता के कई तथाकथित ठेकेदारों के मुंह से कोई आह तक न निकली। 

करोड़ों हिन्दुओं की आबादी वाले देश के इस हिस्से से, जिसे कश्मीर घाटी कहते हैं, लाखों हिन्दुओं को बंदूक की दहशत में वहां से उजाड़ दिया गया। इस प्रकार यह कश्मीरी पंडित अपने ही देश में बेघर होकर शरणार्थियों के रूप में जम्मू के शिविरों में शरण लेने एवं देश के कई भागों में जाकर सिर छुपाने के लिए विवश हो गए। विश्व के लोकतंत्रीय इतिहास में यह अनहोनी त्रासदी थी। 

मोदी सरकार ने हालात को काबू में लाने के लिए सुरक्षा प्रबंध और मजबूत किए। कश्मीरी पंडितों की वापसी कैसे हो इस बारे योजना बनाई गई  और प्रधानमंत्री पैकेज के अधीन 6514 कश्मीरी पंडितों को लाकर बसाया गया। लेकिन देश के दुश्मनों को यह बात कैसे सहन होती। इन कश्मीरी पंडितों पर फिर से हमले होने शुरू हो गए और पिछले अढ़ाई वर्षों में 21 कश्मीरी पंडितों को दहशतगर्दों ने चुन-चुन कर मारा। 

इस वर्ष जून के पहले सप्ताह में सैंकड़ों कश्मीरी पंडित परिवार कश्मीर से भाग कर जम्मू एवं अन्य स्थानों पर चले गए। वैसे प्रधानमंत्री पैकेज के अधीन 4500 कश्मीरी पंडित भर्ती किए गए थे। इनमें से 3400 किराए के मकानों में रह रहे थे जबकि अन्य 1100 ट्रांजिट कैंपों में शरण लिए हुए थे मगर इन कैंपों में रहने वाले 50 प्रतिशत से अधिक कश्मीरी पंडित घाटी को छोड़ चुके हैं फिर भी सरकार किसी रणनीति के तहत यही कहती रही कि कोई कश्मीरी पंडित घाटी से बाहर नहीं गया है। 

परन्तु अब ताजा सूचना यह है कि लोक निर्माण विभाग मेें जूनियर इंजीनियर के रूप में काम करते 5 कश्मीरी पंडित अधिकारियों को श्रीनगर से जम्मू में ट्रांसफर करने का सरकार ने हुक्म जारी कर दिया है। श्रीनगर में सरकारी कर्मचारी के रूप में काम करते कश्मीरी पंडित मई महीने से ही धरना दे रहे थे कि उन्हें घाटी से बाहर ट्रांसफर कर दिया जाए। अब जाकर कहीं सरकार ने उनकी मांगों को किस्तों के रूप में मानना शुरू किया है। ऐसे सभी गंभीर ङ्क्षचताजनक हालात को सामने रखते हुए फिर भी सरकार यदि विधान सभा के चुनाव करवाना  चाहे, तो भी उसे टालना ही पड़ेगा और इसी में समझदारी भी है। पृथक हुरियत कांफ्रैंस का गठन करने वाले सैयद अली शाह गिलानी ने 2008 में श्रीनगर में एक भारी भीड़ को संबोधित करते हुए ऐसे कहा था :

‘सैकुलरिज्म नहीं चलेगा... सूबाईयत नहीं चलेगा... इस्लाम की निसबत से हम पाकिस्तानी हैं और पाकिस्तान हमारा वतन है’। इस पर वहां उपस्थित जनसमूह ने यह जवाब दिया था : ‘इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह’। इससे अधिक हिंद दुश्मनी की पराकाष्ठा और क्या हो सकती है। लेकिन हमारी पिछली मोतियों वाली सरकारों ने इन देश के दुश्मनों को भी कश्मीर में न सिर्फ रहने दिया बल्कि उनको फलने-फूलने और कश्मीर में हिंसा फैलाने की खुली छूट दे रखी। इसी सैयद गिलानी ने 30 वर्षों के अपने राजनीतिक जीवन में 8 बार विभिन्न चुनाव भी लड़े। 92 वर्ष की आयु में अब यह अलगाववाद पसंद आवाज हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो चुकी है। 

अब जरा कश्मीर के आंतरिक एवं बाहरी गंभीर खतरों की सच्चाई पर दृष्टि डालते हैं। पहला खतरा तो सशस्त्र प्रशिक्षण प्राप्त घुसपैठियों का है जिस को पड़ोसी देश ऊंची आवाज में यह कहता आ रहा है कि वह कश्मीरियों को यथासंभव हर सहायता उपलब्ध करवाने की प्रतिज्ञा का पाबंद है। दूसरा खतरा दहशतगर्दों के हमलों का है जिनको हमारे बहादुर सुरक्षा सैनिक नाकाम तो कर देते हैं परन्तु इस कार्रवाई में कई  कीमती जानें भी लगातार कुर्बान हो रही हैं। 

कश्मीर घाटी में जब कश्मीरी पंडितों का रहना असंभव बनाया जा रहा है और भारत के अन्य राज्यों से घाटी में गए कामगारों-मजदूरों की हत्याएं निरंतर होती चली आ रही हैं, तब वहां की अमन कानून की स्थिति को सामान्य (नार्मल) कैसे कहा जा सकता है? अत: यह तो तय है ही कि विधानसभा चुनाव सामान्य स्थिति में ही हो सकते हैं, असामान्य स्थिति में नहीं। इसलिए हर पहलू से विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष तो यही निकलता है कि नई हदबंदी के बाद जम्मू-कश्मीर के होने वाले चुनाव अभी कुछ समय के लिए स्थगित करने ही पड़ेंगे।-ओम प्रकाश खेमकरणी
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!